Home Home-Banner छोटी दीपावली को क्यों मनाई जाती है नरक चतुर्दशी

छोटी दीपावली को क्यों मनाई जाती है नरक चतुर्दशी

3606

chhoti diwali

Chhoti Deepawali and Narak Chaturdashi: दीवाली के ठीक एक दिन पहले छोटी दीपावली मनाई जाती है। जिसे रूप चौदस और नरक चतुर्दशी के रूप में मनाया जाता रहा है। इस दिन यम के नाम का दिया निकालकर पूजा करने का विधान है। साथ ही पारंपरिक तौर पर उबटन और स्नान का नियम भी है। इस वर्ष 11 एवं 12 नवंबर दोनों दिन नरक चतुर्दशी मनाई जा रही है। मुहूर्त के अनुसार छोटी दीपावली कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मनाई जाती है।

इस वर्ष यह तिथि 11 नवंबर यानी कि आज शनिवार को दोपहर 01 बजकर 57 मिनट से शुरू हो रही है। और समाप्त अगले दिन यानी कि 12 नवंबर रविवार को दोपहर 02 बजकर 44 मिनट पर हो रही है। चूंकि छोटी दीपावली यानी कि नरक चतुर्दशी के लिए प्रदोष काल 11 नवंबर शनिवार को प्राप्त हो रहा है, इसलिए छोटी दीपावली 11 नवंबर को मनाई जाएगी।

दीपोत्सव के दूसरे दिन यानी कि धनतेरस के अगले दिन छोटी दीपावली का पर्व मनाया जाता है। इस दिन लोग अपने घर की सफाई करते हैं और दीप जलाकर खुशियां मनाते हैं। कहा जाता है कि इस दिन घर में माता लक्ष्मी का आगमन होता है। लेकिन क्या आपको पता है इस दिन नरक चतुर्दशी क्यों मनाई जाती है। आइए जानते हैं कि नरक चतुर्दशी क्यों मनाते हैं और इसे छोटी दीपावली क्यों कहा जाता है।

प्रतिवर्ष कार्तिक मास में कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को नरक चतुर्दशी मनाई जाती है। नरक चतुर्दशी का यह पर्व धनतेरस के ठीक एक दिन बाद और दीपावली से एक दिन पहले मनाने का विधान है। इस दिन को नरक चतुर्दशी कहने के पीछे की मान्यता है कि इस दिन भगवान विष्णु के अवतार श्री कृष्ण ने इस दिन को ही नरकासुर नाम के राक्षस का वध किया था। पौराणिक कथाओं के अनुसार श्री कृष्ण ने नरकासुर के आतंक से पूरे जन को भयमुक्त किया था और उसे मारकर बंदी गृह में कैद 16 हजार महिलाओं को मक्त कराया था। इस उपलक्ष्य में तब से ही अधर्म पर धर्म की इस जीत के लिए दीपावली के एक दिन पहले यानी कि छोटी दीपावली पर नरक चतुर्दशी भी मनाया जाता है।

नरक चतुर्दशी के दिन घर की साफ सफाई और सजावट की जाता है। घर का कबाड़ और टूटा फूटा सामान को बाहर किया जाता है। संध्या के समय घर के द्वार पर दोनों कोनों में दीप जलाए जाते हैं और मात लक्ष्मी की पूजा की जाती है। धार्मिक मान्याता के अनुसार इस दिन घर के मुख्य द्वार पर दीपक जलाने से तथा यम देव की पूजा से अकाल मृत्यु का भय खत्म होता है। इस कारण इस दिन यमराज के नाम का दीपक जलाया जाता है। जीवन के सभी पापों का नाश करने और जीवन की सारी परेशानियों से छुटकारे के लिए शाम के समय यम देव की पूजा का विधान है।

और पढ़ें-

जानिए माथे पर लगाने वाले सिंदूर के पेड़ के बारे में

दक्षिण की गंगा की है अपनी कहानी..

सिर्फ संस्कृत ही नहीं और भी भाषाओं में है रामायण..

 

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here