Aloevera: त्वचा संवारनी है, बालों को मजबूत बनाना हो या खुद को सेहदमंद रखना। हमारे आयुर्वेद में एक ऐसी औषधि के बारे में बताया गया है जिसे आपने कई बार सुना होगा और शायद आपके घर की छत पर किसी गमले में फैला हो यह। जी हाँ, हम बात कर रहे हैं वन एण्ड ऑनली घृतकुमारी के बारे में, जिसे आम बोलचाल में आप एलोवेरा कहते हैं। वैसे ये इसका लैटिन नाम है, और हिन्दी में इसे घृतकुमारी के नाम से जाना जाता है। घृत कुमारी या एलोवेरा को क्वारगंदल या ग्वारपाठा के नाम से भी जाना जाता है। आयुर्वेद के पुस्तकों में इसे एक औषधीय पौधे के नाम से जाना जाता है।
घृतकुमारी के अर्क का प्रयोग बड़े स्तर पर सौंदर्य प्रसाधन और त्वचा आदि में किया जाता है। चिकित्सकों की माने तो घृतकुमारी के औषधीय गुण के कारण यह सौंदर्य प्रसाधन के साथ साथ मधुमेह, मानव रक्त में लिपिड का स्तर घटाने में सहायक होता है। माना जाता है कि इसके साकारात्मक प्रभाव का कारण इसमें उपस्थित मन्नास, एंथ्राक्युईनोनेज और लिक्टिन जैसे यौगिकों के कारण होता है। कुछ शोध के बाद इसका इस्तेमाल रक्त शुद्धि में भी काफी उपयोगी सिद्ध हुआ है। जी हाँ अगर आप के लिए यह पौधा पहचानना है कठिन तो हम बताते हैं कैसी होती है इसकी रूपरेखा। घृत कुमारी का पौधा बिना तने का या बहुत छोटे तने का एक गूदेदार और रसीला पौधा होता है। जिसकी लम्बाई 60 से 100 सेंटीमीटर तक होती है। इसका फैलाव नीचे से निकलती शाखाओं द्वारा होता है। इसकी पत्तियां भालानुमा नुकीली, मोटी और मांसल होती हैं। जिनका रंग हरा या हरा-स्लेटी होता है। गर्मी के मौसम में इस पर पीले रंग के फूल भी खिलते हैं। जो बहुत ही मनमोहक लगते हैं।
माना तो यह जाता है कि घृत कुमारी का पौधा मूलत: उत्तरी अफ्रीका का पौधा है और मुख्यत: अल्जीरिया, मोरक्को, ट्यूनीशिया के साथ कैनेरी द्वीप और माडियरा द्वीपं से संबंधित है। हालंकि ऐसा नहीं है। घृत कुमारी के बारे में हमारे बहुत पुराने आयुर्वेद के पुस्तकों में लिखा गया है। यानी कि इसका उपयोग हजारों सालों से हमारी सभ्यता में होता रहा है। खैर इसके औषधीय गुणों की बहुलता के कारण आजकल इसकी खेती बहुत बड़े स्तर पर की जा रही है। कम वर्षा वाले स्थानों में भी इसकी सरल उपज इसे आम जन मानस और व्यापारिक कृषि उत्पादक वर्ग के लिए इसे सुगम बनाती है। हालांकि घृतकुमारी हिमपात और पाले का सामना करने में असमर्थ होता है।
घृतकुमारी यानी कि एलोवेरा को हममें से ज्यादातर लोग सौंदर्य प्रसाधन के रूप में जानते हैं। है तो बिल्कुल सही यह त्वचा के रैशेज, सूजन और जलन को समाप्त कर अपने एंटिबैक्टीरियल गुणों के कारण हमारी त्वचा को किसी भी तरह के संक्रमण से लड़ने लायक बनाता है। यीस्ट इंफेक्शन होने की स्थिति में भी आप घृतकुमारी का जूस पी सकते हैं। यह पूरी तरह आयुर्वेदिक और स्वास्थ्य वर्धक होता है। घृतकुमारी में मौजूद तत्व हमारे शरीर के सफेद रक्थ कणिकाओं यानी वाइट सेल्स की मात्रा को बढ़ाता है। इनकी स्वस्थ्य कोशिकाएं इंफेक्शन को जड़ से खत्म करने का काम करती हैं। आपको जानकर शायद हैरानी हो सकती है, लेकिन पुराने समय में आमतौर पर हर भारतीय परिवार के किचन गार्डन में मिलनेवाला एलोवेरा एंटीट्यूमर होता है। घृतकुमारी कैंसर कोशिकाओं को रोकने तथा नए स्वस्थ कोशिकाओं के सृजन का काम भी करती हैं।
लेकिन आयुर्वेद में बहुत प्रचारित और प्रसारित इस पौधे के जूस के सेवन में कुछ बातें ध्यान रखने योग्य हैं। जिन लोगों को दिल से संबंधित कोई परेशानी हो उन्हें एलोवेरा का सेवन नहीं करना चाहिए। चूंकि एलोवेरा का नियमित सेवन उच्च रक्तचाप की स्थिति में लाभदायक होता है लेकिन कम रक्त चाप वालों को इसके सेवन से बचना चाहिए। इसके ज्यादा सेवन से डिहाइड्रेशन की परेशानी हो सकती है। कब्ज अथवा बाउल मूवमेंट की स्थिति में इसके सेवन से बचें। इसलिए बिना डॉक्टर की सलाह लिए इसका सेवन न करें।