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साधारण मातृशक्ति का असाधारण कीर्तिमान – पद्म पुरस्कार 2020

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जननी जन्मभूमिश्च जाह्नवी च जनार्दन:।
जनकः पंचमश्चैव, जकाराः पंच दुर्लभाः।।

अर्थात् ‘ज’ वर्ण से प्रारंभ होने वाले शब्द जननी(माता), जन्मभूमि, जाह्नवी(गंगा माता), जनार्दन(विष्णु भगवान) और जनक(पिता) – इन पाँच जकारो का संसार में सर्वाधिक महत्व है, इनके दर्शन दुर्लभ हैं। अतः इनका हमेशा सम्मान किया जाना चाहिए।

इन्हीं पाँचों में से एक है- ‘जननी’ यानी कि हमारी मातृशक्ति। जो कि इस समूचे संसार में अपना एक अलग ही महत्व रखती आयी है। इनके बिना सृष्टि का कोई भी कार्य संभव नहीं है।

चाहे बुलंदियों का आसमां छूने की ख़्वाहिश हो, चाहे ज़मीन से जुड़कर अपनी संस्कृति, अपनी कला को बचाने की कवायद। ये मातृशक्ति ही है जो विपरीत परिस्थितियों में भी अपने साथ ही समाज के अन्य लोगों का भी भला करती आयी है।

आज आप चाहे साहित्य के क्षेत्र में ले लो, चाहे कृषि के, चाहे शिक्षा के क्षेत्र में ले लो, चाहे चिकित्सा के। भारत की इन महिलाओं ने विश्व के हर कीर्तिमान को छुआ है। जिसके लिए इन्हें बड़े से बड़े पुरस्कारों से नवाज़ा भी जा चुका है। इन्हीं में शामिल है केंद्र सरकार द्वारा 2020 में दिए गए प्रतिष्ठित ‘पद्म पुरस्कार’। ये भारत की कई खास महिलाओं के साथ ही कितनी ही आम महिलाओं को भी दिए गए। और आज गाँव-क़स्बों की ये आम महिलाएं ही सबके लिए एक मिसाल बन चुकी है।

इन्हीं महिलाओं में से एक नाम हैं- 94 वर्षीय ‘कृष्णम्मल जगन्नाथन’ का। इन्होंने अपने पति शंकरलिंगम जगन्नाथन के साथ मिलकर हज़ारों भूमिहीन किसानों एवं मज़दूरों को जमीन दिलवाई जिस हेतु इस युगल को पद्मभूषण से सम्मानित किया गया।

पद्म भूषण के साथ ‘पद्म श्री’ पाने वाली महिलाओं की फ़ेहरिस्त भी कम लंबी नहीं है-

‘बीज माता’ नाम से विख्यात महाराष्ट्र की 56 वर्षीय ‘राहीबाई सोमा पोपेरे’ इन्हें देसी बीजों के संरक्षण के लिए पद्मश्री प्रदान किया गया।

साथ ही चिकित्सा के क्षेत्र में, मध्यप्रदेश की ‘मदर टेरेसा’ नाम से विख्यात 82 वर्षीय ‘डॉ. लीला जोशी’ इन्हें आदिवासी महिलाओं के स्वास्थ्य हेतु काम करने और मुफ्त इलाज देने हेतु पद्मश्री से नवाज़ा गया।

इसी तरह कला के क्षेत्र में, केरल निवासी 70 वर्षीय ‘मुझिक्‍कल पंकजाक्षी’ इन्हें अपनी पारंपरिक कला नोकुविद्या को संरक्षित करने और इस विरासत को आगे बढ़ाने व सहेजने हेतु पद्म श्री से अलंकृत किया गया।

इन महिलाओं के अलावा डॉ. दमयंती बेसरा(साहित्य एवं शिक्षा), सुश्री ऊषा चौमार(सामाजिक कार्य), श्रीमती विदुषी जयलक्ष्‍मी के. एस.(साहित्‍य एवं शिक्षा–पत्रकारिता), सुश्री शांति जैन(कला) आदि को नवभारत के निर्माण में योगदान देने हेतु तथा वर्षों की मेहनत के फलस्वरूप पुरस्कृत किया गया।

फिर भी इन मातृशक्तियों के देश के प्रति, समाज के प्रति असीम योगदान को कुछ शब्दों में व्यक्त नहीं किया जा सकता। आम ज़िंदगी में ख़ास मकसद लेकर आगे बढ़ती ये महिलाएं गरीबी-अमीरी, जात पात से परे देश में परिवर्तन की बयार लेकर आई है। आज के युग में मात्र सृजन ही इनका कार्य नहीं रह गया ये इन सशक्त महिलाओं ने साबित कर दिया है।

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