परिचय
हाल के वर्षों में हमें और हम जैसे कुछ लोगों को यह आभास हो रहा है कि भारतीय संस्कृति पर पाश्चात्य संस्कृति का प्रभाव अधिक पड़ रहा है। समाज संक्रमण के दौर से गुजर रहा है। हमारी नई पीढ़ी भारत की सभ्यता और संस्कृति से उस रूप में नहीं जुड़ रही है, जिसकी अपेक्षा थी। इसलिए हमने एक अभियान चलाया है। उसी अभियान का हिस्सा है – द हिन्दी का सांस्कृतिक परिषद।
हमें यह कहने में दिक्कत नहीं है कि हमारा समाज और अधिसंख्य लोग सांस्कृतिक दबाव में आ रहे हैं। पश्चिमी देशों की जीवनशैली तथा मूल्य अपना रहे हैं। हम अपने भारतीय वाले नैतिकता, कर्तव्य तथा समाज के मूल्य, जिन्होंने हमें अभी तक स्थापित रखा है, छोड़ कर पाश्चात्य, व्यक्तिपरक तथा स्व-केन्द्रित दृष्टिकोण अपना रहे हैं। इसके लिए यह आवश्यक है कि हम उन मूल मूल्यों को याद रखें, जो कि भारत का मूल चरित्र रहा है। जिसमें भारतीयता का तत्व हैं। हम यह न भूलें कि हम भारतीय हैं। हमें वैसा ही रहना चाहिए न कि हम केवल नकलची बन कर जियें। यदि हमने केवल नकल की, तो हम अपनी मौलिकता, अपनी विशिष्टता खो देंगे, जो हमें जीवन देती है।
कौन आ सकते हैं हमारे साथ ?
जिन्हें भी भारतीय सभ्यता-संस्कृति से लगाव है, अपने अभियान में हम उनका सहर्ष स्वागत करते हैं। द हिन्दी सांस्कृतिक परिषद उन सभी लोगों से अपने साथ जुड़ने का आग्रह करता है, जो भारतीय सभ्यता-संस्कृति के रंग में स्वयं को सरोबार करना चाहते हैं। जो भारतीय सांस्कृतिक मूल्यों व परंपरा को समाज में फिर से प्रचारित-प्रसारित करना चाहते हैं।
संरक्षक
द हिन्दी सांस्कृति परिषद के संरक्षक कला-संस्कृति और सामाजिक क्षेत्र में सम्मानित व्यक्ति होंगे। जिन्होंने समाज के सामने आदर्श प्रस्तुत किया है।
सदस्य
द हिन्दी सांस्कृतिक परिषद का सदस्य हर वह व्यक्ति बन सकता है, जिसे भारतीय कला-संस्कृति और सभ्यता पर गर्व है। कला-संस्कृति और सामाजिक सरोकार से जुड़े लोगों से आग्रह होगा कि वे हमारे इस अभियान में साथ आएं।
सांस्कृतिक परिषद का गठन राज्यवार भी होगा। हर राज्य और जिले के लोग हमारे साथ जुड़ सकते हैं। जुड़ने की एकमात्र योग्यता भारतीय सभ्यता और संस्कृति से लगाव है। आप में अपनी लोकाचार, कला-संस्कृति के प्रति गर्व का अनुभव और देश प्रेम हो, तो हम और आप सतत् संवाद कर सकते हैं।