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स्नेहा खानवलकर: धुन बनाने के लिए नाप दी धरती

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टीम हिन्दी

हम उन्हें एक महान संगीत निर्देशक के रूप में जानते हैं, उन्होंने ‘ओ वुमनिया’ और ‘सईया काला रे’ जैसे गाने बनाए हैं. संगीत का धुन बनाने से पहले जमीन को समझने निकल पड़ी. सैकड़ों किलोमीटर की यात्रा की. ‘गैंग्स ऑफ वासेपुर’ के लिए उन्होंने संगीत दिया. इसके अलावा ‘लव सेक्स और धोखा’ जैसी कई फिल्मों में काम किया है. समय के साथ उनकी प्रतिभा निखरती गई. आज उनके बनाए धुन पर करोड़ों लोग झूमने को मजबूर हो जाते हैं.

हम बात कर रहे हैं बॉलीवुड की नई और सशक्त धड़कन स्नेहा खानवलकर की. आपको बता दें कि स्नेहा का जन्म मध्यप्रदेश के ग्वालियर में एक मराठी परिवार में हुआ था. पूरा बचपन इंदौर में बीता. उनकी मां ग्वालियर के राजघराने से संबंध रखतीं थी. उनकी मां भारतीय संगीत में पारंगत थी, जिस कारण स्नेहा ने भी छोटी उम्र में संगीत सीखना शुरू कर दिया. वर्ष 2001 में उनका परिवार मुंबई आ गया. यहां आकर उन्होंने संगीत को अपना करियर बनाना ज्यादा बेहतर समझा.

भले ही उनका परिवार हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत के ग्वालियर घराने से ताल्लुक रखता है. लेकिन उनके सिनेमा में इस महादेश का जनसंगीत, हिलोरे मारता है. आधुनिक तकनीकों के बीच वे एकदम भारतीयता का पुट लाना चाहती थी. लोक संगीत को अपने नए कैनवास पर उतारना चाहती थी. जब हमारा सारा बॉलीवुड संगीत बड़े गौरव के साथ स्टूडियोज के भीतर कंप्यूटर्स और मंहगे कंसोल्स पर तैयार हो रहा है, उस समय स्नेहा ने गीतों को खेतों की मुंडेरों पर रचा है. घरों के बैठकखानों में रचा है. भरे बाजारों में रचा है. उनके संगीत में लोक भी है और जैज भी, और तो और चटनी म्यूजिक भी है. यही कारण है कि उनके संगीत में रचे-बसे गीत लोगों के दिलों पर ठक से अपनी दस्तक देती है.
जब हम स्नेहा के संगीत के सफर की ओर देखते हैं, तो पता चलता है कि उन्होंने वर्ष 2004 में इंटरनेशनल फिल्म होप में काम किया. उसके बाद उन्होंने रूचि नारयण की फिल्म काल में अपना पहला संगीत निर्देशन किया. इसके बाद राम गोपाल वर्मा की सरकार राज का भी संगीत निर्देशन किया. साल 2008 में उन्हें हिंदी सिनेमा में पहचान फिल्म ओए लकी-लकी ओए फिल्म से मिली. इस फिल्म के संगीत निर्देशन के लिए उत्तर भारत की सैर की और रागिनी संगीत सीखा. इसके बाद उन्होंने एक हरयाणवी संगीत भी बनाया.

स्नेहा का जो पहचान अब तक ‘गैंग्स ऑफ वासेपुर’ के गानों से मिलीं. एक नई पहचान. लोक रंग में रचे-बसे संगीतज्ञ की पहचान. असल में, ‘गैंग्स ऑफ वासेपुर’ के गानों के रचे जाने की कहानी तो और भी मजेदार है. अनुराग कश्यप ने फिल्म का असल शूट शुरु होने के भी बहुत पहले उन्हें फिल्म के लिए म्यूजिक बनाने को कहा था, लेकिन ये नहीं बताया कि गाने की सिचुएशंस क्या हैं. उन्हें फिल्म की कहानी पढ़कर अपनी समझ से गानों की सिचुएशंस बनानी थीं और उसके अनुसार संगीत रचना था. यहीं स्नेहा की प्रतिभा सबसे अधिक निखरकर आती है. उन्होंने सिनेमा के संगीत को फिल्म की पटकथा का इतना गहरा हिस्सा बना दिया है कि वे फिल्म में किसी किरदार सी भूमिका अदा करने लगता है. वे उन खाली जगहों को भरता है जिन्हें कहानी में अभिनय, संवाद और चुप्पियां पीछे छोड़ जाते हैं. वे हिन्दी सिनेमा की उस नई पीढ़ी की संगीतकार हैं जिसे सीधे हॉलीवुड से मुकाबला करना है, और इसके लिए वे अपने सिनेमा को तैयार कर रही हैं. अनुराग कश्यप की हिट फिल्म गैंग ऑफ वासेपुर 1 और 2 की संगीत निर्देशिका रही स्नेहा को बेहतरीन संगीत निर्देशन के लिए फिल्म फेयर अवार्ड्स में बेस्ट डायरेक्टर के लिए नामांकित भी किया गया था.

Sneha khanwalkar

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