JHALKARI BAI JAYANTI: झांसी की रानी लक्ष्मीबाई के शौर्य की किस्से हम सभी ने बचपन से पढ़े और सुने हैं। लेकिन क्या आप उनके साथ ही अंग्रेजों के दांत खट्टे करने वाली झलकारी बाई के बारे में कभी सुना है या पढ़ा है। झलकारी बाई के सिर पर न रानी का ताज था न ही झांसी की सत्ता। लेकिन फिर भी अपनी मातृभूमि की रक्षा करने के लिए उन्होंने अपने प्राणों की आहूति तक दे दी। झलकारी बाई के बारे में राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त ने अपनी कविता में लिखा है-
“जा कर रण में ललकारी थी,
वह तो झांसी की झलकारी थी ।
गोरों से लडना सिखा गई,
है इतिहास में झलक रही,
वह भारत की ही नारी थी ।।”
झलकारी का बचपन
22 नवंबर 1830 को झांसी में एक दलित परिवार में जन्मीं झलकारी बाई अपने माता-पिता की इकलौती संतान थीं। झलकारी बाई की माता का उनके बचपन में ही निधन हो गया था। गरीब और दलित परिवार से होने के चलते झलकारी बाई स्कूली शिक्षा हासिल नहीं कर पाईं लेकिन उन्होंने बचपन में ही हथियार चलाना और घुड़सवारी सीख ली थी। झांसी की लोककथाओं में झलकारी बाई (Jhalkari Bai Jayanti) का खूब जिक्र मिलता है और कहा जाता है कि एक बार उनके गांव में रहने वाले एक व्यापारी के घर डाकू आ गए थे, तब झलकारी बाई ने अकेले ही उन डाकुओं को भागने पर मजबूर कर दिया था। ऐसा भी कहा जाता है कि एक बार जंगल में शेर ने उन पर हमला किया तो उन्होंने अकेले ही कुल्हाड़ी से शेर को मार डाला था।
जब रानी लक्ष्मी बाई की नजर पड़ी झलकारी पर
इतिहासकारों के मुताबिक झलकारी बाई झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई के क़िले के सामने रहती थीं। झलकारी बाई की शादी पूरन सिंह के साथ हुई थी। पूरन सिंह रानी लक्ष्मीबाई की सेना के सिपाही थे और बड़े बहादुर माने जाते थे। कहा जाता है कि एक बार गौरी पूजा के अवसर पर झलकारी बाई, गांव की अन्य महिलाओं के साथ झांसी के किले में गईं थी। उसी दौरान रानी लक्ष्मीबाई की नजर उन पर पहली बार पड़ी थी। दरअसल झलकारी बाई का चेहरा रानी लक्ष्मीबाई से काफी मिलता जुलता था। यही वजह है कि रानी लक्ष्मीबाई ने झलकारी बाई को नोटिस किया और जब उन्हें पता चला कि झलकारी बाई उनकी सेना के एक सैनिक की पत्नी हैं तो रानी ने उनसे अलग से बातचीत की। जब रानी को झलकारी बाई की वीरता के बारे में पता चला तो उन्होंने तुरंत ही उन्हें अपनी सेना की महिला टुकड़ी में शामिल कर लिया।
रानी लक्ष्मी बाई, झलकारी और अंग्रेज
डलहौजी जब भारत का वायसराय बनकर आया तो उसने यहां के राजे-राजवाड़ों को हड़पने के लिए दत्तक पुत्रों को राजाओं का उत्तराधिकारी मानने से मना कर दिया और राज्य को हड़पने के लिए ब्रिटिश सेना को किले पर हमला करने का आदेश देने लगा। इस नीति का विरोध झांसी की रानी ने भी किया और अंग्रेजों को मुहतोड़ जवाब भी दिया। 1858 की क्रांति में झांसी की रानी ने अपने बहादुर सैनिकों की सहायता से अंग्रेजों को किले से कई दिनों तक दूर रखा लेकिन अपने ही एक सैनिक दूल्हेराव की धोखा के कारण अंग्रेजों को ज्यादा दिनों तक किले में घुसने से नहीं रोक सकी। क्योंकि दूल्हेराव ने चुपके से किले का एक द्वार खोल कर अंग्रेजों को किले में घुसने का रास्ता दे दिया। अंग्रेजों के किले पर कब्जे के बाद रानी लक्ष्मी बाई को किले से दूर जाना पड़ा। किले के भीतर युद्ध में झलकारी बाई के पति वीर गति को प्राप्त हो गए। किले से लक्ष्मी बाई को सुरक्षित बाहर निकालने के लिए एक योजना बनाई गई। छलकारी बाई ने साहस का परचम फहराया और रानी लक्ष्मी बाई की तरह साज-श्रृगांर करके तैयार हो गई। अंग्रेजों को चकमा देने के लिए किले से बाहर निकलकर ब्रिटिश जनरल ह्यूग रोज के कैंप में पहुंच गई। साहित्यकार वृंदावनलाल वर्मा ने अपने उपन्यास “झांसी की रानी लक्ष्मीबाई” में लिखा है कि झलकारी के पास श्रृंगार के लिए कोई आभूषण न थे। लेकिन पास पड़े एक कांच के गुरियों की कण्ठ माला से ही उसने अपना श्रृगांर किया और सुबह पौ फटते ही घोड़े पर बैठ अंग्रेजों की ओर चल दी। झलकारी बोलने में निपुण नहीं थी फिर भी उसने पूरे साहस के साथ अंग्रेज की एक टुकड़ी के आगे जाकर स्वयं को रानी लक्ष्मी बताया। फिर क्या था पूरे कैम्प में अफरा तफरी मच गया। गोरे सैनिकों ने उसके अभिमान, शान और व्यक्तित्व के कारण उसे रानी लक्ष्मी बाई मान लिया और खुशी से नाचने लगें। जब जनरल रोज के सामने उसे ले जाया गया तो उसके इस व्यक्तित्व के कारण जनरल रोज भी धोखा खा गया। लेकिन एक बार फिर से दूल्हेराव धोखा दिया और अंग्रेजों को बता दिया कि वह रानी लक्ष्मी बाई नहीं बल्कि झलकारी बाई है। इसके बाद जब रोज ने झलकारी बाई से पूछा कि- “इसके बदले क्या तुम्हें गोली मार देनी चाहिए”। तो झलकारी बाई का उत्तर था – “हां मार दो”। यह पागलपन देख अंग्रेज डर गए और रोज ने अपने सैनिक स्टुअर्ट से कहा कि “अगर भारत की 1 प्रतिशत महिलाएं भी इस जैसी हो जांए तो हमें जल्दी ही भारत छोड़ कर जाना होगा“।