CAPTAIN MOHAN SINGH:बात तब कि है जब भारत की आजादी को पाने के लिए सबका खून खौल रहा था। हर एक भारतीय चाहें वह देश की धरती पर हो या विदेश की धरती पर, हर कोई अपनी जान की बाजी लगा कर भारत माता को गुलामी की जंजीरों से आजाद कराने को उतावला था। इसी कड़ी में आता है साल 1945 का समय, जब भारत की आजादी के लिए बना था आजाद हिन्द फौज। आपने तो पढ़ा ही होगा कि आजाद हिन्द फौज का गठन जापान में रास बिहारी बोस ने किया था। बाद में उन्होंने इसकी कमान देश के युवा खून सुभाष चंद्र बोस को सौंप दी थी।
लेकिन आज हम आपको उसी आजाद हिन्द फौज के युद्ध क्षेत्र में असली नेतृत्वकर्ता के बारे में बताएगें। जी हां हम बात कर रहे हैं आजाद हिन्द फौज के पहले जनरल कैप्टन मोहन सिंह जी की। उन्होंने ही युद्ध के मैदान में आजाद हिन्द फौज के जवानों का नेतृत्व किया था। पंजाब के सियालकोट में जन्में इस योद्धा शुरू से ही एक कुशल नायक था। ब्रिटिश भारतीय सेना की 14वीं पंजाब रेजिमेंट में अपनी बहादुरी के दम पर उसने सेना में एक सम्मानित पद पाया था। समय था दूसरे विश्वयुद्ध का। जब उन्हें ब्रिटेन द्वारा मलाया के सैनिकों में शामिल किया गया था। उस युद्ध में एक तरफ जापान पर्ल हार्बर पर बमबारी करने के कारण युद्ध में अपनी भूमिका को दमदार करने में लगा था तो वहीं दूसरी तरफ ब्रिटेन, सोवियत संघ और अमेरिका अपनी धुरी साधने में लगे थे।
जापान जो कि जर्मनी का एशियाई सहयोगी भी था, दक्षिण पूर्व एशिया में मित्र देशों की सेना यानी कि ब्रिटेन, रूस और अमेरिका को खदेड़ने में लगा था। इसी क्रम में जापान ने ब्रिटने के हजारों सैनिकों को बंदी बनाया जिसमें गुलाम भारत के सैनिक भी शामिल थे। इसमें शामिल थे हमारे मोहन सिंह जी। इसी दौरान जब आजाद हिन्द फौज का गठन हुआ तो भारत को अपने देश की आजादी के लिए लड़ने वाले वीर सैनिक की आवश्यकता थी। तब आजाद हिन्द फौज ने जापान से आग्रह किया कि वह उनके जेलों में बंद भारतीय सैनिकों को छोड़ दें और उन सैनिकों से अपने देश की आजादी के लिए लड़ने का आग्रह किया। जापान के समर्थन के बाद लगभग 40 हजार भारतीय सैनिकों की फौज खड़ी हो गई।
इस आजाद हिन्द फौज ने अपना पहला जनरल बनाया कैप्टन मोहन सिंह जी को। हांलांकि कुछ समय बाद ही मोहन सिंह को जापानियों के इरादों पर शक हुआ। जिसके बाद जापान ने उन्हें हिरासत में ले लिया। लेकिन जब नेता जी टोक्यो पहुंचे तो उन्होंने अधकारियों से चर्चा कर उन्हें छोड़ने को कहा। हालांकि जापान की हार के साथ आजाद हिन्द फौज की ताकत भी कम पड़ रही थी। ब्रिटेन ने एक बार फिर से आईएनए के सैनिकों को बंदी बना लिया। जिन्हें भारत की स्वतंत्रता मिलने के बाद आजाद कर दिया गया। स्वतंत्र भारत में मोहन सिंह ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के साथ राज्यसभा का चुनाव भी लड़ा और 80 साल की आयु में 1989 में इस दुनिया को अलविदा कर दिया।
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