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क्या है शैव, वैष्णव और ब्रह्म तिलक, जानें विस्तार से

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सनातन धर्म में तिलक लगाने का विशेष धार्मिक महत्व है। हिन्दू धर्म के विभिन्न संप्रदायों में अलग-अलग तिलक लगाए जाते हैं और इनको लगाने की विधि भी अलग है। तिलक लगाना हिंदू परंपरा में हमेशा से एक अलग स्थान रखता है। चाहे कोई भी पूजा-पाठ हो, यज्ञ हो या अनुष्ठान आदि, सब में विधि पूर्वक तिलक लगाए जाते हैं। इन सब से इतर किसी भी शुभ कार्य के लिए घर से बाहर जाने पर भी तिलक लगाने की परंपरा रही है।

हिंदू धर्म में ना केवल माथे पर बल्कि कंठ, नाभि, पीठ और भुजाओं पर भी तिलक लगाए जाते हैं। हालांकि मस्तक के अलावा अन्य किसी भी स्थान पर तिलक लगाने के लिए व्यक्ति का दीक्षित होना अनिवार्य बताया गया है। यानी कि अलग- अलग तरह के तिलक इस बात पर निर्भर करते हैं कि व्यक्ति का संबंध किस संप्रदाय से है।

शास्त्रों में बताया गया है कि तिलक लगाने से ग्रहों की ऊर्जा संतुलित होती है साथ ही मन शांत और एकाग्र भी होता है। तिलक के प्रकार आदि की बात की जाए तो , तिलक कितने प्रकार के होते हैं, इसे लेकर ना ही कोई सीमित संख्य है और ना ही पूर्ण स्पष्टता, लेकिन हिंदू धर्म में तीन बड़े संप्रदाय, वैष्णव, शैव औऱ ब्रह्म में तिलक की विधि और महत्व के बारे में जानने को मिलता है।

 

शैव तिलक- महादेव के ललाट पर लगने वाला त्रिपुंड मात्र कोई तिलक नहीं बल्कि यह अध्यात्मिक ऊर्जा का एक साधन है। जी हां, माना जाता है कि जो भी वयक्ति भगवान शिव को त्रिपुंड तिलक लगाने के बाद उसे प्रसाद के रूप में अपने मस्तक पर लगाता है उसकी अकाल मृत्यु से नहीं होती साथ ही जीवन की अन्य परेशानियां भी खत्म होती हैं।

इस तिलक को लगाने के कुछ नियम भी होते हैं। त्रिपुंड तिलक को बहुत ही शुद्धता और सावधानी से लगाने के बारे में बताया जाता है। यह पहले भगवान शिव को अर्पित किया जाता है और फिर स्वयं पर धारण करते हैं। इसे लगाते समय मुख को उत्तर दिशा में रखने को कहा जाता है। त्रिपुंड को लगाते समय अनामिका, मध्यमा और अंगुठे का प्रयोग करते हैं। यह ध्यांन रखने की बात है कि इसे माथे पर बाईं आंख की ओर से दाईं आंख की तरफ आड़ी रेखा के रूप में खींचें। सबसे ज्यादा ध्यान रखने की बात यह है कि त्रिपुंड का आकार इन दोनों आंखों के बीच में ही सीमित रहना चाहिए।

 

वैष्णव तिलक मस्तक पर उल्टा त्रिकोण रूपी तिलक हिंदू धर्म के वैष्णव संप्रदाय को इंगित करता है। सरल शब्दों में समझाएं तो V आकार में लगाया जाने वाला तिलक वैष्णव तिलक कहलाता है। यह नाक के मध्य से शुरू हो कर सिर तक, जहां से बाल शुरू होते हैं, वहां तक लगाने को बताया गया है। इस तिलक की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसे केवल और केवल गोपी चंदन से ही लगाने का विधान है।

भगवान विष्णु और भगवान श्री कृष्ण के मस्तक पर वैष्णव तिलक लगाते हैं। वैसे तो इस तिलक को कोई भी लगा सकता है लेकिन श्री विष्णु और श्री कृष्ण के भक्तों के लिए इसे लगाना बहुत ही शुभ और अनिवार्य दोनों बताया गया है। इसे लगाने से व्यक्ति में अध्यात्म का संचार होता है और नकारात्मकता का नाश होता है। तिलक के प्रभाव से व्यक्ति की बुद्धि भी तीव्र होती है।

 

ब्रह्म तिलक- इस तिलक को आमतौर पर मंदिर के पुजारी और ब्राह्मण समुदाय के लोग लगाते हैं। इसके साथ ही वैसे गृहस्थ जीवन जीने वाले जो ब्रह्म देव की पूजा करते हैं वह भी ब्रह्म तिलक लगाते हैं। ब्रह्म तिलक को सफेद रंग की रोली से लगाया जाता है।

तिलक लगाने के हैं कुछ खास नियम-

. कभी भी बिना स्नान किए तिलक नहीं लगाना चाहिए।

. हिंदू धर्म में तिलक लगाकर सोना वर्जित बताया गया है।

. स्वयं को तिलक लगाने से पहले इसे अपने इष्ट को अर्पित करने के बारे में कहा गया है।

. जब कभी भी आप स्वयं को तिलक लगाते हैं तो इसके लिए अनामिका ऊंगली का प्रयोग करें तथा दूसरे के माथे पर लगाने के लिए अंगूठे का।

 

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