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धार्मिक और सामाजिक समरसता का प्रतीक: हमारा भारत- तरूण शर्मा

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“बहु भाव व एकत्व भव” 
अर्थात् ‘एकरूपता ही समरसता का वास्तविक अर्थ है।’

हमारी भारत भूमि संतों, मुनियों और राष्ट्रभक्तों के खून पसीने से सींची गई तपोभूमि है जिसने दुनिया को समरसता का संदेश दिया। भारतीय संस्कृति की सबसे बड़ी विशेषता ही यही है कि ये किसी इंसान या प्राणी में परायापन नहीं देखती, सभी को एक समान मानती है।

हम जिस भारत देश के निवासी है, वो किसी एक धर्म, सम्प्रदाय, पंथ या भाषा का देश न होकर गंगा-जमुनी तहजीब का प्राचीन भारत देश हैं। यहाँ दुनिया के सभी धर्मों को मानने वाले लोग बसते है। भले ही सभी की मान्यताएं या विश्वास अलग-अलग हो मगर इन सभी धर्मों में एक ही अलौकिक शक्ति पाने की चाह तथा इंसानों के उपकार की भावना निहित है। इस लिहाज से भले ही सबके रास्ते दिखने में अलग-अलग हो मगर मंजिल सबकी एक ही है।
unity-in-diversityपूर्व में भारत देश को कई आक्रांताओं ने लूटा लेकिन वे यहां के आपसी मेल-जोल व एकता की भावना को ख़त्म नहीं कर पाए। आज भी यहाँ की धार्मिक, नैतिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, साहित्यिक चेतना ने यहाँ के लोगों को एक सूत्र में बांधे रखा है।

भारत के लोगों ने महाभारत की कहानी सुनी ज़रूर थी, लेकिन ‘राही मासूम रज़ा’ ने उसे अपने शानदार पटकथा व संवाद लेखन के ज़रिए घर-घर तक पहुँचा दिया। वे कहते थे कि, मैं गंगा का बेटा हूँ। मुझसे ज़्यादा हिंदुस्तान की संस्कृति और सभ्यता को भला कौन जानता है?'”

वहीं मशहूर गीतकार ‘जावेद अख़्तर’ जिन्होंने दिल को छूने वाले बेशुमार हिंदी गाने लिखें। जहाँ एक ओर वे ‘पल-पल है भारी वो विपदा है आई’ गीत के माध्यम से दूसरे धर्म के प्रति अपनी आस्था प्रकट करते हैं वही दूसरी ओर ‘फिर भी दिल है हिंदुस्तानी’ गीत के माध्यम से वे देश की एकता और अखंडता को परिभाषित करते हैं।

प्रबुद्ध सौरभ ने ठीक ही लिखा है-

“ना दौलत ना शोहरत मांगे ना कोई बल मांगे
दिल का मंगता उस दाता से इतना केवल मांगे
मंगल को मैं बजरंगी से तेरा शुक्र मनाऊँ
शुक्र वार को तू अल्लाह से मेरा मंगल मांगे”

अगर इतिहास की बात करें तो, 1533 ई. में रानी कर्णावती ने बहादुरशाह के आक्रमण से खुद की रक्षा हेतु हुमायूँ को राखी भेजकर अपना धर्मभाई बनाया था इसलिए हुमायूं ने भी राखी की लाज रखते हुए उनके राज्य की रक्षा की।

अकबर ने भी अपने शासनकाल में राम-सीता के नाम पर सिक्के जारी कर ‘तू ही राम है तू रहीम है’ का संदेश दिया। इरफान हबीब जैसे इतिहासकार ऐसी कुछ बातों के आधार पर ही अकबर को सांप्रदायिक सौहार्द का प्रतीक बताते हैं।

फतेहपुर सीकरी में जोधाबाई का महल और मधुबनी का विवाह मंडप दोनों ही हमारे देश के भीतरी संस्कार को दर्शाते हैं, एक में फूल पत्तियों की सजावट है तो दूसरे में बेलबूटों की नक्काशी है।

प्राचीन भारतीय स्थापत्य कला की बात करें तो, भारत की मूर्तिकला व चित्रकला विश्वविख्यात है। हिन्दुओं के मन्दिर विशुद्ध भारतीय शैली के बने हुए हैं, उनमें जाति और धर्म का कोई भेदभाव नहीं है। सभी मन्दिरों में मूर्तियों के लिए गर्भगृह है। खजुराहो, सोमनाथ, काशी, रामेश्वरम्, कोणार्क आदि के मन्दिर उल्लेखनीय कलाओं के नमूने हैं। मध्यकाल में इस कला का सम्पर्क मुस्लिम कला से हुआ जिसके परिणामस्वरूप दुर्ग, मकबरे, मस्जिदें आदि बने। मुगलकाल में भी भारतीय और ईरानी दोनों तरह की चित्रकला का समन्वय देखने को मिलता है।

सिखों के नवें गुरु ‘श्री तेग बहादुर’ जिन्होंने कश्मीरी पंडितों के धार्मिक अधिकारों की रक्षा के लिए अपना आत्मबलिदान दिया। हिन्दुस्तान व हिन्दू धर्म की रक्षा करते हुए शहीद हुए गुरु तेगबहादुरजी को लोग आज भी प्रेम से ‘हिन्द की चादर, गुरु तेगबहादुर’ कहते हैं।

हमारे देश की सेना में भी पंजाब से लेकर मराठा तक और राजपूत से लेकर गोरखा रेजीमेंट तक मौजूद है। जो ये बताती है कि देश की रक्षा से बढ़कर न तो कोई धर्म है और न ही कोई जाति।

वाराणसी का मुख्य चर्च ‘सेंट मैरी कैथेड्रल’ धार्मिक एकता व सामाजिक समरसता की मिसाल है। चर्च के अंदर भगवान बुद्ध का ‘शांति’ का संदेश पीतल से उकेरा गया है जो आपसी एकता और दुनिया में शांति का पैगाम देता है, चर्च की दीवारों पर गीता के श्लोक भी लिखे हुए हैं। इस चर्च में केवल ईसाई ही नहीं बल्कि अन्य धर्मों के लोग भी जाते हैं।

इस प्रकार हम कह सकते हैं कि कई विषमताओं और भिन्नताओं के होते हुए भी भारतीय संस्कृति में मौलिक एकता विघामान है। विभिन्न जातियों, समुदायों और धर्मो के बावजूद हमारा जनमानस एक ऐसी संस्कृति और एकता के सूत्र में बंधा है जो अपने आप में बेजोड़ है।

तरुण शर्मा (लेखक हिन्दी भाषा अभियानी हैं।)

Dharmik aur samajik ekta ka prateek humara bharat

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