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कैसे पड़ा नसरूद्दीन होजा का नाम मुल्ला दो प्याजा..

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mulla do pyaja

Mulla do Pyaja: किताबें हमारे जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं, जो हमें ज्ञान, मनोरंजन, और सोचने का मौका प्रदान करती हैं। किताबें हमारे विचारों को विस्तार देती हैं, हमें नये दुनियों में ले जाती हैं, और हमारे जीवन को रूचिकर बनाती हैं। आपने बचपन में कहानियों की कई किताबें पढ़ी होंगी। कई सारे चरित्र ऐसे होंगे जो आपके दिलो-दिमाग पर आज भी छपे होंगे। जी हाँ इन्हीं कई सारे चरित्रों में से एक हम बात कर रहे हैं भारत की किस्से कहानियों के एक ऐसे व्यंग और तीक्ष्ण बुद्धि के धनी पात्र की जिसे इतिहास मुल्ला दो प्याजा के नाम से जानता है।

मुल्ला दो प्याजा एक प्रसिद्ध नसरुद्दीन होजा की कहानी है, जिन्होंने अपनी अद्वितीय कहानियों के लिए दुनिया भर में प्रसिद्धता प्राप्त की। मुल्ला नसरुद्दीन का जीवन और उनकी कहानियाँ आज भी हमारे बीच जीवित हैं और हमें कई महत्वपूर्ण सिख देती हैं।

मुल्ला नसरुद्दीन होजा, जिन्हें आमतौर पर ‘मुल्ला दो प्याजा’ के नाम से जाना जाता है, अकबर के दरबार में एक मशहूर हास्य कवि और कहानीकार के रूप में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते थे। उन्होंने अकबर के शासनकाल के दौरान दरबार में मुल्ला नसरुद्दीन होजा का नाम उनकी कहानियों और व्यक्तिगत चरित्र के माध्यम से प्रसिद्ध हुआ। उन्होंने अपने कहानियों में विविध चरित्रों के माध्यम से सामाजिक, धार्मिक, और राजनीतिक संदेश प्रस्तुत किए, और उनकी कहानियां आम जनमानस में मनोरंजन के साथ-साथ शिक्षा भी प्रदान करती थीं।

मुल्ला नसरुद्दीन का नाम उनकी कहानियों और मजाकिया प्रस्तुतियों के माध्यम से प्रसिद्ध हो गया, जिनमें वे आम जनमानस की समस्याओं और दिनचर्या की उलझनों का सामंजस्य स्थापित करते थे। उनके किस्से और आलोचना वाद ने लोगों के दिलों में जगह बनाई और उन्हें मुस्लिम तथा हिन्दू दोनों समुदायों के बीच प्रसिद्ध किया। इसी तरह, मुल्ला नसरुद्दीन का नाम विभिन्न पुस्तकों, कहानियों, और उनके अनुयायियों के माध्यम से प्रचारित हुआ, जिससे समय के साथ उनकी अहमियत और लोकप्रियता बढ़ गई।

इनके पिता अध्यापक थे और इसीलिए मुल्ला दो प्याजा की रुचि भी किताबों में ज्यादा थी। मुल्ला दो प्याजा का सपना था की वो अकबर के दरबार में रहें और इसके लिए उन्होने काफी संघर्ष भी किया और तिकड़म भी लगाए। दरबार में घुसने के लिए सबसे पहले उन्होने शाही मुर्गी खाना में प्रभारी के पद पर काम शुरू किया। उन्होंने काम बहुत चालाकी से किया और मुर्गियों को वो खाना खिलाया जो शाही रसोई में बच जाता था। इससे हुआ ये की मुर्गियों के भोजन में किया जानें वाला खर्चा बहुत कम हो गया और खाते में काफी बचत हुई। इससे अकबर ने प्रभावित होकर मुल्ला दो प्याजा को शाही पुस्तकालय की जिम्मेदारी सौंप दी।

मुल्ला दो प्याजा इससे खुश नहीं थे क्योंकि उनको दरबार में जगह बनानी थी। दरबार में जो तोहफे में मखमल के कपड़े मिलते थे उसको इखट्टा करके मुल्ला दो प्याजा ने पुस्तकालय के पर्दे बनवा दिए। जब अकबर पुस्तकालय जाता तो पुस्तकालय देखकर खुश हो जाता और उसने खुश होकर मुल्ला दो प्याजा नसरूद्दीन होजा को दरबार में शामिल कर लिया। नसिरूद्दीन का नाम मुल्ला दो प्याजा होने की घटना भी अनोखी है। कहते हैं एक दिन दरबार में शामिल फैजी ने होजा को खाने पर बुलवाया और मुर्गे का मांस बनवाया। यह मुर्गे का मांस नसरूद्दीन होजा को बहुत पसन्द आया और यह नसरूद्दीन होजा को इतना पसंद आया की जब भी दावत होती तो यह “मुर्ग दो प्याजा” नसरूद्दीन होजा के लिए जरूर बनता था।

जब अकबर ने शाही रसोई की जिम्मेदारी नसरूद्दीन होजा को सौंपी तो अब्दूल हसन ने “मुर्ग दो प्याजा” बनवाकर अकबर को भी खिलाया और अकबर को यह इतना पसन्द आया की अकबर ने नसरूद्दीन होजा का नाम “दो प्याजा” रख दिया। चुंकि नसरूद्दीन होजा मस्जिद में ईमाम भी रह चुके थे तो लोग इन्हें मुल्ला भी कहते थे। इस तरह नसरूद्दीन होजा का नाम मुल्ला दो प्याजा पड़ गया।

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