यदि यह कहा जाए कि संस्कृति आदि भाषा है, तो अतिश्योक्ति नहीं होगी. यह दुनिया की सबसे पुरानी भाषा है और इसे सब भाषाओं की जननी भी माना जाता है. इसे देववाणी अथवा सुर-भारती भी कहा जाता है. संस्कृत केवल स्वविकसित भाषा नहीं, बल्कि संस्कारित भाषा है इसीलिए इसका नाम संस्कृत है. संस्कृत को संस्कारित करने वाले भी कोई साधारण भाषाविद् नहीं, बल्कि महर्षि पाणिनिय, महर्षि कात्यायिनि और योग शास्त्र के प्रणेता महर्षि पतंजलि हैं. इन तीनों महर्षियों ने बड़ी ही कुशलता से योग की क्रियाओं को भाषा में समाविष्ट किया है. यही इस भाषा का रहस्य है.
संस्कृत में 1700 धातुएं, 70 प्रत्यय और 80 उपसर्ग हैं, इनके योग से जो शब्द बनते हैं, उनकी संख्या 27 लाख 20 हजार होती है. यदि दो शब्दों से बने सामासिक शब्दों को जोड़ते हैं, तो उनकी संख्या लगभग 769 करोड़ हो जाती है. गौर कीजिए, सूर्य के एक ओर से 9 रश्मियां निकलती हैं और सूर्य के चारों ओर से 9 भिन्न-भिन्न रश्मियों के निकलने से कुल निकली 36 रश्मियों की ध्वनियों पर संस्कृत के 36 स्वर बने. इन 36 रश्मियों के पृथ्वी के आठ वसुओं से टकराने से 72 प्रकार की ध्वनि उत्पन्न होती हैं, जिनसे संस्कृत के 72 व्यंजन बने. इस प्रकार ब्रह्माण्ड से निकलने वाली कुल 108 ध्वनियों पर संस्कृत की वर्णमाला आधारित है. ब्रह्मांड की इन ध्वनियों के रहस्य का ज्ञान वेदों से मिलता है. इन ध्वनियों को नासा ने भी स्वीकार किया है, जिससे स्पष्ट हो जाता है कि प्राचीन ऋषि मुनियों को उन ध्वनियों का ज्ञान था और उन्हीं ध्वनियों के आधार पर उन्होंने पूर्णशुद्ध भाषा को अभिव्यक्त किया.
संस्कृत में सबसे अधिक शुद्धता है. कंप्यूटर के लिए भी यह भाषा उपर्युक्त मानी जाती है. इस भाषा के व्याकरण और वर्णमाला की वैज्ञानिकता के कारण यह बात सबको पता है कि जो संस्कृत पढ़ता है, उसे गणित, विज्ञान और अन्य भाषाओं को सीखने में सहायता मिलती है. जुलाई 1987 में अंतर्राष्ट्रीय पत्रिका ‘फोब्र्स’ ने एक आलेख प्रकाशित किया था, उसमें कहा गया कि कंप्यूटर साॅफ्टवेयर प्रोग्रामिंग के लिए संस्कृत सर्वाधिक सुविधाजनक भाषा है. असल में, संस्कृत व्याकरण और कंप्यूटर साॅफ्टवेयर प्रोग्रामिंग में चमत्कारिक रूप से समानता पाई जाती है. इसके पीछे महर्षि पाणिनी का ‘अष्टाध्ययी’ ग्रंथ की महत्ता को सबने स्वीकार किया. पाणिनी के अष्टाध्ययी के 4000 सूत्रों ने संस्कृत भाषा को अन्य समस्त भाषाओं से अधिक समृद्ध बना दिया है, जिससे संस्कृत का वैज्ञानिक महत्व बढ़ गया है. इसी वैज्ञानिक महत्व ने कई हजार वर्ष पूर्व भारत में गणित का विकास किया.
Vigyan ki bhasha hai sanskrit