History of Carpet Weaving in India: भारत में कालीन बुनाई का एक लंबा इतिहास रहा है। यह आज एक अच्छे खासे उधोग में बदल चुका है। चाहे मूल्य की बात हो या मात्रा की, दोनों मामले में, भारत में हाथ से बुने हुए कालीनों की दुनिया में बहुत ज्यादा मांग है। वास्तविक तौर पर भारत में बने 90 फीसदी कालीनों का निर्यात किया जाता है। यानी कि इस उधोग का अंतर्राष्ट्रीय बाजार से ज्यादा जुड़ाव है। यहां के बने कालीनों के शानदार डिजाइन, रंग और गुणवत्ता के चलते पूरी दुनिया इस बाजार तक पहुंचना चाहती है।
वैसे तो कालीन को बुनने के कई अलग तरीके हैं, लेकिन हाथ से गुंथी हुई कालीन, भारत की पहचान है और विदेशी बाजारों में इसी की ज्यादा मांग है। हाथ से गुंथी हुई इस विधि का इस्तेमाल पुरातन समय से किया जा रहा है। इसमें पहले कार्पेट को ग्राफ पेपर पर स्केच कर लिया जाता है, और फिर इसके सामग्री पर डिजाइन की रूपरेखा तैयार की जाती है। जिसके बाद धागों को रंगीन किया जाता है। कालीन को इसके बाद टफ्निंग गन की मदद से गुदगुदाया जाता है। यदि यह कालीन हाथ से बुना है, तो इसे एक विशेष हथकरघा द्वारा बनाया जाता है और इसमें निर्देशित तरीके से गांठ लगाए जाते हैं।
वैसे तो एक कालीन को तैयार करने में लगभग छह से सात सप्ताह लग जाते हैं। लेकिन वहीं हाथ से बुने हुए कालीनों को बनाने में 14 से 17 सप्ताह का समय लगता है। चीनी, तुर्की और अमेरिका के मशीन-निर्मित कालीनों के भयंकर प्रतिस्पर्धा के बावजूद, भारत के दस्तकारी कालीनों ने अपनी अंतर्राष्ट्रीय अपील बरकरार रखी है। यह काफी कम कीमतों पर विभिन्न प्रकार के कालीनों के लिए जाना जाता है।
भारत में कालीन कला का विकास
भारत में कालीन बनाने की कला लगभग 1580 ई. में आई। जब परिसियन कालीन कारीगर अकबर के दरबार आगरा में लाए गए। उन्होंने आगरा के अलावे दिल्ली और लाहौर में इस कला को प्रश्रय दिया। शुरू में तो भारत में कालीन परिसियन स्टाइल में बनाई जाती थी, लेकिन समय के साथ इसने भारतीय रूप ले लिया। अकबर के समय में जेल में बंद कैदियों से भी कालीन बनवाई जाती थी। उस समय में यह जेल में बंद कैदियों के सुधार और स्किल सेट को बढ़ाने के काम के तौर पर भी देखा जाता था।
समय के बदलाव और भारत में परसियन और भारतीय कला के मिश्रित रूप के कालीन ने लोगों के दिल में एक अलग जगह बना ली। कालीन को बनाने में ऊन और सिल्क के इस्तेमाल ने इसे और खूबसूरत बना दिया।
भारत में कालीन निर्माण के नामचीन केंद्र
अकबर के समय से ही कालीन के निर्माण के रूप में आगरा का एक अहम स्थान रहा था। इसके साथ-साथ मिरजापुर और भदोही भी अपने यूनिक स्टाइल के कारण कालीन निर्माण में खूब नाम कमाया। राज्स्थान में भी इस कला ने अपने पांव पसारे और अजमेर, जोधपुर तथा बीकानेर भी भारतीय बाजार में अपनी धमक बनाने में सफल रहा। राजपूत राजाओ के दरबार ने इस कला को फलने फूलने में खूब मदद की। उत्तर भारत के एक नामचीन शहर काश्मीर में बने कालीनों ने भी बाजारों को बहुत ज्यादा आकर्षित किया। यहां के कालीनों में प्रकृति और चीड़ियों की उकेरी गई तस्वीर ने इसे एक अलग पहचान दिलाई। काफी दिलचस्प है कालीनों का भारतीय इतिहास।