Aamrapali: बिहार में एक जिला है वैशाली। वैशाली का इतिहास भारत की संस्कृति के समान काफी पुराना है। विश्व के सबसे पहले गणतंत्र वाला यह वैशाली भारत के ना जाने कितने इतिहास को अपने में समा रखा है। सैकड़ो हजारो किस्से कहानियों से पटा परा इसका इतिहास, भारत की पहचान को जन्म तक देने की ताकत रखता है। जी हां उन्हीं किस्से कहानियों में से एक हम आपके सामने ले के आए हैं। वैशाली की सबसे खुबसूरत लड़की जो कि वहां की नगरवधू भी थी आम्रपाली। भारतीय संस्कृति की झलक को दिखाती यह कहानी आपको बताएगी कि कैसे एक खुबसूरत लड़की से नगरवधू बनने और फिर भिक्षुणी बन जाने के पीछे क्या थी वजह।
कहते हैं कि एक गरीब जोड़े को एक अबोध मासूम सी लड़की आम के पेड़ के नीचे मिली। शायद इसलिए ही इसका नाम आम्रपाली पड़ा। आम्रपाली जब किशोरावस्था को पार करने लगी तो उसके रूप-सौंदर्य के चर्चे नगर में चारों तरफ फैल गए। नगर का हर पुरूष चाहे वह राजा हो या व्यापारी, हर कोई उसकी ओर आकर्षित होने लगा। स्थिति यह हो गई थी कि अगर आम्रपाली किसी एक को चुनती तो नगर में अशांति फैल जाती। इसलिए वैशाली के राजा ने चारों ओर शांति स्थापित करने के लिए आम्रपाली को नगरवधू बना दिया।
अब आम्रपाली जनपथ कल्याणी की भूमिका में थी। सेविका, महल और राज नर्तकी के पद से सुशोभित आम्रपाली अब अपनी इच्छानुसार लोगों का चयन कर युवापान कर सकती थी। प्रसिद्ध चीनी यात्री फाह्यान और ह्वेनसांग ने अपने यात्रा वृतांत में भी इन बातों की विस्तृत व्याख्या की है। आम्रपाली के रूप की चर्चा इतनी जगत प्रसिद्ध थी कि उसकी एक झलक पाने के लिए सुदूर देशों के अनेक राजकुमार उसके महल के चारों ओर अपनी छावनी डाले रहते थे।
एक बार जब गौतम बुद्ध के आने की बात सुन कर आम्रपाली ने अपने सोलह श्रंगार पूरे किए और परिचारिकाओं सहित गंडक नदी के तट पर बुद्ध से मिलने पहुंची तो स्वयं बुद्ध को भी अपने शिष्यों को यह कहना पड़ा कि तुम लोग अपनी आंखे बंद कर लो। बुद्ध ने जब संघ की स्थापना की तो आम्रपाली ने इस में जुड़ने की बात की लेकिन बुद्ध के शिष्यों की एक धड़ा ने इसका विरोध भी किया। लेकिन आम्रपाली की त्याग भावना को देखकर बुद्ध ने इसे स्वीकार कर लिया और भिक्षुणी संघ में जोड़ दीया। बौद्ध धर्म के इतिहास में आम्रपाली द्वारा अपने आम्रकानन में बुद्ध और उनके शिष्यों को निमंत्रित कर भोजन कराने के बाद दक्षिणा में आम्रकानन भेंट करने की बड़ी ख्याति है। आम्रपाली ने केश कटा कर भिक्षा पात्र लेकर सामान्य भिक्षुणी का जीवन व्यतीत किया।
कुछ लोगों का यह भी कहना है कि उस समय आम्रपाली एक बौद्ध भिक्षु पर मोहित हो गई थी। आम्रपाली ने बौद्ध भिक्षु को ना केवल खाने पर आमंत्रित किया बल्कि 4 महीनों के प्रवास के लिए भी अनुरोध किया। बौद्ध भिक्षु ने कहा कि वह अपने गुरु के आज्ञा के बिना यह करने में असमर्थ है। और अंत में आम्रपाली ने गौतम बुद्ध के आगे यह बात बताई और कहा कि मैं आपके भिक्षु को मोहित तो नहीं कर पाई लेकिन उनकी आध्यात्मिकता ने मुझे ही मोहित कर लिया इसलिए मैं धम्म की राह पर चलने के लिए विवश हूं। बुद्ध ने अपने शिष्यों से कहा कि उसने इस गणिका का सत्कार इसलिए स्वीकार किया क्योंकि उसने अपने त्याग के दम पर पश्चयाताप की अग्नि में जलकर खुद को निर्मल कर लिया है।