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दिवाली का त्योहार कितने दिन का होता है?

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दिवाली का नाम सुनते ही मन में जगमगाते दिए फूटते पटाखे और कभी ना खत्म होने वाली मिठाइयों की तस्वीर उभर कर आती हैं। लेकिन दीपावली क्यों मनाई जाती है। क्या यह सिर्फ रोशनी और पटाखे जलाने तक सीमित है। भारतीय संस्कृति के सबसे जीवंत त्योहारों में से एक इस दिवाली के पीछे क्या कहानी है। हिन्दूओं द्वारा दीपावली मनाने का मुख्य कारण अच्छाई की बुराई पर जीत है ।इस पर्व की मुख्य कहानी सूर्यवंशी प्रतापी मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम से जुड़ी हुई है। 14 वर्ष के वनवास और राक्षस राजा रावण के साथ कठिन युद्ध के बाद भगवान श्री राम अपनी भार्या सीता और अनुज लक्ष्मण के साथ लौटकर अपने राज्य अयोध्या आए थे। इस खुशी में पूरे राज्य में घरों में दीपों की कतारें जलाई गई ।यही कारण है कि दीपावली को  रोशनी का त्यौहार भी कहा जाता है। यह त्यौहार अंधकार पर प्रकाश और बुराई पर अच्छाई की जीत का उत्सव है। रावण अपने तप के  बल पर दिव्य शक्ति प्राप्त करके अहंकारी हो गया था। उसने अपने अहंकार में माता सीता का अपहरण किया था। राम जी ने कुछ वानर सेवा के साथ उस राक्षस का वध किया था।

दिवाली एक दिन का उत्सव नहीं है यह पांच दोनों का उत्सव है। हर दिन का अपना महत्व व परंपराएं हैं। धनतेरस, छोटी दीवाली ,बड़ी दिवाली, गोवर्धन पूजा और भाई दूज।
धनतेरस– हिंदू शास्त्रों के अनुसार इस दिन समुद्र मंथन के दौरान भगवान धन्वंतरि हाथों में अमृत कलश लेकर प्रकट हुए थे जिस दिन भगवान धन्वंतरि समुद्र से प्रकट हुए थे वह कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी थी। इस सोना और बर्तन खरीदने की परम्परा है।
छोटी दिवाली-छोटी दिवाली को भगवान  श्री कृष्ण ने नरकासुर राक्षस का वध किया था। इस दिन को नरक चतुर्दशी भी कहते हैं।
बड़ी दिवाली-बड़ी दिवाली को विशेष रूप से मां लक्ष्मी का पूजन होता है। कार्तिक माह की अमावस्या को ही समुद्र मंथन से माता लक्ष्मी प्रकट हुई थी। उनके स्वागत के लिए दीप जलाए जाते हैं और इस दिन भगवान राम जी भी भार्या सीता और भाई लक्ष्मण के साथ 14 वर्षों के बनवास के बाद अयोध्या लौटे थे। उनके स्वागत हेतु अयोध्या वासियों ने घर-घर दीप जलाकर  पूरे नगर को आभा युक्त कर दिया था।
गोवर्धन पूजा-चौथे दिन को गोवर्धन पूजा होती है। इंद्रदेव ने गोकुलवासियों से नाराज होकर मूसलाधार बारिश कर दी थी ।इस दिन भगवान श्री कृष्णा अपनी छोटी उंगली पर गोवर्धन पर्वत उठाकर गांव वासियों को गोवर्धन पर्वत की छांव में सुरक्षित किया था।
भाई दूज-पांचवें दिन भाई दूज मनाया जाता है इसको यम द्वितीया भी  कहते हैं ।इस दिन भाई बहन का टीका करती है और उसकी लंबी आयु की कामना करती है।भाई दूज पर मान्यता है कि यमराज अपनी बहन यमुना से मिलने उसके घर  आए थे और यमुना जी ने उन्हें प्रेम पूर्वक भोजन कराया था एवं यह वचन दिया था कि जो बहन इस दिन अपने भाई को आमंत्रित  कर भोजन करावेगी उसके भाई की लंबी उम्र होगी ।तभी से या परंपरा बन गई।
दीपावली के दीप जले तो समझो बच्चों के दिल में फूल खिले। फुलझड़ियां छूटी, पटाखे फूटे। और ऐसा क्यों ना हो, यह सब उत्साह का और खुशी को मनाने का तरीका भी है और आनंद का स्रोत भी।

लेखिका- रजनी गुप्ता

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