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धर्म और संस्कृति के संवाहक- ये गुरुकुल

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भारत की आत्मा, उसका अध्यात्म,उसकी अजेय संस्कृति, प्राचीन परंपरा, प्रतिष्ठा गुरुकुलों में निवास करती हैं। जहां गुरुकुल से शिक्षित धर्माचार्य धर्म ध्वजा के संवाहक होते हैं, वहीं ज्ञान का ज्योतिर्मय दीप बंन धरा के अंधकार, अज्ञानता, कुरीतियों ,अंधविश्वासों को समूल नष्ट करने में सक्षम होते हैं ‌।गुरुकुल भारतीय सभ्यता, संस्कृति को जीवन्त करने में अपनी अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। ये गुरुकुल भारतीय संस्कृति के सजग प्रहरी हैं और हमारी संस्कृति को उजागर करते, उसका संरक्षण और उसका संवर्धन करते हैं। ये गुरुकुल हमारी भारतीय संस्कृति की उज्जवल नींव है। त्रेता युग में भगवान श्री राम का ऋषि विश्वामित्र के गुरुकुल में पढ़ने जाना, द्वापर में भगवान श्री कृष्ण भक्त और सुदामा का ऋषि संदीपनी के गुरुकुल में पढ़ना ,महाभारत काल में कौरवों और पांडवों का गुरु द्रोणाचार्य के गुरुकुल में शिक्षा के साथ मल्ल विद्या, धनुर्विद्या का सीखना जग प्रसिद्ध है।स्वामी विवेकानंद जैसे अनेक विद्वानों का उदय इसी गुरुकुल पद्धति से होना संभव है।
हमारी गुरुकुल पद्धति प्राचीन और अर्वाचीन शिक्षा पद्धति पर आधारित है ।यह शिक्षा प्रणाली व्यक्ति का संपूर्ण विकास करती हैं। यह व्यक्ति के मन में आत्मविश्वास, आत्मनिर्भरता, परोपकार धर्म सेवा, संस्कृति और संस्कारों के अनुपालन, मानव सेवा और राष्ट्रभक्ति के उत्तम भावों को पोषित करती है ।गुरुकुल में अक्षर ज्ञान के साथ-साथ सात्विक चिंतन, सच्चरित्र, सदव्यवहार ,सदाचरण की भावनाओं को जागृत किया जाता है। गुरुकुल के विद्यार्थी का जीवन अत्यंत अनुशासित, नियमबद्ध और सक्रिय रहता है । उनकी एक निश्चित दिनचर्या होती है। उसमें योग, आसन ,प्राणायाम, प्रतिदिन यज्ञ, स्वाध्याय ,खेलकूद, भजन कीर्तन सभी क्रियाओं को नियमित रूप से कराया जाता हैं। यह गुरुकुल कोई सामान्य शिक्षा संस्थान नहीं है। अपितु ये भारतीय संस्कृति के सृजन स्थल और प्रचार केंद्र हैं जहां विद्यार्थियों को निश्चित पाठ्यक्रम के साथ-साथ वेदों, उपनिषदों रामायण, गीता एवं अन्य वैदिक ग्रन्थों का मूल ज्ञान दिया जाता है। ये ही विद्यार्थी ज्ञान प्राप्त करके उपदेश बनकर उस ज्ञान का देश-विदेश में प्रचार प्रसार करते हैं। अर्थात यह गुरुकुल भारतीय सभ्यता संस्कृति के संवाहक हैं। इनमें गढे गए छात्र राष्ट्र, संस्कृति और धर्म के उत्थान के पुण्य कार्य में निरंतर संलग्न रहते हैं।
पुरातन समय में हमारे यहां 12 लाख गुरुकुल थे परंतु विदेशी आक्रांताओं के कारण और अंग्रेजों के शासनकाल में मैकाले शिक्षा पद्धति के कारण इन गुरुकुलों का लोप होता गया। परंतु अभी भी इस गुरुकुल की पद्धति को जीवित रखने के लिए अनेक हिंदू गुरु अपने आश्रमों, संस्थानों में इस पद्धति को जीवित रखने के प्रयास में सतत प्रनशील हैं। गुरुकुल शिक्षा पद्धति का अधिकतर प्रचार प्रसार होना चाहिए ताकि यह ऋषिपरंपरा पुनः जीवित हो सके और आधुनिक शिक्षा जो केवल डॉक्टर, इंजीनियर ,एडवोकेट, व्यवसायी आदि को ही जन्म ना दे बल्कि इन सब के साथ एक संस्कारवान व्यक्तित्व का सृजन हो सके और यह सब गुरुकुल शिक्षा पद्धति के पुनरुत्थान से ही संभव है।

लेखिका- रजनी गुप्ता

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