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पखावज उत्तरी भारत का एक थाप यंत्र है. मृदंग पखावज और खोल लगभग समान संरचना वाले वाद्य यंत्र हैं.आधुनिक काल में गायन, वादन तथा नृत्य की संगति में पखावज का प्रयोग विशेष तौर पर किया जाने लगा है.पखावज एक वाद्य यंत्र है जो चमड़े से मढ़ा हुआ होता है और ऐसे वाद्यों को अवनद्ध कहा जाता है. वर्तमान में भी भारत के लोकसंगीत में ढोल, मृदंग, झांझ, मंजीरा, ढप, नगाड़ा, पखावज, एकतारा आदि वाद्य यंत्रों का प्रचलन है।.पखावज मृदंग की तुलना में कुछ अधिक लम्बा होता है तथा इसमें डोरियों को कसने हेतु लकड़ी के कुछ गुटके लगे होते है.
पखावज का इतिहास अत्यन्त प्राचीन नहीं है. 15वीं शताब्दी तक किसी भी संगीत पुस्तक या अन्य किसी भी स्थान पर पखावज का कोई भी उल्लेख नहीं मिलता. प्राचीन तथा मध्यकाल में ताल वाद्य के रूप में मृदंग का उल्लेख मिलता है. जानकारों का अनुमान यह है कि मृदंग के आकार बनावट में थोड़ा परिवर्तन कर मृदंग को ही पखावज कहा जाने लगा होगा. कहा जाता है कि अमीर खुसरो पखावज बजा रहे थे. उसी समय यह दो टुकड़ों में टूट गया. तब उन्होने इन टुकड़ों को बजाने की कोशिश की जो कि काम कर गया। इस प्रकार तबले का जन्म हुआ.
पखावज की उत्पत्ति किस प्रकार हुई, इस संबंध में मृदंग ही प्रमुख आधार माना गया है. आचार्य भरतकालीन निर्मित त्रिपुष्कर वाद्य के तीन अंग आंकिक, आलिंग्य, उध्र्वक थे. अंकित -‘यह वाद्य लेटाकर बजाया जाता था इस वाद्य के दो मुख थें. आलिग्य – इस वाद्य का एक मुख था उध्र्वक यह खड़ा बजाया जाता था, इस वाद्य का भी एक ही मुख था. कालान्तर में त्रिपुष्कर के दो अंग विलुप्त हो गए. केवल अंकित वाद्य ही प्रचलित रहा. यही वाद्य आगे चलकर कुछ परिवर्तन के साथ मृदंग, पखावज के रूप में प्रचलित हुआ.
बता दें कि रामचरित मानस में प्रयुक्त बाजत ताल पखावज बीना, अथवा बाजत ताल मृदंग अनूपा तथा घंटा घंटि पखावज आउज आदि पंक्तियों के जाहिर होता है कि चार-पाँच सौ वर्ष पूर्व पखावज शब्द प्रचलन में आ गया था. दोनों पक्षों से बजने के कारण मृदंग का नाम पक्षवाद्य हुआ और कालान्तर में इसे पखबाज कहा जाने लगा. यह नाम आज भी महाराष्ट्र में प्रचलित है. धीरे-धीरे पखबाज पखावज कहा जाने लगा.
भारत के प्रसिद्ध पखावज वादकों के नाम हैं- पंडित मदन मोहन, पंडित भोलानाथ पाठक, पंडित अमरनाथ मिश्र.
एक विचार कहता है कि पखावज फारसी शब्द है. अन्य विचार यह है कि पखावज शब्द भी संस्कृत से बना तद्भव शब्द है. अर्थात् पक्षवाद्य इस का अपभ्रष्ट रूप पखावज. पक्ष, इस शब्द का अर्थ होता है बाज़ू. और पक्ष-वाद्य यानी ऐसा वाद्य जिस की (2) बाजुएं होती है. अर्थात् मृदंग और पखावज एक ही वाद्य के दो विभिन्न नाम हैं. परन्तु पखावज यह शब्द विशेषतः उत्तर भारत में विकसित मृदंग के रूप के लिए प्रयुक्त किया जाता है. मृदंग का दक्षिण भारत में जो रूप विकसित हुआ है उसे पखावज नहीं कहते हैं. उसे केवल मृदंगम् कहते हैं.
Kya apne suna hai pakhavaj