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भारत में 25 हज़ार लोग बोलते हैं संस्कृत

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टीम हिन्दी

देश की आठवीं अनुसूची में दर्ज भाषाओं में संस्कृत बोलने वालों की संख्या सबसे कम है. 2001 के मुकाबले इसमें वृद्धि हुई है, लेकिन अब भी देश में यह भाषा बोलने वाले सिर्फ 24,821 लोग हैं. आठवीं अनुसूची में दर्ज भाषाओं में उर्दू और कोंकणी बोलने वालों में गिरावट दर्ज की गई है. उर्दू बोलने वालों की संख्या में 1.58 प्रतिशत की कमी आई है. हालांकि अगर लिपि को छोड़ दिया जाए तो बोलचाल की हिंदी पर उर्दू का खासा असर है. उर्दू को अपनी मातृभाषा के रूप में दर्ज कराने वाले ज्यादातर लोग हैदराबाद, लखनऊ और दिल्ली के हैं.

आठवीं अनुसूची के बाहर की भाषाओं में भीली सबसे ज्यादा बोलने वाली भाषा बनी हुई है. 8.3 करोड़ लोगों के साथ मराठी हिंदी (52 करोड़) और बंगाली (9.7 करोड़) के बाद भारत की सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषा हो गई है. उसने तेलगु को चौथे नंबर पर पीछे छोड़ दिया है. सबसे तेज बढ़ने वाली भाषाओं में हिंदी के बाद कश्मीरी और गुजराती हैं. कश्मीरी बोलने वालों की संख्या में 22.97 फीसद की वृद्धि दर्ज की गई. वहीं गुजराती बोलने वाले 20.4 फीसदी बढ़े हैं.

भारत जैसे देश में जहां कोस-कोस पर वाणी और पानी बदल जाता है, में ये आंकड़े कितने विश्वसनीय हैं, इस पर बहस हो सकती है. भाषा रिसर्च और पब्लिकेशन सेंटर के  अनुसार जनगणना के आंकड़ों के आधार पर मातृभाषा के आंकड़े भ्रामक हो सकते हैं. घरेलू और अंतरराष्ट्रीय प्रवास इन आंकड़ों को प्रभावित करता है. इसके अलावा आदिवासियों के पास भाषा जनगणना में भाषा चुनने के विकल्प भी कम होते हैं. इसलिए इस बात पर आश्चर्य नहीं करना चाहिए कि गैर अनुसूचित भाषायें बोलने वालों की संख्या भी अनुसूचित सूची में दर्ज हो जाती है.

भले ही आज कल इस संस्कृत भाषा का इस्तेमाल कम होता हो लेकिन कर्नाटक स्थित मत्तूर गांव एक ऐसा गांव है, जिसने इस भाषा को अपने अंदर अभी भी संजोए रखा है. इस गांव का हर एक व्यक्ति संस्कृत भाषा का उच्चारण करता है चाहे वह हिंदू हो या मुसलमान. इस गांव में संस्कृत भाषा प्राचीनकाल से बोली जाती है. इस गांव में न तो कोई रेस्तरां है न ही कोई गेस्ट हाउस लेकिन फिर भी संस्कृत भाषा बोले जाने के लिए यह बेहद प्रसिद्ध गांव माना जाता है.

यह पूरी दुनिया में एक ही ऐसा गांव है जहां संस्कृत भाषा का उच्चारण बखूबी से किया जाता है. यहां पर रहने वाले लोग अपनी प्रतिदिन के कार्यों में संस्कृत भाषा का प्रयोग करते हैं. जिन लोगों को यहां संस्कृत बोलनी नहीं आती उनके लिए 20 दिन का एक कोर्स रखा जाता है. इन 20 दिनों में एक अच्छी संस्कृत भाषा का ज्ञान दिया जाता है और वह भी मुफ्त में. इस गांव के कुछ लोग संस्कृत भाषी युवा आईटी इंजीनियर हैं. कुछ बड़ी – बड़ी कंपनियों में काम करते हैं तो कुछ इंजीनियर. इस गांव की खासियत को अपनाने के लिए विदेशों से भी लोग इस गांव में आते हैं और यह माना जाता है कि यह दुनिया का संस्कृत बोले जाने वाला एकलौता गांव है.

3,500 जनसंख्या वाले इस गांव में संस्कृत भाषा का जन्म ऐसा ही नहीं हुआ बल्कि यह आंदोलन के तौर पर जन्म एक इतिहास है. इस गांव में वाणिज्य विषय पढ़ाने वाले प्रोफेसर एमबी श्रीनिधि का इस पर कहना है कि यह अपनी जड़ों की ओर लौटने जैसा एक आंदोलन था, जो संस्कृत विरोधी आंदोलन के खिलाफ शुरू हुआ था. संस्कृत भाषा को ब्राहमणों की भाषा कहकर उसकी आलोचन की जाती थी, इसे अचानक ही नीचे करके इसकी जगह कन्नड़ को दी जाने लगी.

Bharat mei 25 hazar log bolte hai sanskrit

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