BUDDHA ASTANGIK MARG: अगर आपको कहा जाए कि गौतम बुद्ध द्वारा बताये गये ये आर्य अष्टांगिक मार्ग आपके सारे दुखों को हर लेगा तो क्या आप विश्वास करेंगे। जी हां पूरी दुनिया को भारत की भूमि से अपने ज्ञान की रोशनी से मार्ग दिखाने वाले बुद्ध ने सारे मानव-जाती को दुखों और वेदनाओं को देखने का एक अलग नजरिया दिया। राज परिवार से संबंधित होने के बावजूद वे मनुष्य के सामान्य जीवन की परेशानियों से अच्छी तरह वाकिफ थे। वर्षों की तपस्या और ज्ञान प्राप्ति के बाद उन्होंने अपनी शिक्षा के दम पर पूरी दुनिया को जगाने का प्रयास किया।
बुद्ध द्वारा सुझाया यह आर्य अष्टांगिक मार्ग इस दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। 563 ई.पूर्व लुंबिनी नेपाल में जन्में गौतम बुद्ध का समय काल आज से लगभग ढ़ाई हजार साल पहले था। शाक्य गणराज्य में जन्में इस महापुरूष को “शाक्यमुनि” भी कहा जाता है। जन्म के समय किसी महाविद्वान पंडित ने इनके लिए भविष्यवाणी की थी कि यह आगे चलकर या तो चक्रवर्ती राजा बनेंगे या बहुत बड़े सन्यासी। जिस कारण गौतम के पिता ने डर कर इन्हें बचपन के शुरूआती समय से ही बहुत ज्यादा राग-रंग में डूबो कर रखा । लेकिन होनी है कि किसी के पाले में कहां आती है। उसे तो जब जो करना होता है कर ही डालती है। इसलिए तो सारे राग-रंग और 16 वर्ष की आयु में ही विवाह के बंधन में बंध जाने के बाद भी 29 साल की आयु में अपनी पत्नी और पुत्र को आधी रात्री में महल में छोड़कर, ज्ञान प्राप्ति के लिए, जंगलों में चले गए।
घर छोड़ने के बाद वैशाली नगर के “आलारकलाम” से सांख्य दर्शन की शिक्षा ली। इसलिए आलारकलाम को बुद्ध का प्रथम गुरु कहा जाता है। इसके बाद राजगीर में “रूद्रकरामपुत्त” से शिक्षा ले कर बोधगया में निवास किया। अन्न-जल त्याग कर कठिन तपस्या से उनका शरीर सुख जाता है तो इसी दौरान उन्हें “सुजाता” नाम की एक कन्या ने जीवन और शरीर के महत्व को बताया। और यहीं से सिद्धार्थ गौतम बुद्ध बनने की मार्ग पर अग्रसर हो गए। 6 वर्षो की कठोर तपस्या के बाद “35 वर्ष” की आयु में वैशाख पूर्णिमा की रात को “निरंजना नदी” के तट पर एक पीपल के पेड़ के नीचे उन्हें ज्ञान की प्राप्ति होती है।
उस समय ब्राह्मण परंपरा जो कि वेदों के ज्ञान पर आधारित था, से इतर बुद्ध ने श्रमण परंपरा पर विशेष जोर दिया, जिसमें आत्म-ज्ञान, आत्म-विजय और आत्म-साक्षात्कार पर विशेष जोर दिया। बौद्ध धर्म की मौलिक मान्यतों में चार आर्य सत्य है, जिनमें पहला है दुख संसार का नियम है। दूसरा, दुखो के कारण होते है। तीसरा, दुखो का निवारण भी है और चौथा, इन दुखो से निकलने का मार्ग भी है। जिसे कि उन्होंने अष्टांगिक मार्ग के तौर पर पूरी दुनिया को बताया।
बुद्ध ने अपने आर्य अष्टांगिक मार्ग में कुल 8 तरह की मार्गों को दुखो से निजात पाने के लिए जरूरी बताया। आर्य अष्टांगिक मार्ग बुद्ध की प्रमुख शिक्षाओं में से एक है। बुद्ध ने वाणी के सदाचार को बरकरार रखने की बात की है इसके लिए उन्होंने सम्यक दृष्टि रखने की बात की। इसके साथ ही मानसिक और नैतिक विकास को निरंतर बनाये रखने के लिए सम्यक संकल्प की बात की है। सम्यक वाक, सम्यक कर्म, सम्यक आजीविका, सम्यक व्यायाम, सम्यक स्मृति और सम्यक समाधि के बारे में बताया है। गौतम बुद्ध की जीवन यात्रा और उनकी शिक्षाएं अपने में ही काफी प्रेरणादायक रही हैं। बुद्ध ने अपनी शिक्षा से विश्व को एक वैकल्पिक व्यवस्था तो दी है। इस शिक्षा के दम पर कोई भी आत्म-ज्ञान के माध्यम से जीवन और मृत्यु के चक्र से मुक्त भी हो सकता है।
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