हमारे सभी वेद और पुराण संस्कृत में लिखे हुए है| पर आज के समय में जहां लोग हिंदी भी ठीक ढंग से नहीं बोल पाते है, वहीँ भारत में कुछ ऐसे गांव भी हैं, जहां के लोग आज भी सिर्फ संस्कृत में ही बात करते हैं| यानी कि, उनकी आम बोल चाल की भाषा संस्कृत है और यह सिर्फ हिंदी भाषी प्रदेशों में ही नहीं हैं, बल्कि इनमें से 2 गांव कर्नाटक में भी आते हैं|
आपको यह जानकर हैरानी होगी कि इन गांवों में हिंदी या कोई क्षेत्रीय भाषा का उपयोग नहीं होता है| यहां की पहली भाषा संस्कृत है और इनको संस्कृत गांव के नाम से भी जाना जाता है| सबसे पहले हम बात करेंगे “गनोड़ा गांव” की, जो राजस्थान के बांसवाड़ा जिले में स्थित है| करीब 20 साल पहले यहां के लोग अपनी क्षेत्रीय भाषा में बात करते थे| यहां संस्कृत भाषा का चलन तब शुरू हुआ, जब यहां के स्कूलों और कॉलेजों के करिकुलम एक्टिविटी में संस्कृत भाषा को शामिल किया गया। फिर बच्चों के साथ – साथ बड़े भी संस्कृत में रुचि लेने लगे|
दूसरे नंबर पर आता है मध्यप्रदेश के “राजगढ़ का झिरी”, जो मध्यप्रदेश से 45 किलोमीटर की दूरी पर है| यहां की आबादी 1000 लोगों के आसपास की है| यहां की दीवारों में संस्कृत के श्लोक लिखे गए है| यहां की पुरानी पीढ़ी आने वाली पीढ़ी को संस्कृत सिखाती है| इतना ही नहीं, यहां की महिलाएं शादियों में भी संस्कृत में गीत गाती हैं|
अब तीसरे नंबर पर आता है ओडिशा का “सासना गांव”, जहां की आबादी लगभग 300 है| यहां ज्यादातर ब्राह्मण रहते हैं। संस्कृत भाषा सीखना यहां की परंपरा का अहम हिस्सा रहा है| सबसे खास बात तो यह है कि यहां कवि कालीदास के नाम पर एक मंदिर भी है।
अब हम आपको ले चलते हैं हमारे आखरी के दो गांवों में जिसमें से एक कर्नाटक के “होसा हल्ली” में है| यहां की भाषा कन्नड़ है| यहां के स्कूलों में करीब 5 हजार लोगों को संस्कृत की शिक्षा दी जाती है। इस गांव का उद्देश्य, इस भाषा को लुप्त होने से बचाना है|
आखिरी है, कर्नाटक का मट्टूर गांव। इस गांव को जुड़वा गांव भी कहा जाता है| माना जाता है कि 16वीं सदी में राजा कृष्ण देव राय ने होसा हल्ली और मट्टूर को संस्कृत में समृद्ध बनाए रखने के लिए इसके प्रचार प्रसार का केंद्र हल्ली और मट्टूर को बनाया था|