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बच्चों को संस्कारवान कैसे बनाएं।

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बाल्यावस्था एक ऐसी अवस्था होती है जब बच्चों को मनचाही दिशा में मोड जा सकता है ।यदि उन्हें उचित मार्गदर्शन मिले तो उनकी ऊर्जा सही दिशा में प्रवाहित हो सकती है। बच्चों के  सर्वांगीण विकास के लिए आवश्यक है कि शुरू से ही उन पर ध्यान दिया जाए। उनको प्रारंभ से ही अच्छे संस्कार दिए जाएं और संस्कार तो बच्चे मां के गर्भ से ही सीखते हैं। अभिमन्यु का उदाहरण हमारे सामने है। उन्होंने अपनी मां के गर्भ से ही चक्रव्यूह भेदन सीखा था।  जो भी मां गर्भधारण के दौरान सोचती, करती और पढती है उसका बच्चे के विकास में बहुत प्रभाव पड़ता है और इसके लिए विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है ।माता-पिता का यह परम कर्तव्य है कि बच्चों को सही रास्ते में आगे बढ़ाने में मदद करें। हाथ धोना, सड़कों पर ना थूकना, कूड़ेदान में कचरा फेंकना आदि जैसे अच्छे संस्कार बच्चों में तब तक प्रोत्साहित किए जाने चाहिए जब तक यह उनकी आदत ना बन जाए ।बच्चों को घर और सार्वजनिक स्थान पर स्वच्छता बनाए रखने के लिए चतुराई पूर्वक मार्गदर्शन दिया जाना चाहिए। अच्छे संस्कारों से मानव व्यक्तित्व का विकास होता है ।जबकि गलत कार्य बच्चों को अंधकार की ओर ले जाते हैं।बच्चों में अच्छे संस्कार विकसित करने में मां-बाप की अहम भूमिका होती है। माता-पिता संस्कारी होंगे तभी बच्चे संस्कारी बनेंगे। आदतों की पुनरावृत्ति से ही संस्कार बनते हैं। अतः अभिभावकों का यह प्रयास रहना चाहिए कि बच्चों में सतत सद्गुणों का विकास होए। बच्चों की प्रत्येक क्रिया पर ध्यान देना चाहिए ।बच्चा यदि बड़ा होकर कुछ गलत करता है तो यही कहा जाता है कि इसके मां-बाप ने इसको कैसे संस्कार दिए हैं। सुल्ताना डाकू को जब फांसी होने लगी तो उसने अपनी मां से मिलने की इच्छा जताई और जैसे ही उसकी मां पास आई तो उसने मां के कान काट लिए। मां ने पूछा कि है क्या कि यह कर रहे हो तो वह बोला जब मैं छोटा था तो मैं कहीं से भी कुछ चीज चुरा कर लाता था तो तुम खुश होती थी मुझे तब नहीं पता था कि क्या सही है क्या गलत। परन्तु यदि तुम मुझे मेरी गलती पर उस समय थप्पड़ लगा देती तो आज मुझे फांसी ना होती, मैं इतना बड़ा डाकू ना बनता।संस्कार बचपन से ही बच्चों में डाले जाते हैं। पौधों की टहनी को जिस किसी भी दिशा में मोडा जा सकता है परंतु जब वह पेड़ बन जाता है तो टहनी को यदि मोडे  तो वह टूट जाती है , मुड़ती नहीं। अतः बचपन से ही बच्चों की परवरिश करते समय बहुत सतर्क रहने की आवश्यकता है और साथ में बच्चा  किसके साथ उठता बैठता है यह जानकारी रखना अति आवश्यक है क्योंकि सालों की संगति जिस बच्चे को राम नहीं बना सकी बीस दिनों की संगति उसे रावण बनाने में देर नहीं लगाती। छत्रपति शिवाजी की माता जीजाबाई ने शिवाजी के अंदर बचपन से ही निडरता, वीरता के संस्कार भरे। वह इतिहास से वीरों की कहानी शिवाजी को सुनाती थी।बच्चे हमारे देश समाज संस्कृति और सभ्यता का भविष्य है, इस भविष्य के निर्माण में अभिभावक, शिक्षक की भूमिका बहुत ही महत्वपूर्ण है। यदि हम सशक्त देश व समाज का निर्माण करना चाहते हैं तो हमें बाल्यावस्था से बच्चों के सर्वांगीण विकास पर ध्यान देना होगा।

लेखिका- रजनी गुप्ता

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