देवताओं की असीम अनुकम्पा, प्राकृतिक संपदा, नैसर्गिक सुन्दरता, शुद्ध वातावरण को मिलाकर बनता है देवभूमि उत्तराखंड। उत्तराखंड उत्तर और खंड के मेल से बना वह प्रदेश है जिस पर प्रकृति ने जी भर का प्यार बरसाया है। उत्तराखंड का नाम सुनते ही हरे भरे पहाड़, घने जंगल, कल-कल बहती नदियाँ जेहन में उतर जाती हैं। 9 नवम्बर 2000 को उत्तरप्रदेश से अलग होकर उत्तरांचल अलग राज्य बना। उत्तराखंड का यह प्रारंभिक नाम उसके साथ 6 साल से थोड़े ज्यादा दिन तक रहा! उत्तराखंड की राजधानी देहरादून है जोकि उत्तराखंड का सबसे बड़ा शहर भी है! हाल में ही गैरसैंण को इसकी ग्रीष्मकालीन राजधानी घोषित कर दिया गया है।
उत्तराखंड का क्षेत्रफल 53,443 वर्ग किलोमीटर है। उत्तराखंड के दो मंडल कुमाऊँ और गढ़वाल नौ जिलों में बंटे हैं। उत्तराखंड के जिलों को नजदीक से जानने के लिए ‘द हिन्दी’ आपके लिये लेखों की एक सीरीज ला रही जिसमें पहला नाम है हरिद्वार का। हरिद्वार माँ गंगा को सीने में धारण किये हुए हिन्दुओं का बड़ा तीर्थ स्थान है। पहाड़ों में प्रचंड वेग से उफनती भागीरथी नदी का वेग हरिद्वार में आकर शांत हो जाता है। गंगा के पावन जल में स्नान कर मनुष्य स्वयं को धन्य मानता है।
हरिद्वार-: हरिद्वार को मायापुरी, कपिला, गंगाधर के रूप में भी जाना जाता है। पूरे विश्व में होने वाला एकमात्र धार्मिक आयोजन कुम्भ हरिद्वार की पावन धरती पर भी आयोजित होता है। बदरीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री और जमुनोत्री जाने का केंद्र मार्ग भी हरिद्वार है। हरिद्वार उत्तराखंड का मैदानी शहर है इसलिए सुदूर पहाड़ में रहने वाले लोगों के लिए रोजगार का विकल्प बन जाता है। 2034 एकड़ में फैले सिडकुल इंडस्ट्रियल एरिया में बीएचईएल सहित कई बड़ी कंपनियां हजारों लोगों को रोजगार उपलब्ध करा रही हैं। पतंजलि के हरिद्वार में स्थापित होने के बाद स्थानीय लोगों के लिए रोजगार की संभावनाएं बढ़ी हैं।
पौराणिक महत्व:- कहा जाता है कि समुन्द्र मंथन से निकली अमृत की बूंदें हरिद्वार में गिरी थी, इसलिए यहाँ कुम्भ का आयोजन किया जाता है। जिस स्थान पर यह बूदें गिरी उस स्थान को ‘हर की पौड़ी’ कहा जाता है। ऐसा माना जाता है कि शिव ने भी ‘हर की पौड़ी’ में अपने कदम रखे थे! पौड़ी का शाब्दिक अर्थ है सीढियां.. इन सीढ़ियों से उतर कर मनुष्य गंगा स्नान कर सभी व्याधियों से मुक्त हो जाता है। अमावस्या और पूर्णिमा के दिनों ‘हर की पौड़ी’ में श्रद्धालुओं का हुजूम उमड़ पड़ता है। कहा जाता है कि ‘हर की पौड़ी’ का निर्माण महाराजा विक्रमादित्य ने अपने भाई भृतहरी की याद में बनाया था! गंगा के अलग अलग घाटों में आपको कई धर्मशालाएं, बेंच आदि मिल जायेंगी जो लोगों द्वारा अपने स्वजनों की स्मृति में धर्मार्थ बनवाई गई हैं। हरिद्वार की गंगा आरती बहुत भव्य होती है। शाम के समय गंगा की निर्मल धार में तैरते दिए अलौकिक अनुभव देते है।
तीर्थ स्थल-: हरिद्वार स्वयं में एक तीर्थ है। हरिद्वार के मंदिरों की लम्बी सूची है लेकिन हम कुछ विशेष मंदिरों के ही बारे में बता रहे हैं जिनकी धार्मिक महत्ता ज्यादा है। ‘दक्ष महादेव’ हरिद्वार का प्राचीन धार्मिक स्थल है। इसे दक्ष प्रजापति के नाम से भी जाना जाता है। यहाँ पर एक कुंड है! माना जाता है कि यह वही यज्ञवेदी है जिसमें कूद कर माता सती ने अपने प्राण त्याग दिए थे। इस मंदिर में भगवान विष्णु के पाँव के चिह्न भी बने हैं। दूसरा बड़ा तीर्थ ‘मनसा देवी’ है! मनसा देवी को भोलेनाथ की पुत्री कहा जाता है। हरिद्वार से ‘मनसा देवी’ पैदल और ट्राली (रोपवे)से जाया जा सकता है।
हरिद्वार में स्थित ‘माया देवी’ मंदिर की भी बहुत मान्यता है। यह भगवान शिव की पत्नी सती का मंदिर है। कहा जाता है कि यहाँ माता सती की नाभि गिरी थी। जहाँ माता का मंदिर हो वहां भैरव बाबा का मंदिर न हो ऐसा हो ही नहीं सकता, वैसे भी भैरव के दर्शन के बिना माता के दर्शन पूरे नहीं होते। 8वीं सदी में आदि गुरु शंकराचार्य द्वारा स्थापित देवी चंडी का मंदिर भी दर्शनीय है। इस मंदिर के बारे में कहा जाता है कि देवी चंडी ने चंड मुंड नामक राक्षसों का संहार यहीं किया था! गौरी कुंड और ‘बिल्केश्वर महादेव’ की कहानी शिव-पार्वती के विवाह से जुडी हैं। इन दोनों जगहों पर श्रद्धालुओं का ताँता लगा रहता है! ‘भारत माता मंदिर’, ‘गौरी-शंकर महादेव’ आदि अन्य कई मंदिर हरिद्वार के दर्शनीय स्थल हैं!
