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जीवन संहिता है आयुर्वेद

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टीम हिन्दी

आयुर्वेद आज पूरी दुनिया में उपयोग किया जा रहा है. यह भी भारत की ही एक देन है. प्राचीन काल में ऋषि-मुनि जंगलों में जड़ी बूटियों से रोग नाशक औषधियां तैयार करते थे. आज यह प्रकिया पूरी दुनिया में लोकप्रिय हो गई.

कहा जाता है कि आयुर्वेद जीवन का वेद है. व्याधीयों से मुक्त होने के लिए एवं स्वास्थ्य संपन्न जीवन व्यतीत करने हेतु जिन जिन द्रव्यों का उपयोग होता है, ऐसे सभी द्रव्य आयुर्वेदीय औषधियों में समाविष्ट हैं. आयुर्वेद ने मीठे, खट्टे, नमकीन, तीखे, कडवे तथा कसैला स्वादवाले अन्न एवं द्रव्यों का दोष, धातु तथा मल आदिपर किस प्रकार से परिणाम होता है, इसका यथा योग्य वर्णन किया है.

रोगों का नाश कर स्वास्थ्य प्रदान करनेवाले धन्वंतरी देवता को आयुर्वेद में विशेष स्थान प्राप्त है.  औषधि वनस्पति को निकालते समय, उसपर प्रक्रिया करते समय तथा उसका सेवन करते समय इस प्रकार से प्रत्येक चरण पर प्रार्थना को महत्त्व दिया गया है. वर्तमान में स्वास्थ्य की अल्प शिकायत होने पर भी अधिकाधिक लोग तुरंत ‘एलोपैथिक’ औषधि सेवन करना प्रारंभ करते हैं. प्राचीन ऋषि-मुनियों द्वारा बताए हुए ‘आयुर्वेद’ के महत्त्व का विस्मरण किया जाता है.  ‘एलोपैथिक’ औषधियों के दुष्प्रभाव हो सकते हैं अथवा उन औषधियों की चिकित्सा से अन्य कई विकार भी हो सकते हैं.  आयुर्वेदिक औषधियों से ऐसा नहीं होता. आयुर्वेदिक औषधियों से निरोगी तथा दीर्घायु होना संभव होता है.  आयुर्वेद के महत्त्व को जानकर अब पश्चिमी देश आयुर्वेदिक औषधियों का ‘पेटंट’ लेने का प्रयत्न कर रहे हैं.

धन्वंतरि, चरक, च्यवन और सुश्रुत ने विश्व को पेड़-पौधों और वनस्पतियों पर आधारित एक चिकित्साशास्त्रदिया. आयुर्वेद के आचार्य महर्षि चरक की गणना भारतीय औषधि विज्ञान के मूल प्रवर्तकों में होती है.  चरक, सुश्रुत, काश्यप आदि मान्य ग्रन्थ आयुर्वेद को अथर्ववेद का उपवेद मानते हैं। इससे आयुर्वेद की प्राचीनता सिद्ध होती है. इस शास्त्र के आदि आचार्य अश्विनीकुमार माने जाते हैं जिन्होने दक्ष प्रजापति के धड़ में बकरे का सिर जोड़ा था. अश्विनी कुमारों से इंद्र ने यह विद्या प्राप्त की. इंद्र ने धन्वंतरि को सिखाया। काशी के राजा दिवोदास धन्वंतरि के अवतार कहे गए हैं. उनसे जाकर सुश्रुत ने आयुर्वेद पढ़ा. अत्रि और भारद्वाज भी इस शास्त्र के प्रवर्तक माने जाते हैं.

ऋषि चरक ने 300-200 ईसापूर्व आयुर्वेद का महत्वपूर्ण ग्रंथ ‘चरक संहिता’ लिखा था. उन्हें त्वचा चिकित्सक भी माना जाता है. आचार्य चरक ने शरीरशास्त्र, गर्भशास्त्र, रक्ताभिसरणशास्त्र, औषधिशास्त्र इत्यादि विषय में गंभीर शोध किया तथा मधुमेह, क्षयरोग, हृदय विकार आदि रोगों के निदान एवं औषधोपचार विषयक अमूल्य ज्ञान को बताया. आठवीं शताब्दी में चरक संहिता का अरबी भाषा में अनुवाद हुआ और यह शास्त्र पश्चिमी देशों तक पहुंचा. चरक और च्यवन ऋषि के ज्ञान पर आधारित ही यूनानी चिकित्सा का विकास हुआ.

Jivan sanhita hai ayurved

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