AJANTA CAVES: जब मानव जाति अपनी प्रारंभिक अवस्था में थी, तो उन्होंने गुफा, पहाड़ आदि के अंदर ही अपनी जिंदगी को बसाया था। जो कि निश्चित तौर पर उनके लिए एक प्राकृतिक आश्रय स्थल के रूप में रहा होगा। जहां वे अपने जीवन को सुरक्षित रख पा रहे थे। इसलिए तो प्राचीन समय से लेकर मध्यकालीन दौर तक आपको विभिन्न गुफा और इससे जुड़े वास्तुकला के अवशेष मिल जाएंगे।
इन्हीं पुरातात्विक वास्तुकला का एक नायाब उदाहरण है महाराष्ट्र के औरंगाबाद से 107 किलोमीटर दूर स्थित स्थल अजंता की गुफा। इन गुफाओं की खोज ब्रिटिश सेना की मद्रास रेजीमेंट के एक सैन्य अधिकारी ने शिकार खेलने के दौरान की थी। जिसके बाद इन गुफाओं के भित्ति-चित्रों ने दुनिया भर में लोगों को अपनी ओर आकर्षित किया। इसकी महत्ता को देखते हुए ही यूनेस्को ने इसे विश्व विरासत स्थल के रूप में घोषित किया था।
इन गुफाओं के नाम का आधार, यहां से 12 किलोमीटर दूर स्थित “अजिंठा गांव” के नाम पर रखा गया है। अजंता की गुफाएं “घोड़े की नाल के आकार की चट्टान” की सतह पर खोदी गई हैं। ये गुफाएं समय के अलग अलग अंतराल पर ( लगभग दूसरी से छठी सदी के बीच ) खोदी गई होंगी।
अजंता की गुफाओं की विशेषताएं–
- अजंता को अंग्रेज अधिकारी जॉन स्मिथ ने 1819 ईं में खोजा था।
- अजंता में निर्मित कुल 29 गुफाओं में छह गुफाएं शेष हैं। गुफा संख्या 1,2,9,10,16 और 17।
- गुफा संख्या 16 और 17 गुप्तकालीन हैं।
- इन गुफाओं में की गई नक्काशी इतनी महीन है कि इसके सामने लकड़ी की नक्काशी भी फेल लगती है।
- अजंता की गफाओं में बने चित्र फ्रेस्को तथा टेम्पेरा विधि से बनाए गए हैं। इसमें चित्र बनाने से पहले दीवारों को रगड़कर साफ किया जाता है, फिर उसके ऊपर लेप चढ़ाया जाता है।
- अजंता की गुफा संख्या 16 में उत्कीर्ण “मरणास्नन राजकुमारी” के चित्र ने वैश्विक स्तर पर लोगों के लिए ध्यान अपनी ओर खींचा है।
- अजंता की गुफाओं को आप दो भागों में बांट कर देख सकते हैं। इसके एक भाग में बौद्ध धर्म के हीनयान शाखा तथा दूसरे में महायान शाखा से संबंधित चित्र उकेरे गए हैं।
- गुफाओं में की गई चित्रकारी तिब्बत व श्रीलंका की कला पद्धति से प्रभावित है।
- गुफा में बने चित्र मांड, गोंद और कुछ पत्तियों के सम्मिश्रण से बनाए गए हैं।
- चित्रों की विशेषता यह है कि- आज भी प्राकृतिक रंगो का उपयोग कर बनाए गए इन चित्रों की चमक यथावत है।
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