विश्व के सबसे प्राचीन दर्शन या धर्मों में से एक है- ‘जैन धर्म’। सिंधु घाटी से मिले जैन अवशेष बताते हैं कि जैन धर्म भारत का सबसे प्राचीन धर्म है।
भारत की श्रमण परंपरा से निकला प्राचीन धर्म है – जैन धर्म। जैन अर्थात् कर्मों का नाश करनेवाले ‘जिन भगवान’ के अनुयायी। जो ‘जिन’ के अनुयायी हो उन्हें ‘जैन’ कहते हैं। ‘जिन’ शब्द बना है संस्कृत के ‘जि’ धातु से। ‘जि’ यानी – जीतना। ‘जिन’ यानी – जीतने वाला। जिन्होंने अपने तन-मन और वाणी को जीत लिया और विशिष्ट आत्मज्ञान को पाकर पूर्णज्ञान प्राप्त कर लिया उन पुरुष को ‘जिनेन्द्र या जिन’ कहा जाता है।
वर्तमान में जैन धर्म की व्यापकता और उसके दर्शन का संपूर्ण श्रेय भगवान महावीर को जाता है। भगवान महावीर ने अहिंसा को जैन धर्म का आधार बनाया। उन्होंने तत्कालीन हिन्दु समाज में व्याप्त जाति व्यवस्था का विरोध किया और सबको समान मानने व ‘जियो और जीने दो’ के सिद्धान्त पर जोर दिया। उन्होंने घर त्यागा तथा वन में जाकर तप और ध्यान करना शुरू किया। कहते हैं कि महावीर स्वामी एक भगवा कपड़े के साथ अपने मुंह से ‘नमो सिद्धाणं’ बोलकर वन की ओर गए थे तब से समस्त साधु-संत इस णमोकार महामंत्र का जाप करते हैं।
महावीर स्वामी ने 30 वर्ष की आयु में कैवल्य ज्ञान प्राप्त किया और ऐसे धार्मिक नेता हुए जिन्होंने राज्य या किसी बाहरी शक्ति का सहारा लिए बिना केवल अपनी सत्य, अहिंसा, श्रद्धा, विश्वास के बल पर जैन धर्म की पुन: प्रतिष्ठा की।
रागद्वेषी शत्रुओं पर विजय पाने के कारण ‘वर्धमान महावीर’ को ‘जिन’ की उपाधि दी गई थी। अतः उनके द्वारा प्रचारित धर्म ‘जैन धर्म’ कहलाया व उनके अनुयायी ‘जैन’ कहलाये। जैन धर्म में अहिंसा को परमधर्म माना गया है। इस धर्म में प्राणिवध के त्याग का सर्वप्रथम उपदेश है। केवल प्राणों का ही वध नहीं, बल्कि दूसरों को पीड़ा पहुँचाने वाले असत्य भाषण को भी हिंसा का एक अंग बताया है।
जैन ग्रंथों के अनुसार, वर्तमान में प्रचलित जैन धर्म भगवान आदिनाथ के समय से प्रचलन में आया। यहीं से जो तीर्थंकर परम्परा प्रारम्भ हुयी वह भगवान महावीर या वर्धमान तक चलती रही जिन्होंने ईसा से 527 वर्ष पूर्व निर्वाण प्राप्त किया था। भगवान महावीर के समय से पीछे के कुछ लोग विशेषकर यूरोपियन विद्वान् जैन धर्म का प्रचलित होना मानते हैं। उनके अनुसार यह धर्म बौद्ध धर्म के पीछे उसी के कुछ तत्वों को लेकर और उनमें कुछ ब्राह्मण धर्म की शैली मिलाकर खडा़ किया गया। जिस प्रकार बौद्धों में २४ बुद्ध है उसी प्रकार जैनों में भी २४ तीर्थंकर है।
अशोक के अभिलेखों से यह पता चलता है कि उनके समय में मगध में जैन धर्म का प्रचार था। लगभग इसी समय, मठों में बसने वाले जैन मुनियों में यह मतभेद शुरू हुआ कि तीर्थंकरों की मूर्तियां कपड़े पहनाकर रखी जाए या नग्न अवस्था में। इस बात पर भी मतभेद था कि जैन मुनियों को वस्त्र पहनना चाहिए या नहीं। आगे चलकर यह मतभेद और भी बढ़ गया। ईसा की पहली सदी में आकर जैन धर्म को मानने वाले मुनि दो दलों में बंट गए। एक दल ‘श्वेतांबर’ कहलाया, जिनके साधु सफेद वस्त्र पहनते थे, और दूसरा दल ‘दिगंबर’ कहलाया जिसके साधु नग्न ही रहते थे।
जैन दर्शन में कहा गया है कि इस जगत को न किसी ने बनाया है न ही कभी इस की शुरुआत हुई है और न ही कभी इसका अंत होगा। यह जगत अनादि-अनंत है। अतः जैन धर्म भी अनादि काल से है और अनादि काल तक कालचक्र के परिवर्तन के साथ चलता रहेगा।
महावीर स्वामी द्वारा बनाए गए धर्म को ‘जैन धर्म’ क्यों कहते है, इस बात का कहीं भी स्पष्ट उल्लेख नहीं मिलता, सभी अपने-अपने हिसाब से भिन्न-भिन्न मत प्रस्तुत करते हैं लेकिन उपर्युक्त जानकारी के आधार पर ये कह सकते हैं कि जिसने अपने तन-मन और वाणी को जीत लिया वह ‘जितेंद्रिय’ है और यह जितेंद्रिय ही महावीर का अनुयायी यानी ‘जिन’ है तथा ये जिन जिस धर्म का प्रचार-प्रसार करते हैं वो ‘जैन धर्म’ कहलाता है।
क्रांतिकारी राष्ट्रसंत मुनिश्री तरुणसागर जी कहते हैं
जैन धर्म दुनिया का प्राचीनतम धर्म है। यह खुद को जीतने वालों का धर्म है। सत्य, अहिंसा, अचौर्य, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह इसके सर्वोच्च सिद्धांत है। इतिहास उठाकर देख लीजिए यही एक धर्म है जिसका किसी के साथ संघर्ष नहीं। जैन धर्म एक को परमात्मा नहीं मानता वरन् एक-एक को परमात्मा मानता है। हर एक में महावीर होने की क्षमता है।”
तरुण शर्मा
(लेखक हिन्दी भाषा अभियानी हैं।‘द हिन्दी’ के प्रबंध संपादक हैं।)
कितना जानते हैं भारतीय पंचांग के बारे में ?
नाम आम है, लेकिन काफी खास फल है यह ‘आम’।