SUBHASH CHNANDRA BOSE JAYANTI 2024:देश की आजादी में अग्रणी भूमिका निभाने वाले सुभाष चंद्र बोस की आज 127वीं जयंती है। पूरा देश, भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में नेता जी के योगदानों को याद कर उन्हें भावपूर्ण श्रद्धांजलि दे रहा है। राष्ट्रीय आंदोलन के पराक्रमी नायक सुभाष जी की जयंती को पराक्रम दिवस के रूप में मनाया जाता है। साल 2021 से पहले नेता जी के जन्मदिवस को उनकी जयंती के नाम से सेलिब्रेट किया जाता था, लेकिन साल 2021 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस दिन को पराक्रम दिवस के रूप में मनाने की घोषणा की। जिसके बाद प्रत्येक वर्ष नेता जी की जयंती को पराक्रम दिवस के रूप में मनाया जाता है।
नेता जी के बारे में कुछ रोचक बातें-
नेता जी सभाष चंद्र बोस का जन्म ओडिशा राज्य के कटक में 23 जनवरी 1897 को हुआ था। इनके पिता का नाम जानकीनाथ बोस औऱ माता जी का नाम प्रभावती देवी था। बचपन से ही नेता जी पढ़ाई में काफी तेज थे। स्कूल के दिनों से ही उनका राष्ट्रवादि स्वभाव सबके लिए आकर्षण का केंद्र रहता था। सुभाष चंद्र बोस ने अपनी स्कूलिंग पूरी कर कोलकाता के प्रेसिडेंसी कॉलेज में दाखिला लिया। इसके बाद इंजीनियरिंग की शिक्षा के लिए कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी की ओर रूख किया। सन 1920 में इंग्लैंड में सिविल सर्विस पास कर उन्होंने अपनी मेधा का लोहा मनवाते हुए चौथी रैंक हासिल की।
1919 में जलियांवाला बाग हत्या कांड ने उन्हें इस कदर विचलित किया कि उन्होंने देश की आजादी की लड़ाई में अपना शेष जीवन न्योछावर करने का फैसला लिया। औपनिवेशिक सत्ता के खिलाफ आवाज उठाने के कारण उन्हें कई बार जेल जाना पड़ा, लेकिन सुभाष कहां मानने वाले थे। उन्होंने अपने निश्चय को और धार दिया।
भारत को आजाद कराने के लिए सुभाष चंद्र बोस ने 21 अक्तूबर 1943 को “आजाद हिंद सरकार” की स्थापना की और साथ ही “आजाद हिंद फौज” के गठन में अग्रणी भूमिका निभाई। यहां आपके लिए एक ट्रिविया है कि आजाद हिंद सरकार को चलाने के लिए नेता जी ने एक “आजाद हिंद बैंक” भी बनाया था। इतना ही नहीं इस बैंक ने 10 रूपए से लेकर 1 लाख तक नोट जारी किए थे, जिसपर सुभाष बाबू की फोटो हुआ करती थी।
नेता जी सुभाष चंद्र बोस ने युवाओं से आगे आकर आजादी की लड़ाई में अपना योगदान देने के लिए निवेदन किया और साथ ही विश्व प्रसिद्ध नारा भी दिया था- “तुम मुझे खून दो , मैं तुम्हें आजादी दूंगा”। नेता जी के विचार गांधी जी के अहिंसावादी सोच से नहीं मिलते थे। इसके बाद भी नेता जी के दिल में बापू के लिए कभी इज्जत कम नहीं हुई। उन्होंने साल 1944 में एक रेडियो प्रसारण में गांधी जी को “राष्ट्रपिता” कह कर पुकारा था।