Home Home-Banner गोंड आदिवासियों की अदभूत कला का जीता जागता उदाहरण- छीपा प्रिंटिंग

गोंड आदिवासियों की अदभूत कला का जीता जागता उदाहरण- छीपा प्रिंटिंग

3693

Chhipa Printing: हर रोज बदलती और दौड़ती-भागती इस दुनिया में कितना कुछ पीछे छूटता जा रहा है, क्या हमें इसका एहसास है ? सब कुछ पाना है और जिंदगी भी जीनी है लेकिन फुरसत के दो पल नहीं है हमारे पास। दुनिया में विकास को मशीनों ने परवान तो चढ़ाया लेकिन साथ ही इसे बनाने वाले इंसानों के हाथों की कारीगरी को कहीं घुप अंधेरी कोठरी में भी समेट दिया। इसी अंधेरी कोठरी से आज भी अपनी पहचान के लिए दौड़ती, हांपती और अपने अस्तित्व के लिए लड़ती एक ऐसी कला के बारे में आज हम आपको बताएंगे, जिसे मध्यप्रदेश के सतपुड़ा के जंगलों में रहने वाले छीपा आदिवासियों ने अपनी एक अलग पहचान दी।

छीपा आदिवासियों की इस हस्तकला को छिपा प्रिटिंग के नाम से जाना जाता है। समय के साथ भले ही हम इसे बिसर गए हों लेकिन रंगरेजी और छपाई ने सदियों से भारतीय इतिहास और विश्व पटल पर अपनी एक अलग पहचान बरकरार रखी है। वैसे तो हमारी संस्कृति में छपाई का संबंध सिंधु घाटी के समय से यानी कि आज से लगभग तीन हजार साल से भी पहले है। इसलिए तो कहते हैं छीपा शब्द उतना ही पुराना है जितना छपाई का इतिहास।

प्राचीन समय में अपनी छीपा कला के दम पर वहां रहने वाले आदिवासी समाज के लोग अपनी सामाजिक और आर्थिक प्रतिष्ठा को सुदृढ़ करने के साथ-साथ अच्छा खासा व्यवसाय भी करते थे। देशी और विदेशी बाजारों में इसकी अच्छी खासी मांग हुआ करती थी। सुंदर-सुंदर चित्रों को पारंपरिक हैण्ड ब्लॉक प्रिंटिंग की मदद से कपड़ो पर उकेरने की यह अद्भुत कला अपने में काफी आकर्षक और लोकलुभावनी थी। लेकिन वैश्विक स्तर पर मशीनी युग और औधोगिक क्रांति के असर ने मशीनी स्पर्धा में इसे बहुत पीछे छोड़ दिया। समय की मार ने इसे विलुप्ति के कगार पर लाकर खड़ा कर दिया था। इससे जुड़े लोग आर्थिक तंगी के कारण या तो अपने स्थान से पलायन कर गए या तो अपनी आजीविका ही बदल ली।

हालांकि छिंदवाड़ा की इस विशेष कला को कुछ सामाजिक संस्थाओं ने फिर से सहेजने की कोशिश की है। जिसमें ASHA- (Aid and Survival of Handicraft Artisans) जैसी संस्थाओं ने अपनी अग्रिम भूमिका दी है। इन्होंने ना सिर्फ इस कला को पुनर्जीवित किया है बल्कि इस ब्लॉक प्रिंटिंग में स्थानीय लोगों को प्रशिक्षित भी कर रहे हैं। नित नए अनुसंधानों और कलाप्रेमियों तक इसकी सहज पहुंच को आसान बनाकर फिर से इस छीपा ब्लॉक प्रिंटिंग को उसकी खोई हुई पहचान लौटाने की कोशिश जारी है।

और पढ़ें-

लाख की चूड़ियों का वर्णन हमारे भारतीय वेद-पुराणों में भी है

बरसाने की विश्व प्रसिद्ध होली का क्या है इतिहास, जानें इस परंपरा के बारे में विस्तार से

वडे बनने और बड़े बनने में हैं कई समताएँ

 

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here