Aravali mountain: जी हां पाठकों आज शनिवार है और मुझे पूरा विश्वास है कि आप आज के शनिवार विशेष की राह देख रहे होंगे। हमने शनिवार विशेष में भारत के विभिन्न पर्वतों के बारे रोचक जानकारियों को देने की कोशिश की। घर बैठे आप जरूर एक बार हमारे लेख के माध्यम से वहां मानसिक तौर पर घूम तो आते ही होंगे। तो चलिए इस बार हम आपको घूमाने ले चलते हैं अरावली की पहाड़ियों में। जी हां सही सुना आपने अरावली जो कि हमारे देश के उत्तर पश्चिम में सीना ताने खड़ा है। खुद में ना जाने कितने हजार दशक के इतिहास को समेटे यह आज भी उनकी गवाही देने की कूबत रखता है।
विश्व की प्राचीनतम पर्वतों में से एक अरावली उत्तर भारत में 600 किलोमीटर से ज्यादा लंबी है। भौगोलिक तौर पर देखें तो यह गुजरात, राजस्थान, हरियाणा, दिल्ली में फैला हुआ है। अरावली को क्षेत्रीय स्तर पर “मेवात” भी कहते हैं। स्थानीय लोगों की माने तो बरसात के मौसम की हरियाला से हुए श्रृंगार के कारण यह स्वत: ही चित्त को आकर्षित कर लेती है। बरसात और बादलों को गले लगाती इनकी चोटियां मन मोह लेते हैं।
राजस्थान की अरावली श्रृख्ला तो पर्वतारोहियों की पहली पसंद में से एक है। पर्वत क्षेत्र में जंगल, वनस्पति, वन्यजीव, झीलें, लहराते घास के मैदान और नदियां इनको खास बना देती है। अरावली के उत्तरी क्षेत्र कई पवित्र स्थल और मनोहर दृश्य वाले स्थान हैं। आइए इनके बारे में कुछ बात करते हैं। जिसमें से एक है माउंटआबू के पर्वत। पूरे अरावली में यह पर्यटन के लिहाज से एकमात्र हिल स्टेशन है। कहते हैं माउंट आबू का नाम अर्बुदा नामक सांप के नाम पर पड़ा जिसने भगवान शिव के नंदी बैल की रक्षा की थी। माउंटआबू अपने मनमोहक झील, ठंडा मौसम, के कारण काफी पसंद किया जाता है।
इसी पर्वत के शीर्ष पर विराजता एक दुर्ग है अचलगढ़। इतिहास की माने तो मेवाड़ के महाराणा कुम्भा ने इसी प्राचीन दुर्ग के भगनावशेषों पर एक नए दुर्ग का निर्माण करवाया था। दुर्ग के अंदर कुम्भा के राजप्रसाद, रानी का महल, सावन-भादो झील इसके स्थापत्य को दर्शाते हैं। अरावली के पहाड़ो के बीच स्थित “नक्की झील” बहुत खूबसूरत है। यह भारत का एकमात्र कृत्रिम झील है जो समुद्र तल से 1200 मीटर की ऊंचाई पर है। वहां के स्थानीय लोगों की मान्यता है कि इस झील का निर्माण देवाताओं ने अपने नाखुनों से किया था। इसलिए इसका नाम नक्की झील पड़ा।
अरावली की शोभा में चार चांद लगाता देलवाड़ा का मंदिर संगमरमर की सफेदी से अपनी सादगी को बयां करता जैन मन्दिरों के पांच मंदिरों का समूह है। इनमे दो मंदिर विशाल तथा भव्य है और बाकी के तीन उनके अनुपूरक है। सबसे बड़ा विमल वसाही मंदिर जैन धर्म के पहले तीर्थंकर आदिनाथ को समर्पित है। जिसे कि गुजरात के चालुक राजा भीमदेव के मंत्री तथा सेनापति विमल शाह ने 1031 में बनवाया था। मंदिरों की कतार में एक और मंदिर है जो अरावली की पवित्रता को और बढ़ाती है वह है- अर्बुदा देवी का मंदिर। यह मंदिर सती के 51 शक्तिपीठों में से एक है। कहते हैं कि यहाँ माता सति के होठ गिरे थे। इसके साथ ही माउंट आबू से 15 किलोमीटर दूर गुरु शिखर अरावली की सबसे ऊंची चोटी है, जिसके शिखर पर गुरु दत्तात्रेय का मंदिर विराजमान है। इस पर रामानंद के चरण चिन्ह भी बने है। आबू पर्वत पर ही अचलगढ़ पहाड़ियों पर किले के समीप अचलेश्वर महादेव का प्राचीन मंदिर पूरे भारत में अकेला ऐसा मंदिर है जहां शिव के अंगूठे की पूजा होती है। मंदिर में पंच धातु से बनी नंदी की विशाल प्रतिमा भी है। यहां के शिवलिंग को स्वयंभू शिवलिंग के रूप में जाना जाता है। तो कैसी लगी आपको आज की जानकारी। आगे भी हम पहाड़ो के सीरिज में ऐसे ही भारत के पर्वतों और वहां से जुड़े किस्सों को आप के साथ साझा करते रहेंगे। मिलते हैं फिर अगले शनिवार को।