आपको जानकर हैरानी होगी कि वैश्विक स्तर पर पुरुषों के मुकाबले महिलाओं को केवल दो-तिहाई कानूनी अधिकार ही मिलते हैं। यहाँ से हम यह देखते है कि कैसे सदियों से पुरुषों और महिलाओं के बीच कानूनी तौर पर भी असमानता रही है। आपको बता दें कि विश्व बैंक की “वुमन, बिजनेस एंड द लॉ” रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि कार्यस्थल पर महिलाओं और पुरुषों के बीच का अंतर अब पहले की तुलना में अधिक हो गया है। जब हिंसा और बच्चों की देखभाल से जुड़े कानूनी मतभेदों को ध्यान में रखा जाता है, तो वही महिलाओं को पुरुषों की तुलना में दो-तिहाई से भी कम अधिकार ही क्यों प्राप्त हैं? वर्ल्ड बैंक की रिपोर्ट में महिलाओं के खिलाफ हिंसा से सुरक्षा व बच्चों की देखभाल से जुडी़ सेवाओं तक पहुंच जैसे मुद्दे शामिल हैं। यह दोनों मुद्दे महिलाओं के अवसरों को बहुत प्रभावित करते हैं। आंकड़ों की माने तो इस संदर्भ में महिलाओं को पुरुषों की तुलना में केवल 64% कानूनी सुरक्षा प्राप्त है, जो 77% के पिछले अनुमान से काफी कम है।
वैश्विक अर्थव्यवस्था को गति देने की शक्ति रखती है महिलाएं
विश्व बैंक के मुख्य अर्थशास्त्री इंदरमिट गिल की माने तो महिलाओं में ख़राब वैश्विकअर्थव्यवस्था को गति देने की शक्ति है। लेकिन पूरी दुनिया में, भेदभावपूर्ण कानून और प्रथाएं महिलाओं को पुरुषों के साथ समान स्तर पर काम करने से आज भी रोक रही हैं। गिल यह भी बताते हैं कि इस अंतर को कम करने से वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद में 20 फीसदी से अधिक का इजाफा हो सकता है। यह अगले दशक में वैश्विक विकास की दर को प्रभावी तरीके से दोगुना कर सकता है, लेकिन इन सुधारों की गति धीमी पड़ गई है।
भारत की बढ़ रही है रैंकिंग
नई रिपोर्ट के अनुसार सबसे समृद्ध अर्थव्यवस्थाओं सहित कोई भी देश महिलाओं के लिए समान अवसर सुनिश्चित नहीं करता है।हम देख सकते है कि भारत की रैंक में 74.4 प्रतिशत के स्कोर के साथ मामूली सुधार तो हुआ है और यह 113 प्रतिशत भी हो गया है। लेकिन रैंकिंग 2021 में 122 से घटकर 2022 में 125 और 2023 में 126 हो गई है। सालाना प्रकाशित होने वाली रिपोर्ट में 190 देशों में महिलाओं के लिए कानूनी सुधारों और वास्तविक परिणामों के बीच मौजूद असमानता का मूल्यांकन किया गया है।