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बचपन को खिलने दो, फूलों को हंसने दो।

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बचपन के दिन, मस्ती के दिन, नाचते गाते, बिन बात  हंसते झूमते खिलखिलाते। किसको अपना बचपन याद नहीं आता। पर आजकल बच्चों का बचपन कहीं खोता जा रहा है। बच्चों पर बहुत ही जल्दी जिम्मेदारियां का बोझ बढ़ रहा है।  संयुक्त परिवार के परंपरा विलुप्त होती जा रही है। युवा पीढ़ी एक बेहतर जिंदगी के लिए गांव से शहर और शहर से विदेश में जाकर बस रही हैं। पहले समय में बच्चों की परवरिश संयुक्त परिवार में बड़ों के संरक्षण में होती थी। समय की मांग के अनुसार आजकल अधिकतर महिलाएं भी घरों से बाहर निकल कर काम कर रहीं हैं ।परंतु इससे बच्चों की परवरिश एक समस्या बनती जा रही है। बच्चे व्यस्त रहें और मां-बाप को तंग ना करें तो महिलाएं उनके हाथ में मोबाइल फोन, वीडियो गेम पकड़ा देती हैं और या फिर उन्हें टीवी के आगे बिठा देती हैं । परन्तु  इससे बच्चों में क्रियात्मकता खत्म होती जा रही है। यह इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स बच्चों के विकास में बाधक है। Steve Vaugh ने 16 साल तक अपने बच्चों को यह  gadget यूज करने नहीं दिया। उन्होंने कहा इस monster को मैंने बनाया है ।मुझे पता है यह कितना नुकसान करता है। अमेरिका के सिलिकॉन वैली में स्कूल में कोई भी स्मार्ट क्लास नहीं होती। वहां नेचुरल तरीके से पढ़ाया जाता है। बड़े-बड़े intellectual इस स्क्रीन से अपने बच्चों को दूर रखते हैं।
हमें भी यह ध्यान रखना चाहिए कि बच्चों को स्क्रीन का कम से कम इस्तेमाल करने दे। खाना खाते वाली जगह भी डिवाइस फ्री होनी चाहिए।  यह इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स बच्चों से उनका बचपन छीन रहे हैं।
हिंदी की सुप्रसिद्ध कवित्री सुभद्रा कुमारी चौहान की कविता है-
“बार-बार आती है मुझको मधुर याद बचपन तेरी,
गया ले गया तू जीवन की सबसे मस्त खुशी मेरी,
चिंता रहित खेलना खाना वह फिरना निर्भय स्वच्छंद,
कैसे भूला जा सकता है बचपन का अतुलित आनंद”।
सच में बचपन को हर एक व्यक्ति वापस लाना चाहता है। पर फिर से बच्चा हो जाना चाहता है। चिंता रहित बचपन खो गया है। किताबों की पढ़ाई और आगे बढ़ाने की होड़ ने बच्चों से उनका बचपन छीन लिया है। इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स ने बच्चों का बचपन छीन लिया है। खुशियों की पाठशाला स्कूलों में होनी चाहिए ताकि बचपन खिले। पाठशाला में थोड़ी मस्ती भी होनी चाहिए। मोदी जी कहते हैं ‘बचपन तेजी से मर रहा है’। बचपन दीर्घकालीन होना चाहिए। बचपन में शरारतें होनी चाहिए, मस्ती होनी चाहिए। पक्षियों को उड़ने दो, नदियों को बहने दो ,बच्चों को हंसने दो, फूलों को खिलाने दो। बचपन एक उम्र नहीं बल्कि जादू सी लगती पूरी दुनिया है, जहां है ढेर सारा धमाल, पूरी मस्ती, खिलखिलाते, मुस्कुराते हुए जुगनू की यह क्लास जहां  subject है केवल हंसी, खुशी। मस्ती करते-करते बच्चे एक दूसरे से बहुत कुछ सांझा करते हैं, सीखते हैं।
परंतु आज बचपन पर भी चिंता दबाव की लकीरें दिखाई दे रही हैं। तो बचपन को व्यस्कों का जमा कौन पहन रहा है ,कौन इनसे इनका बचपन छीन रहा है। बचपन बदरंग और बेनूर हो रहा है ।हमारे आधे अधूरे अरमान  बचपन को बदरंग कर रहे हैं। हम अपनी आकांक्षा बच्चों पर लाद रहे हैं ।अपनी व्यस्तता के कारण हम उन्हें समय नहीं दे पा रहे हैं ।बच्चे आपकी संपत्ति नहीं है। उनको आदेश देने की बजाय मां-बाप को उनके मित्र साथ मित्रवत व्यवहार करना चाहिए। जब आप बच्चों के मित्र बनेंगे तो बच्चे अपनी समस्या आपसे साझां करेंगे। आपके और निकट आएंगे। बच्चों के electronic gadgets से भी दूर रखने के लिए उनकी rationing होनी चाहिए ।आपके मित्रवत व्यवहार से बच्चों के ऊपर सकारात्मक प्रभाव होगा और एक स्वस्थ वातावरण निर्मित होगा। परस्पर प्रेम और विश्वास दृढ़ होगा। बच्चों के साथ बैठे, खेलें, हंसें। इससे सच में आपका  बचपन भी बच्चों के वापस लौट आएगा।

लेखिका- रजनी गुप्ता

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