भारत विविधताओं का देश है — भाषाओं, संस्कृतियों, धर्मों और परंपराओं से भरा हुआ। इन विविधताओं के बीच जो शक्ति हमें एक सूत्र में बांधती है, वह है हमारी साझी चेतना और संवाद की भाषा। इस दिशा में हाल ही में शुरू हुआ हिन्दी में हस्ताक्षर अभियान एक प्रेरणादायक पहल बनकर उभरा है, जो न केवल हिन्दी भाषा के संवर्धन का माध्यम है, बल्कि भारत की “अनेकता में एकता” की भावना को भी मजबूती प्रदान करता है।
हिन्दी, जो देश के करोड़ों लोगों के दिलों की आवाज है, आज वैश्विक मंच पर भी भारत की पहचान बनती जा रही है। फिर भी, हमारे दैनिक जीवन में, विशेष रूप से औपचारिक और व्यावसायिक संचार में, हिन्दी के प्रयोग को अक्सर नजरअंदाज कर दिया जाता है। इस पृष्ठभूमि में हिन्दी में हस्ताक्षर अभियान का उद्देश्य है कि हम अपनी पहचान और भाषा के प्रति गर्व के साथ व्यवहार करें और हस्ताक्षर जैसे छोटे लेकिन महत्वपूर्ण कार्यों में हिन्दी का उपयोग करें।
हिन्दी, जो देश के सबसे बड़े हिस्से द्वारा बोली और समझी जाती है, केवल एक भाषा नहीं, बल्कि हमारी सांस्कृतिक विरासत की पहचान है। इसी भावना को मजबूत करने के उद्देश्य से हिन्दी में हस्ताक्षर अभियान की शुरुआत की गई है।
यह अभियान नागरिकों को प्रेरित करता है कि वे अपने हस्ताक्षर हिन्दी में करें। हस्ताक्षर केवल एक औपचारिक प्रक्रिया नहीं, बल्कि हमारी पहचान का प्रतीक हैं। जब हम हिन्दी में हस्ताक्षर करते हैं, तो हम अपनी भाषा, संस्कृति और इतिहास के प्रति सम्मान व्यक्त करते हैं। यह अभियान बताता है कि भाषा के छोटे-छोटे प्रयोग भी राष्ट्रीय चेतना को जागृत कर सकते हैं।
हिन्दी में हस्ताक्षर करना आत्मसम्मान और आत्मगौरव की भावना को बढ़ावा देता है। यह उन अनगिनत स्वतंत्रता सेनानियों के सपनों को साकार करने की दिशा में एक कदम है, जिन्होंने भारतीय भाषाओं को स्वाभिमान का प्रतीक माना था। हिन्दी में हस्ताक्षर करने से न केवल हिन्दी का गौरव बढ़ेगा, बल्कि आने वाली पीढ़ियों को भी अपनी भाषाई पहचान पर गर्व करने की प्रेरणा मिलेगी।
आज जब वैश्वीकरण के दौर में अंग्रेजी जैसी भाषाओं का प्रभाव बढ़ रहा है, तब हिन्दी में हस्ताक्षर करने जैसा सरल लेकिन प्रभावी कदम हमें अपनी जड़ों से जोड़ता है। यह पहल केवल हिन्दी भाषियों तक सीमित नहीं है; यह पूरे देश के लिए एक संदेश है कि अपनी मातृभाषा का सम्मान करना हमारी सांस्कृतिक विविधता को संजोने का एक सशक्त माध्यम है।
यह अभियान लोगों को उनकी अपनी भाषा में आत्मीयता से जोड़ने का माध्यम है। हस्ताक्षर किसी भी दस्तावेज़ पर एक व्यक्ति की स्वीकृति और सम्मान का प्रतीक होते हैं। जब हम हिन्दी में हस्ताक्षर करते हैं, तो हम केवल अपनी सहमति नहीं जताते, बल्कि अपनी सांस्कृतिक विरासत, अपनी जड़ों और अपनी मातृभाषा के प्रति सम्मान भी प्रकट करते हैं।
युवाओं, शिक्षकों, सरकारी अधिकारियों और सामान्य नागरिकों में इस अभियान को लेकर उत्साह देखने को मिल रहा है। विभिन्न स्कूलों, कॉलेजों, कार्यालयों और स्वयंसेवी संगठनों ने इस पहल का स्वागत करते हुए हस्ताक्षर कार्यशालाओं और जनजागरूकता कार्यक्रमों का आयोजन शुरू कर दिया है।
हिन्दी में हस्ताक्षर करने का आग्रह कोई मात्र औपचारिकता नहीं है, यह एक विचार है — एक ऐसा विचार जो हमें याद दिलाता है कि भाषा केवल संप्रेषण का माध्यम नहीं, बल्कि संस्कृति और स्वाभिमान का प्रतीक भी है। इस अभियान के माध्यम से हम न केवल हिन्दी का सम्मान कर रहे हैं, बल्कि “विविधता में एकता” के भारतीय आदर्श को भी पुनः जागृत कर रहे हैं।
भारत के लोग दुनिया भर में अपनी कर्मठता के लिए जाने जाते हैं। परिस्थितियां कितनी भी कठिन क्यों न हो, साधनों का आभाव कितना भी क्यों न हो,लेकिन हम हमेशा विपरीत परिस्थितियों में ही निखरते हैं। भारत की सभ्यता और संस्कृति की अगर आज दुनियां में नाम है तो इन्ही कर्मठता और जुझारूपन के लिए। भारतीय इतिहास में अनेकों ऐसे नाम हैं जो विपरीत स्थिति को अपनी दिशा में मोड़कर विजयी हुए हैं। लेकिन ये बातें अभी क्यों? क्या जरुरत है भारतीय सभ्यता और संस्कृति को कुरेदने की? आज जिस तेज़ी से लोग अपनी जड़ों से दूर होते जा रहें हैं और अपनों के प्रति निर्लिप्त भाव दर्शाते हैं। ऐसे में जरुरत है फिर से बसुधैव कुटुम्बकम को पुनर्जीवित करने की, उन्हें अपनी सभ्यता और संस्कृति के बारे में जागरूक करने की।
हिन्दी में हस्ताक्षर करना एक छोटा कदम भले लगे, लेकिन इसका भाव और संदेश अत्यंत गहरा है। यह अभियान देशवासियों को यह स्मरण कराता है कि अपनी भाषा और अपनी संस्कृति के प्रति गौरव की भावना ही हमारे सामूहिक भविष्य को उज्जवल बना सकती है। एक हस्ताक्षर, एक भावना, एक भारत।
तरुण शर्मा (लेखक भारतीय समाज और संस्कृति के तत्वदर्शी हैं।)