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राष्ट्रीय एकता दिवस पर सरदार पटेल की कुछ रोचक कहानियां

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Sardar Patel Story on National Unity Day 2023:  राष्ट्रीय एकता दिवस भारत के पहले गृह मंत्री और स्वतंत्रता सेनानी सरदार वल्लभ भाई पटेल की जयंती के रूप में मनाया जाता है। आजादी के बाद के भारत को एक माला में पिरो कर एक भारत के सांचे में ढ़ालने वाले लौह-पुरूष की जयंती हमें एकता के सूत्र का सही मतलब बतलाती है। साल 2014 में भारत सरकार ने सरदार वल्लभ भाई पटेल को उनकी जयंती पर श्रद्धांजलि देने के उद्देश्य से राष्ट्रीय एकता दिवस के रूप में मनाने की शुरूआत की थी। इसमें कोई संदेह की बात नहीं कि उन्होंने भारत को एकजुट रखने के लिए कड़ी मेहनत की थी। इस दिन रन फॉर यूनिटी के दौड़ का भी आयोजन किया जाता है। आइए जानते हैं सरदार वल्लभ पटेल से जुड़ी कुछ अनोखी कहानियों के बारे में-

बोरसाद की घटना जिसने पटेल को देश में नाम दिया।

गुजरात का एक ताल्लुका है बोरसद। साल 1922 में ब्रिटिश सरकर ने यहां के किसानों पर लगान की दर इतना बढ़ा दिया कि जनता में चारों ओर त्राहिमाम् मच गया। उन दिनों में बोरसद ताल्लुक में देवर नाम का एक डाकू हुआ करता था जिसका किसानों और जमींदारों के बीच बड़ा आतंक था। उसके इस आतंक से निपटने के लिए ब्रिटिश सरकार ने वहां कुछ सिपाही भी तैनात किए थे। लेकिन बिडंबना तो देखिए सिपाही जनता को सुरक्षा देने की जगह उनके साथ ही मिलकर डकैती करने लगे। अंग्रेज भी इससे परेशान होकर एक अन्य डाकू से मिलकर देवर बाबा को गिरफ्तार करने की प्लानिंग की। और हुआ कि अब तो वह डाकू भी उस क्षेत्र में लूटपाट करने लगा। हुआ वही अब एक जगह पर दो दो डाकू। लोगों के बीच डर इतना बढ़ गया था कि वे शाम को होते ही घर का दरवाजा बंद कर लेते थे। गांव में चारों ओर हाहाकार मच गया था। सरकार पर लोगों का विश्वास नहीं रहा। तब कुछ लोगों ने सरदार वल्लभ भाई पटेल के पास गए। उन्होंने वहां जा कर इसकी जांच-पड़ताल की। इसी बीच सरकार ने सिपाहियों के रख-रखाव पर आए खर्च को वसूल करने के लिए किसानों पर नया कर लगा दिया।

वल्लभ भाई पटेल ने किसानों को नया टैक्स देने से मना किया और डाकुओं का मुकाबला करने के लिए गांव वालों को स्वयं-सेवक दल बनाने की सलाह दी। देखते ही देखते थोड़े समय में ही कई स्वयं-सेवक रक्षा दल का गठन हो गया। योजना रंग लाने लगी थी। स्वयं-सेवक दल के पहरे के कारण गांव में इस तरह की घटनाओं की बारंबारता कम हो गई थी। अब पुलिस की भी जरूरत नहीं रही। टैक्स ना देने की कवायद रंग लाई और आखिरकार अंग्रेजों को अपना हुक्म वापस लेना पड़ा। बोरसद की इस विजय ने वल्लभ भाई का नाम देश भर में प्रसिद्ध कर दिया।

क्या हुआ जब बीच कोर्ट में पटेल को अपने पत्नी के मरने की खबर मिली

बात पटेल की कर्तव्य परायणता की हो और इसकी मिसालें मौजूद ना हों हुआ है कभी ऐसा। बात उन दिनों की है जब पटेल की पत्नी गंभीर रूप से बीमार थीं। साल 1909 की 11 जनवरी का दिन, पटेल एक केस की सुनवाई के लिए कोर्ट में पहुंचे और अपनी ओर से दलील देने लगे। केस में संबंधित पक्ष की जिरह चल ही रही थी कि अचानक बीच कोर्ट में एक कर्मचारी आया। उसने वहां मौजूद न्यायाधीश महोदय की आज्ञा लेकर एक टेलिग्राम पटेल के हाथ में रखा और चला गया। आपको पता है उस टेलिग्राम में क्या लिखा था। उसमें लिखा था कि पटेल जी की पत्नी का निधन हो गया है। पटेल ने टेलिग्राम को खोला, पढ़ा और फिर जेब में रख लिया। जब जिरह की प्रक्रिया पूरी हुई तो जज ने इस बारे में पूछा कि आखिर उस टेलिग्राम में क्या था तो उन्होंने पूरे वाक्ये के बारे में बताया। जज साहब भी यह जानकर हतप्रभ थे कि कैसे एक व्यक्ति अपनी पत्नी की मृत्यु की सूचना पा कर अपनी मुवक्किल की ओर से इतनी अच्छी और शानदार जिरह कर सकता है। जब जज ने इसका कारण पूछा तो उन्होंने इसका उत्तर दिया कि उनका मुवक्किल झूठे मामले में फंसाया गया है। ऐसे में अन्याय के खिलाफ इस लड़ाई में वह अपने व्यक्तिगत कारण से कैसे पीछे हठ सकते थे। ऐसी कर्तव्यपरायणता थी सरदार पटेल की।

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