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हिंदी कविता रोटियां – कवि प्रशांत

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अजीब दास्तान हैं दोस्तों मेरे हिन्दुस्तान की
कोई फेंक देता हैं खाना बेकार समझकर कचरें में
तो किसी को एक पल के खानें में दो “रोटियां” भी नसीब नहीं
एक तरफ शादियों में हो रही हैं खाने की बर्बादी
दुसरी तरफ भूखी मर रही हैं आधी आबादी
अजीब दास्तान हैं दोस्तों मेरे हिन्दुस्तान की
कोई फेंक देता हैं खाना बेकार समझकर कचरें में
किसी को एक पल के खानें में दो “रोटियां” भी नसीब नहीं
 मैं सबसे बोल बोलकर थक गया हूं दोस्तों
जितना खाना हो उतना ही प्लेट में लिया करो
 उतना ही प्लेट में लिया करों

 

अजीब दास्तान हैं दोस्तों मेरे हिन्दुस्तान की
कोई फेंक देता हैं खाना बेकार समझकर कचरें में
तो किसी को एक पल के खानें में दो “रोटियां’ भी नसीब नहीं
तुम तो फेंक देते हो खाना
जरा कभी उसके बारे में भी सोच लिया करों
जिसे आज रात भूखा ही हैं सो जाना
भूखा ही हैं सो जाना
देश में हो रही खाने की बर्बादी पर प्रकाश डालती © कवि प्रशांत की एक रचना जिसका शीर्षक हैं ” रोटियां”
Hindi kavita rotiya

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