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ढ़ोला-मारू की प्रेम कहानी- सुनी है क्या आपने

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Dhola-maru: लोककथाओं की सबसे बड़ी उल्लेखनीय विशेषता ही यही है कि जिस क्षेत्र विशेष में यह प्रचलित होती है वहाँ के लोगों को ही इनके रचयिता का पता नहीं होता । कोई भी इनके आदि और अंत के बारे में कुछ भी ठोस बता पाने में अक्षम होता है। शायद इनके रचयिता को भी याद ना रहा हो कि इन्हें रचने के बाद उन्हें उनका नाम देना है। लेकिन इन लोककथाओं में तत्कालीन सामाजिक स्थिति की झलक मिलती हैं। लोककथाओं को प्रत्येक युग अपनी निजी संपत्ती समझता है और हर कोई समय के साथ इसमें कुछ ना कुछ जोड़ता ही रहता है।

भारतीय समाज में लोककथाओं की अपनी एक अहमियत रही है और यह आपको हर क्षेत्र विशेष में देखने सुनने को मिल जाएंगी। आज हम आपको इन्हीं लोककथाओं में से एक ढ़ोला और मारू की प्रेम कहानी के बारे में बताएंगे। ढ़ोला और मारू की प्रेम कहानी ऐसी की राजस्थान में हर प्रेमी जोड़ा ऐसा बनने चाहे और समाज तक उन्हें इस से संबोधित करे। वे प्रेम कहानियां ही हैं, जो ना केवल शब्द और एहसास के आकर्षण को बढ़ाती हैं, बल्कि सदियों तक इसे जिंदा भी रखती हैं। इन प्रेम कहानियों से उस क्षेत्र विशेष की मिट्टी की सुगंध उड़ती हैं, और इन्हें आप तब जान पाते हैं जब आप उस मिट्टी पर अपने कदम रखते हैं।

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कहते हैं राजस्थान में एक नरवर नामक की रियासत थी। जहां के राजा नल के बेटे साल्हकुमार का विवाह महज 3 साल की उम्र में ही पंगुल क्षेत्र के पंवार राजा पिंगल की बेटी से कर दिया गया था। पहले के समय में बाल-विवाह तो हो जाते थे लेकिन लड़की की विदाई वयस्क होने पर ही होती थी । सामाजिक मान्यताओं में इसे गौना कहते हैं। समय गुजरता गया और राजकुमार और राजकुमारी बड़े हो गए। अब राजकुमार बड़े हुए और उनकी दूसरी शादी भी  कर दी गई । लेकिन वहीं राजकुमारी अपने गौने के इंतजार में थी। समय के साथ राजकुमारी और भी सुंदर और आकर्षक दिखने लगी।

राजकुमारी के पिता यानी कि पिंगल के राजा दुल्हन को लिवाने नरवर तक कई संदेश वाहकों को भेजा लेकिन वहां राजकुमार की दूसरी पत्नी कुछ ना कुछ षडयंत्र कर संदेश वाहक की हत्या करवा देती। समय के साथ राजकुमार तो अपने पहली शादी को भूल  भी चुके थे लेकिन दूसरी रानी को इसके बारे में सब पता था और उसे डर था कि अगर राजकुमार ने अपनी पहली पत्नी को ले आए तो उनका मान घट जाएगा। और राजकुमार पहली रानी की खुबसूरती में खो जाएंगे।

लेकिन पहली रानी इन सब से बेखबर अपने प्रियतम की याद में आंखें संजोए बैठी रहती थी। जब उनके पिता को राजकुमारी की यह दशा सताने लगी तो उन्होंने एक चतुर ढ़ोली को नरवर भेजा और कहा कि वह बड़ी ही चतुराई से नरवर जाए और राजकुमार के समक्ष मारू (मल्हार) राग में बने दोहे को गा कर उनकी पत्नी की याद दिलाए।

चतुर ढ़ोली याचक बनकर दरबार पहुंचा और रिमझिम बारिश के साथ उंची आवाज में मल्हार राग में गाना शुरू किया। मल्हार के मधुर संगीत राजकुमार के कानों में पड़ते ही बरबस राजकुमारी की यादों को ताजा कर दिया और वह बेचैन हो उठा। बाद में जब उसने ढ़ोली को अपने पास बुलावा भेजा तो उसने सारी बात राजकुमार को बता दी कि कैसे राजकुमारी उनके विरह में बैठी है।

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ढ़ोली ने राजकुमार के सामने राजकुमारी की खुबसूरती के बारे में बताया कि कैसे उसका चेहरा चांद की तरह चमकता है बदन ऐसे जैसे कपड़ो में से सोना चमक रहा हो। हिरण के जैसी चाल और फूलों के जैसे कोमल अंग। राजकुमार ने अब अपनी पत्नी को लाने का निश्चय कर लिया और अपने प्रियतमा को लेने पोंगल की ओर रवाना हो गए। राजकुमारी अपने प्रियतम से मिलकर बहुत ज्यादा खुश हुई और दोनों नरवर की ओर चल दिए। रास्ते में राजकुमारी को सांप ने काट लिया लेकिन राजकुमार के प्रेम के सामने स्वयं शिव और पार्वती ने राजकुमारी को जीवन दान दे दिय। राजकुमार और राजकुमारी जब आगे बढ़ें तो उमरा-समुरा के राजकुमार का दिल राजकुमारी पर आ गया और उसने राजकुमार को छल से मार कर राजकुमारी को हासिल करने की कोशिश की । लेकिन इस बार राजकुमारी ने अपने प्रियतम की जान बचाई और उसे लेकर अपने ससुराल नरवर आ गई।

राजकुमार और उसकी पहली पत्नी के प्यार की इस गाथा को आज भी लोकगीत के रूप में गाया जाता है। लोकगीत के रूप में समाज नव-विवाहित जोड़ों को इनके जैसे प्यार को निभाने की याद के साथ भर-भर कर आशीष देते हैं। आपने भी कई बार शादी-ब्याह में ऐसे गीत सुने होंगे लेकिन शायद ध्यान नहीं दिया हो। इस बार जब भी ऐसा कुछ सुने तो इसे समझें और जाने । द हिन्दी आपके लोककथाओं से जुड़ी जानकारियों को ऐसे ही रोचक और मनोरंजक तरीके से लाता रहेगा और आपको आपके सभ्यता, संस्कृति और साहित्य से रू-ब-रू कराता रहेगा।

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