गेहूँ एक ऐसा अनाज, एक ऐसी औषधि है जिसका प्रयोग मानव अपने जीवनयापन के लिए मुख्यतः रोटी के रूप में करता आया है। गेहूँ रबी की फसल है जो कि मुख्यतः विश्व के दो मौसमों, यानी शीत एवं वसंत ऋतु में उगाई जाती है। शीतकालीन गेहूँ ठंडे देशों, जैसे यूरोप, अमेरिका, आस्ट्रेलिया, रूस आदि में उगाए जाते हैं जबकि वसंतकालीन गेहूँ एशिया एवं संयुक्त राज्य अमेरिका के एक हिस्से में उगाए जाते हैं। वसंतकालीन गेहूँ 120-130 दिनों में परिपक्व हो जाते हैं जबकि शीतकालीन गेहूँ पकने के लिए 240-300 दिन का समय लेते हैं। इस कारण शीतकालीन गेहूँ की उत्पादकता वंसतकालीन गेहूँ की तुलना में अधिक हाती है।
गुणवत्ता को ध्यान में रखकर गेहूँ को दो श्रेणियों में बाँटा गया है- ‘मृदु या रोटी गेहूँ’ एवं ‘कठोर गेहूँ’। ‘ट्रिटिकम ऐस्टिवम’ ‘मृदु गेहूँ’ होता है और ‘ट्रिटिकम डयूरम’ ‘कठोर गेहूँ’ होता है।
भारत में मुख्य रूप से ट्रिटिकम की तीन जातियों जैसे ‘ऐस्टिवम’, ‘डयूरम’ एवं ‘डाइकोकम’ की खेती की जाती है। ‘ट्रिटिकम ऐस्टिवम’ की खेती देश के सभी क्षेत्रों में की जाती है जबकि ‘डयूरम’ की खेती पंजाब एवं मध्य भारत में और ‘डाइकोकम’ की खेती कर्नाटक में की जाती है।
गेहूँ की फसल के बीज वाले भाग को ‘बाली या दंगी’ कहते हैं तथा इसे ‘शूक धान्य’ के नाम से भी जाना जाता है। ऐसा माना जाता है कि, ट्रिटिकम जाति के इस पौधे की खेती लगभग 12000 साल पहले शुरू हुई। पुरातत्व शास्त्रियों का अनुमान है कि, 9600 ईसा पूर्व में गेहूं का इस्तेमाल पहले पहल पश्चिम एशिया में हुआ और फिर गेहूं की कई किस्मों की खेती उत्तरी अफ्रीका, यूरोप और पूर्वी एशिया में भी होने लगी।
भारत में भी गेहूं का इस्तेमाल हजारों साल से हो रहा है। मोहनजोदड़ो और हड़प्पा की खुदाई से पता चलता है कि साढ़े 4000 साल पहले सिंधु घाटी की सभ्यता में भी गेहूं की खेती होती थी।
आधुनिक इतिहास देखें तो अलग-अलग देशों के किसानों और कृषि वैज्ञानिकों ने गेहूं की हजारों किस्में विकसित की है। भारत में मध्य प्रदेश के ‘शरबती गेहूं’ की ख्याति सिर्फ एक इलाके तक ही सीमित नहीं है बल्कि आज पूरे देश में इसे स्वाद और महक के मामले में गेहूं का राजा समझा जाता है।
गेहूँ की खेती मुख्यत सिंचाई पर आधारित होती है। इसकी खेती के लिए दोमट भूमि सर्वोत्तम मानी जाती है। लेकिन साधनों की उपलब्धता के आधार पर हर तरह की भूमि में गेहूँ की खेती की जा सकती है। गेहूँ की बुवाई अधिकतर धान की फसल के बाद ही की जाती है।
इस दुनिया की बढ़ती आबादी के लिए भी गेहूँ एक मुख्य आहार के रूप में लगभग 20 प्रतिशत कैलोरी की पूर्ति करता है। चीन के बाद ‘भारत’ गेहूँ का दूसरा विशालतम उत्पादक देश है।
गेहूँ खाद्यान्न फसलों के बीच भी विशिष्ट स्थान रखता है। यह प्रोटीन, विटामिन और कार्बोहाइड्रेटस का समृद्ध स्त्रोत है। जो कि संतुलित भोजन प्रदान करता है। गेहूँ के दाने में 12 प्रतिशत नमी, 12 प्रतिशत प्रोटीन, 2.7 प्रतिशत रेशा, 1.7 प्रतिशत वसा, 2.7 प्रतिशत खनिज पदार्थ व 70 प्रतिशत कार्बोहाइड्रेट पाया जाता है।
गेहूं से रोटी, कुकीज़, केक, दलिया आदि चीज़े भी बनाई जा सकती है। विशेषज्ञों के अनुसार, गेहूं मैदे के मुक़ाबले ज़्यादा स्वास्थ्यवर्धक माना जाता है। यह पेट के लिए बहुत हल्का होता है और इसे आसानी से पचाया जा सकता है।
गेहूं का भूसा पशुओं के लिए भी पौष्टिक और सरलता से उपलब्ध चारा है। इसके भूसे का प्रयोग कागज और गत्ता बनाने के लिए भी किया जाता है।
अगर देखा जाए तो, गेहूं एक बलवर्धक अनाज और उत्तम आहार के साथ-साथ एक उपयोगी औषधी भी है। जिसका सेवन हर तरह से हमारे लिए स्वास्थ्य के लिए लाभदायक है।
Aaiye jaane gehu ke baare mei