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संयुक्त परिवार या एकल परिवार

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भारत एक ऐसा देश है जो पारिवारिक अखंडता, पारिवारिक निष्ठा और पारिवारिक एकता पर जोर देता है। संयुक्त परिवार एक विस्तृत परिवार है जिसमें माता-पिता, बच्चे और उनका परिवार सब एक साथ रहते हैं ।भारत में संयुक्त परिवार की परंपरा वैदिक काल से चली आ रही है ।परंतु समय निरंतर परिवर्तनशील है। समय और परिस्थिति के अनुसार समाज की मान्यताएं बदलती रहती हैं। इसका एक उदाहरण है प्राचीन काल से चली हरि संयुक्त परिवार की परंपरा का टूटना और एकल परिवार का चलन बढ़ना और इसके कुछ कारण है। शहरीकरण, बढ़ती महंगाई, उच्च शिक्षा, अच्छी नौकरी की चाहत, विदेश में बसने की प्रवृत्ति। गांव में इतनी सुविधा न होने के कारण लोग शहर की तरफ भाग रहे हैं। बच्चों को पढ़ने के लिए माता-पिता उन्हें शहर या विदेश में भेजते हैं । कुछ बच्चे वहां भी बस जाते हैं ।बहुत बार बच्चे अपने मां-बाप को अपने पास बुलाना चाहते हैं पर वे लोग अपने स्थान को छोड़कर शहरों या विदेश में नहीं रहना चाहते और बच्चों को अकेले रहना पड़ता है और फिर वह धीरे-धीरे उसे जीवन के आदी हो जाते हैं।

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भारत में कई घरों में संयुक्त परिवार परंपरा आज भी विद्यमान है।कितने ही संयुक्त परिवार आज भी बहुत सुव्यवस्था से चल रह रहे हैं। उनमें घर में सब बड़ों का आदर, सम्मान करते हैं और बड़े भी उनकी इच्छा का ध्यान रखते हुए प्रेम से बैठकर अपने विचारों का आदान-प्रदान करके एक स्वस्थ परिवार का आदर्श प्रस्तुत करते हैं।  दोनों प्रकार की पारिवारिक पद्धति समय और परिस्थिति के अनुसार उचित जान पड़ती है। दोनों के अपने-अपने फायदे हैं और नुकसान हैं। संयुक्त परिवार में भावी पीढ़ी का समुचित विकास होता है। उत्तरदायित्व सांझा करने से व्यक्ति का तनाव कम होता है ।परिवार के सदस्यों में सहयोग की भावना बढ़ती है ।अधिकतर जहां लोगों का व्यापार सांझा है वहां लोग संयुक्त परिवार में रहते हैं। एक दूसरे के सुख दुख का ध्यान रखते हैं। वैसे तो घर में बड़ों के होने से कई समस्याएं तो अनायास ही समाप्त हो जाती हैं। बड़ों को जिंदगी का अनुभव होता है और इस अनुभव के आधार पर समस्याएं समस्याएं नहीं लगती। उनके रहने से बच्चों में सुरक्षा की भावना भी आती है । अतः देखा जाए तो संयुक्त परिवार प्रणाली की व्यवस्था बहुत ही अच्छी है। बच्चे भी दादा-दादी, चाचा चाची की देखरेख में बड़े होते हैं और वे सहज में वह सब कर लेते हैं जो एकल परिवार माता-पिता को समझाना पड़ता है, सीखाना पड़ता है ।
संयुक्त परिवार में बुजुर्ग लोगोंसे उनका अनुभव और कहानियां सुनकर बहुत अच्छी सामाजिक शिक्षा मिलती है।  संयुक्त परिवार की परंपरा और संस्कृति को आने वाली पीढ़ी तक पहुंचाया जा सकता है। संयुक्त परिवार में चूंकि अनेक लोग साथ रहते हैं इसलिए मूल्यों को लेकर टकराव की संभावना होती है। संयुक्त परिवार में एक छोटा सा निर्णय भी मुखिया की मंजूरी से लिया जाता है, इससे एक तरह से निजता का हनन भी होता है। एकल परिवार में आजादी होती है परंतु अकेलेपन की भावना एकल परिवार की कमी है। हर समस्या को स्वयं ही झेलना पड़ता है और माता-पिता कामकाजी हो तो बच्चों को संभालना मुश्किल होता है। यद्यपि  साथ में रहना कई बार मुश्किल लगता है परंतु संयुक्त परिवार में आप पर अवसाद हावी नहीं होता और आपको अपने लोगों का साथ मिलता है।
जहां पर सब की भावनाओं का और सब की इच्छाओं का ध्यान रखा जाता है वह संयुक्त परिवार काफी सफल होता है। आज की युवा पीढ़ी और बुजुर्गों को मिलकर इसका समाधान निकालना चाहिए और घर परिवार की एकता व सुरक्षा की भावना को ध्यान में रखते हुए निर्णय लेना चाहिए।

लेखिका- रजनी गुप्ता

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