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आओ योग को जानें

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इन दोनों देश-विदेश में चहुं ओर योग का बोलबाला है। प्रत्येक व्यक्ति योग के नाम पर कुछ ना कुछ कर रहा है। शीर्षासन से लेकर पेड़ पर लटकने जैसी प्रदर्शन भरी कहानियां रोज देखने सुनने को मिलती हैं। हर कोई अपनी अपनी योग प्रणाली से लोगों को स्वस्थ करने और परमात्मा से जोड़ने का दावा करता है। इस भाग दौड़ में लगता है असली योग कहीं छूटता जा रहा है। जिसे पुन: समाज के बीच, लोगों के जीवन के बीच प्रतिष्ठित करने की आवश्यकता है। पहले हमें योग के मूल को समझना आवश्यक है। जिस योग को भारतीय ऋषियों, संतों ने जनमानस को दिया है वह योग ना तो आसन है, ना प्राणायाम ना ही एकाग्रता। यह एक ऐसी साधना है जिसमें मनुष्य को स्वयं को समष्टि में समर्पित करना होता है। योग का अर्थ है जोड़ना परंतु दूसरा अर्थ है की चित्त की एकाग्रता कैसा अवलंबन लिया जाए कि हमारा मन शांत हो जाए। व्यक्ति सारे काम करता हूआ भी इस योग को कर सकता है। अपने कार्य को कुशलता से करना योग है।जब कोई कार्य करते-करते हम उसमें खो जाए उस कार्य से जुड़ जाए तो वह योग है‌ भगवान श्री कृष्ण ने तो भगवद्गीता  में योग शब्द का प्रचुर मात्रा में उपयोग किया है ।जहां उपदेश है वह योग जोड़ दिया। भगवद्गीता को व्यास जी ने योग शास्त्र कहा है। भगवान श्री कृष्ण ने गीता में योग की आठ विधाओं का वर्णन किया है। ध्यान योग, ज्ञान योग, कर्म योग, भक्ति योग, हठयोग,लययोग, राजयोग, मंत्रयोग। जिस किसी भी माध्यम का आश्रय लो उसमें एकाग्रता धारण करना योग है। योग शब्द अत्यंत व्यापक है।  आज के युग में बढ़ते हुए मानसिक तनाव व शारीरिक अस्वस्थता के कारण व्यक्ति शारीरिक गतिविधियों से युक्त योग की शरण में जा रहा है। योग के नाम पर यह प्रचलन योग की मौलिकता पर कुठाराघात है । अध्यात्म वेत्ता  कहते हैं कि व्यक्ति द्वारा अपनी आत्म चेतना को परमसत्ता से जोड़ना ही योग है। इसी से मानव का उत्थान शुरू हो जाता है। वास्तव में तथाकथित योगाचार्य या तो इस तथ्य को समझते नहीं है समझना नहीं चाहते। पतंजलि ऋषि ने चित्तवृत्ति निरोध  को योग की संज्ञा दी है। योग हमारी आंतरिक चेतना को स्थूल से सूक्ष्म की ओर परिवर्तित करता है। इसके अंतर्गत साधक योग अभ्यास द्वारा अपने स्थूल शरीर से प्राण फिर मन फिर आत्मा में पहुंचने का प्रयास करता है। यही योग प्रणाली है। इससे साधक का आत्म विकास का मार्ग प्रशस्त होता है। और आत्म परिष्कृत  व्यक्ति को ही योगी की संज्ञा दी जाती है।

लेखिका- रजनी गुप्ता

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