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हिमालय की कड़ियां…भाग(3)

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Himalaya: हिमालय की कड़ियां भाग-3 में आप जैसे सुधिजनों का हम स्वागत करते हैं। आज शनिवार विशेष में हम हिमालय और इससे जुड़े कुछ रोचक और पौराणिक तथ्यों से आपको रू-ब-रू कराते है। हिमालय की कड़ियां भाग-2 में आप सभी ने देखा कि हिमालय में आज भी हमारे प्राचीन समय के ऋषि मुनि और महात्मा लोग निवास करते हैं। उन्हीं महात्माओं के चर्चा को आगे बढ़ाते हुए हम बाकी बचे हुए के बारे में आज आपको बताएंगे।

हिमालय के क्षेत्र में हमें प्रकृति से जुड़े सैकड़ों चमत्कार देखने को मिलते है। हिमालय के ओर जहां सुंदर-सुंदर अद्भूत झीलें हैं तो दूसरी ओर हजारों फुट ऊंचे-ऊंचे हिमखंड। पृथ्वी की गोद में फैला हिमालय में कई सारे चमत्कारों की खान है। कहते हैं हिमालय की वादियों में रहने वाले लोग स्वस्थ्य और दीर्घायु होते हैं। इसलिए तो प्राचीन काल से इसे देवताओं का निवास स्थान भी माना जाता है। मुण्डकोपनिषद् के अनुसार सूक्ष्म शरीरधारी आत्माओं का अपना एक संघ है और इस संघ का केंद्र हिमालय की वादियों में कहीं स्थित है। इसलिए तो इसे देवात्म हिमालय भी कहा जाता है। पुराणों की माने तो हिमालय के वितस्ता नदी के किनारे ही मनुष्यों की उत्पत्ति हुई थी।

कालक्रम का पहिया घूमता गया और मनुष्य आगे बढ़ता गया। लेकिन जैसा कि हमने सुना है काल खुद को दोहराता है और कुछ शरीर इस काल से उस काल तक अपनी सुक्ष्म से दीर्घ स्वरूप धारण कर निवास करता रहता है। इसी कड़ी में शामिल है हनुमान। कहते हैं हनुमान जो को एक कल्प तक इस धरती पर रहने का वरदान मिला है। श्री मदभगवत पुराण के अनुसार हनुमान जी कलियुग में गंधमादन पर्वत पर निवास करते हैं। वैसे तो पौराणिक मान्यताओं के अनुसार तीन गंधमादन पर्वत विराजमान है- पहला हिमवंत पर्वत के पास, दूसरा उड़िसा में और तीसरा रामेश्वरम के पास। मान्याता है कि हिमालय के कैलाश पर्वत के उत्तर  गंधमादन पर्वत स्थित है। इसके दक्षिण में केदार पर्वत है। कहते हैं सुमेरू पर्वत की चारों दिशाओं में स्थित गजदंत पर्वत को उस काल में गंधमादन पर्वत कहते थे। जो कि आजकल तिब्बत के क्षेत्र में पड़ता है।

कुछ का मानना तो यह भी है कि रामायण के छोटे भाई विभिषण को भगवान राम ने चिरंजीवी होने का वरदान दिया था। रामायण के अलावे महाभारत काल के कुछ योद्धा भी है जो आज भी हिमालय के इन क्षेत्रों में रहते हैं। कहते है महाभारत काल में उत्तरा के गर्भ में ब्रह्मास्त्र उतारने के कारण भगवान श्रीकृष्ण ने अश्वत्थामा को तीन हजार सालों तक सशरीर भटकते रहने का श्राप दिया था। और अश्वत्थामा ने ऋषि वेद व्यासजी के साथ रहने का आग्रह किया था। कहा जाता है कि ऋषि वेद व्यास जो कि ऋषि पाराशर और सत्यवती के पुत्र थे कई युगों से जीवित हैं और वर्तमान में हिमालय में ही कहीं गंगा तट पर रहते हैं। ये वही ऋषि वेदव्यास हैं जिन्होंने महाभारत और पुराणों की रचना की थी। गौतम ऋषि के पौत्र कृपाचार्य जिन्होंने युद्ध में कौरवों की तरफ से लड़ाई में भाग लिया था भी उन 18  लोगों में शामिल हैं जो इस युद्ध के बाद जिंदा बच गए थे। उन्हें भी चिरंजीवी रहने का वरदान प्राप्त था। मान्यता यह है कि यह भी हिमलाय के किसी अज्ञात स्थान में वास करते हैं।

चलिए एक मजेदार चीज बताऊं तो हनुमान जी ने जिस संजीवनी का पर्वत उखाड़कर लाया था। उस स्थान विशेष का वर्णन भी हिमालय के क्षेत्र से मिलता है। हिमालय की वनसंपदा भी अतुलनीय है। यहां लाखों-करोड़ों जड़ी-बूटियां मिलते हैं। क्या आपको पता है इन दर्लभ जड़ी-बूटियों में से एक कीड़-जड़ी जिसे हिमालय वियाग्रा भी कहते हैं की कीमत 65 लाख रूपए प्रति किलो है। यह हिमालयी क्षेत्रों में तीन से पांच हजार मीटर की ऊंचाई पर मिलता है। चीन के बाजारों में इसकी बहुत ज्यादा मांग है। वहां इसे यार्सागुम्बा या यारसागम्बू के नाम से जाना जाता है। हालांकि भारत में यह जड़ी-बूटी प्रतिबंधित है।

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