भारत की संस्कृति की सबसे पौराणिक इतिहासों में शामिल नटराज की मूर्ति का इतिहास शायद उतना ही पुराना है, जितना कि भारतीय संस्कृति। शिव का नटराज रूप मूल रूप से दक्षिणी भारत से आता है, विशेष रूप से तमिलनाडु से। ये सृष्टि की प्रचुरता का प्रतीक है। सृष्टि का नृत्य, जिसने स्वयं की रचना हमेशा रहने वाली स्थिरता में से की हो। सृष्टि रचना नृत्य में होती प्रतीत होती है। तो आईए जानते हैं भारत के इस सांस्कृतिक विरासत के इतिहास के बारे में।
नटराज की मूर्ति का इतिहास…
नटराज की इस मूर्ति का संबंध भगवान शिव से है। भारतीय संस्कृति में इस मूर्ति को भगवान शिव के दो स्वरूपों में देखा जाता रहा है। एक सृजन और दूसरा विनाश। हिंदू धर्म में त्रिदेवों में शिव को सबसे ताकतवर माना गया है। क्योंकि शिव में सृजन और विनाश दोनों ही समाते हैं। शास्त्रों में शिव के कई रूपों का वर्णन है । जिसमें एक है नटराज का स्वरूप ।नटराज,नृत्य के देवता के रूप में जानें जाते हैं। विशेष तौर पर दक्षिण भारत में कई शैव मंदिरों मे नटराज की मूर्ति, धातु या पत्थर की मूर्तियों के रूप में पाए जाते हैं। यह चोल वंश के राजाओं के समय के सबसे महत्वपूर्ण रचनाओं में से एक है।
स्कंदपुराण में है नटराज की मूर्ति से जुड़ी यह कहानी..
एक बार की बात है जब मोह-माया को त्याग कर जंगलों में रहने वाले साधुओं के मन में अपने तपोबल को लेकर अहंकार हो गया तो उन्होंने साधारण मनुष्यों को अपने से कम तथा छोटा जीवन समझने लगें। और अभिमान से भर गए। इसे देख भगवान शिव ने उनके इस अभिमान को तोड़कर उन्हें सतमार्ग पर लाने की सूझी। भगवान शिव ने एक भिखारी का चोला धारण किया और उनके समक्ष आ गए।और उनके तर्क वितर्क में उन साधुओं की श्रेष्ठता का कम सिद्ध कर दिया। जिससे साधू क्रोधित हो गए और उन्होंने भगवान शिव के सामने सांप और दानव को प्रस्तुत कर उन्हें दंडित करने का फैसला किया। शिव ने अपने स्वरूप का विस्तार कर नृत्य करना शुरू किया और सारी माया का अंत कर दिया। जिसे देख साधुओं का भ्रम जाता रहा। और फिर इस रूप को नटराज रूप में जाना गया।
नटराज स्वरूप की व्यख्या…
धर्म ग्रंथों की माने तो जब भगवान शिव रूद्र रूप धारण कर तांडव करते हैं तो इसे रौद्र तांडव कहा जाता है, जबकि भगवान शिव के आनंद की अवस्था में किया गया तांडव को नटराज कहते हैं। शिव के रौद्र तांडव से जहां सृष्टि का विनाश होता है तो वहीं भगवान शिव के आनंदम तांडव से सृष्टि की रचना होती है। नटराज शिव की चार भुजाओं में से एक हाथ में डमरू है जो कि अनंत ध्वनि का प्रतीक है। दूसरे हाथ मे भगवान शिव ने अग्नि धारण कर रखा है जो कि विनाश का प्रतीक है। आगे के हाथ अभय मुद्रा में है जो हमारी बुराईयों से रक्षा करते हैं। नटराज का उठा हुआ पांव मोक्ष को दिखाता है जिसे आगे का दूसरा बायां हाथ उसकी ओर दिखा रहा है कि शिव के चरणों में ही मोक्ष हैं। नटराज की मूर्ति के पांव के नीचे कुचला हुआ बौना दानव अज्ञान को दर्शाता है। नटराज की मूर्ति पर जो लिपटा हुआ सर्प है वह कुण्डलिनी शक्ति का प्रतीक है।