जलवायु:- हरिद्वार में गर्मियों में गर्म जबकि सर्दियों में अत्यधिक ठंड पड़ती है। मानसून के दौरान यहाँ अत्यधिक वर्षा होती है गंगा नदी का विकरार रूप सिहरन पैदा करता है। मानसून के समय हरिद्वार में पर्यटकों की आवाजाही कम हो जाती है। सावन के महीने में यहाँ कांवड़ियों हुजूम होता है। ऐसे समय भी यहाँ आना मुसीबत मोल लेना है। सितंबर से मई तक का समय यहाँ आने के लिए उत्तम माना जाता है।
वनस्पति-: हरिद्वार व कण्वाश्रम के जंगलों में खैर, कैथ, बेल, आंक व बाकली जैसी वनस्पतियों का वर्णन है। गंगा नदी के किनारे उगने वाली वनस्पतियों को संरक्षित करने के लिए हरिद्वार शिवपुरी की पांच हेक्टेयर की नर्सरी में 52 प्रजातियों के पौध भी तैयार की गई है। इनमें से कुछ प्रजतियां है झींगन, बरना, खरपट, कुंभी, उदाल, फल्दू, बाकली, कालातेंदू, एकोनेशिया लॉरीफोलिया, पाडल, आमड़ा, गम्हार, मैदा लकड़ी, कुसुम, पचनाला, खट्टू, ओमसाल, ढौंक, थनेला, पिन्ना, बौरंग, पनियाला आदि।
हरिद्वार का खान पान:- खान पान के मामले में हरिद्वार में पूरा भारत बसता है। यहाँ लगभग भारत के हर शहर से लोग पहुँचते हैं उसी हिसाब से यहाँ के खाने के जायकों में भी विविधता है। यहाँ कुछ दुकानें 100 साल से भी ज्यादा पुरानी हैं। मोहन जी पूड़ी वाला, हरिद्वार के चौक बाजार में सुरजे की दुकान, हरिद्वार के बंगाली मार्केट में बंगाली खाने की 50 साल से भी ज्यादा पुरानी दुकानें हैं। हर की पौड़ी के पास ही कई साल पुरानी ‘चुटिया वाला’ के नाम से दुकान है वहां की लस्सी बहुत प्रसिद्ध है। हरिद्वार में आलू पूरी, कचौरी सब्जी, कांजीबड़ा आदि कई व्यंजनों का लुत्फ़ उठाया जा सकता है। मांसाहार करने वालों को हरिद्वार निराश करता है क्योंकि हरिद्वार में मांसाहार वर्जित है।
हरिद्वार के लोग:- हरिद्वार के लोग काफी मिलनसार और विनम्र हैं। मन कर्म और वचन से धार्मिक होते हैं। प्रतिदिन मंदिर जाना और दैनिक पूजा करना उनकी आदतों में शुमार रहता है। हरिद्वार में स्थानीय बोली के अलावा ज्यादातर हिन्दी का ही प्रयोग होता है।
हरिद्वार में पूरा भारत बसता है। धार्मिक अनुष्ठानों से यहाँ की हवा में सदा भक्ति भाव तैरता रहता है! गंगा नदी की कल कल की ध्वनि में समूचा हरिद्वार नर्तन करता प्रतीत होता है। यहाँ रहने के लिए आपको ज्यादा खर्च नहीं करना पड़ेगा! धनाड्य लोगों द्वारा बनाई गयी धर्मशालाओं में बहुत ही कम खर्चे में कमरे मिल जाते हैं! तो कब जा रहे हैं हरिद्वार….
Ufnati bhagirathi nadi ke ved ko shant krta hai haridwar