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हर वर्ग के लिए उम्मीद की किरण है जेपी का समाजवाद

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टीम हिन्दी

जयप्रकाश नारायण भारतीय स्वतंत्रता सेनानी और राजनेता थे. देश में आजादी की लड़ाई से लेकर वर्ष 1977 तक तमाम आंदोलनों में जेपी का अहम रोल रहा है. जेपी को पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के विरोध के लिए जाना जाता है. कहा जाता है कि उनके आंदोलन की वजह से इंदिरा गांधी के हाथ से सत्ता तक छिन गई थी. लोकनायक जयप्रकाश नारायण ने भारतीय जनमानस पर अपना अमिट छाप छोड़ी है. जयप्रकाश जी का समाजवाद का नारा आज भी गूंज रहा है. देश की आजादी के लिए स्वतंत्रता संग्राम में शामिल हुए जेपी को तरह-तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ा लेकिन उन्होंने अंग्रेज़ों के सामने घुटने नहीं टेके.

जयप्रकाश विचार के पक्के और बुद्धि के सुलझे हुए व्यक्ति थे. जयप्रकाश ने देश को अन्धकार से प्रकाश की ओर लाने का सच्चा प्रयास किया, जिसमें वह पूरी तरह से सफल रहे हैं. लोकनायक जयप्रकाश नारायण ने भारतीय जनमानस पर अपना अमिट छाप छोड़ी है. जयप्रकाश जी का समाजवाद का नारा आज भी गूँज रहा है. समाजवाद का सम्बन्ध न केवल उनके राजनीतिक जीवन से था, अपितु यह उनके सम्पूर्ण जीवन में समाया हुआ था.

जयप्रकाश का जन्म 11 अक्तूबर, 1902 ई. में सिताबदियारा बिहार में हुआ था इनके पिता का नाम श्री ‘देवकी बाबू’ और माता का नाम ‘फूलरानी देवी’ थीं। इन्हें चार वर्ष तक दाँत नहीं आया, जिससे इनकी माताजी इन्हें ‘बऊल जी’ कहती थीं. इन्होंने जब बोलना आरम्भ किया तो वाणी में ओज झलकने लगा. 1920 में जयप्रकाश का विवाह ‘प्रभा’ नामक लड़की से हुआ. प्रभावती स्वभाव से अत्यन्त मृदुल थीं. गांधी जी का उनके प्रति अपार स्नेह था. प्रभा से शादी होने के समय और शादी के बाद में भी गांधी जी से उनके पिता का सम्बन्ध था, क्योंकि प्रभावती के पिता श्री ‘ब्रजकिशोर बापू’ चम्पारन में जहाँ गांधी जी ठहरे थे, प्रभा को साथ लेकर गये थे. प्रभा विभिन्न राष्ट्रीय उत्सवों और कार्यक्रमों में भाग लेती थीं.

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अमेरिका से वापस आने के बाद उनका संपर्क गांधी जी के साथ काम कर रहे जवाहर लाल नेहरु से हुआ. वे भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का हिस्सा बने. 1932 में गांधी, नेहरु और अन्य महत्त्वपूर्ण कांग्रेसी नेताओं के जेल जाने के बाद, उन्होंने भारत में अलग-अलग हिस्सों में संग्राम का नेतृत्व किया. अन्ततः उन्हें भी मद्रास में सितम्बर 1932 में गिरफ्तार कर लिया गया और नासिक के जेल में भेज दिया गया. 1939 में उन्होंने द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान, अंग्रेज सरकार के खिलाफ लोक आन्दोलन का नेतृत्व किया. उन्होंने सरकार को किराया और राजस्व रोकने के अभियान चलाये. टाटा स्टील कम्पनी में हड़ताल कराके यह प्रयास किया कि अंग्रेज़ों को इस्पात न पहुंचे. उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और 9 महीने की कैद की सज़ा सुनाई गयी.

जयप्रकाश जी के योगदानों के बारे में जितना कहा जाए वह कम है. ये अत्यन्त परिश्रमी व्यक्ति थे. इनकी विलक्षणता की तारीफ़ स्वयं गांधीजी और नेहरू जैसे लोग किया करते थे. भारत माता को आज़ाद कराने हेतु इन्होंने तरह-तरह की परेशानियों को झेला किन्तु इन्होंने अंग्रेज़ों के सामने घुटने नहीं टेके, क्योंकि ये दृढ़निश्चयी व्यक्ति थे. संघर्ष के इसी दौर में उनकी पत्नी भी गिरफ़्तार कर ली गईं और उन्हें दो वर्ष की सज़ा हुई. क्योंकि वह भी स्वतंत्रता आंदोलन में कूदी थीं और जनप्रिय नेता बन चुकी थीं. जयप्रकाश जी अपनी निष्ठा और चतुराई के लिए प्रसिद्ध थे. वे सच्चे देशभक्त एवं ईमानदार नेता थे. वे ब्रिटिश प्रशासन का समूल नष्ट करने पर तुले हुए थे. उन्होंने विश्व स्तर पर अपनी आवाज़ बुलन्द करते हुए कहा है कि विश्व के संकट को मद्देनज़र रखते हुए भारत को आज़ादी प्राप्त होना अति आवश्यक है. जब तक हम आज़ाद न होंगे, हमारा स्वतंत्र अस्तित्व क़ायम न होगा और हम विकास के पथ पर अग्रसर न हो सकेंगे.

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