वृद्धजन हमारे भारतीय सभ्यता संस्कृति के संवाहक हैं। युवा पीढ़ी को, बच्चों को अपने पुरातन संस्कारों रीति रिवाज से अवगत कराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। उनके उपस्थिति मात्र से ही घर सुरक्षित महसूस होता है। उनका अनुभव और ज्ञान हमें जीवन के मार्गदर्शन में मदद करते हैं ।उनकी सलाह और उनकी कथाएं हमें समझाती है कि कैसे विभिन्न परिस्थितियों का, संघर्षों का सामना करें। पूरे परिवार के आधार स्तंभ यह वृद्ध जन आजकल उपेक्षित हो रहे हैं ।यह अनुभव के हिमशिखर है। इनका स्थान समाज में सबसे ऊंचा होना चाहिए। आधुनिक परिवेश में वृद्ध जनों का जीवन मृत्यु के दुख से बड़ा दुख बनता जा रहा है। जिनके हाथ हमेशा सृजन में लगे रहते थे, जिनमें कदम तेजी से चलते थे जिनका मन अपने दिल के टुकड़ों के बारे में सोच सोच कर कभी थकता नहीं था। बहते हुए समय की धारा में जब उनका शरीर शिथिल होने लगा, हाथ पांव कांपने लगे, तब जिन बच्चों को हाथ पकड़ कर चलना सिखाया, पढ़ा लिखा कर काबिल बनाया उन्ही के द्वारा अपेक्षा, प्रताड़ना का दंश जब उन्हें झेलना पड़ता है तो तब उनकी स्थिति अत्यंत कारुणिक हो जाती है।
भगवान श्री राम, श्रवण कुमार के इस देश में भारतीय संस्कृति के धरोहर स्वरूप वृद्ध जनों की अपेक्षा के लिए जहां हमेशा युवा पीढ़ी को दोष दिया जाता है, वहां कुछ हद तक बुजुर्ग स्वयं भी उत्तरदायी हैं। अधिक प्रेम- प्यार में आकर वे अपना धन, संपत्ति, मकान ,जायदाद सब अपने जीते जी बच्चों के नाम कर देते हैं । उसके बाद वे बच्चों पर निर्भर हो जाते हैं। ऐसा नहीं है की सारी युवा पीढ़ी बुजुर्गों की अपेक्षा करती है, कुछ अपनी व्यस्तता के कारण उनका समय नहीं दे पाते। कुछ शहर या विदेश में नौकरियां करते हैं तो बुजुर्ग घर में अकेले रह जाते हैं ।धन के रूप में माता-पिता का ध्यान रखते हैं पर बुजुर्गों को अकेलापन दूर नहीं कर सकते। जब तक बुजुर्ग लोग स्वस्थ हैं तब तक सब ठीक रहता है होता है परंतु जब उनको सहारे की आवश्यकता पड़ती है तो आना चाहकर भी बच्चे उनके पास नहीं आ पाते।
इस दिशा में कुछ संस्थाओं ने, संतों ने वानप्रस्थ आश्रम की परंपरा को जागृत करने का प्रयास किया है। जहां बुजुर्गों की अच्छी देखभाल भी होती है और सब बुजुर्ग आपस में मिलजुल कर भजन, कीर्तन करके हंस बोलकर अपना अच्छा समय व्यतीत करते हैं ।इन संस्थाओं आश्रमों में उनसे योग प्राणायाम ,आसन भी कराए जाते हैं। एक खुशनुमा वातावरण का निर्माण करके ये आश्रम, संस्थाएं इस दिशा में एक सराहनीय कार्य कर रही हैं।
लेखिका- रजनी गुप्ता