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हिन्दी के पतन के लिए कितने जिम्मेदार हैं हिन्दी न्यूज चैनल्स

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हिन्दी…जिसे संविधान में राजभाषा का दर्जा प्राप्त है. भारत में सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषा हिन्दी है. लेकिन अक्सर सुना और देखा जा रहा है कि हिन्दी की अस्मिता को बचाने के लिए साहित्यकार और हिन्दी के चाहने वाले लोग ढ़ेरों प्रयास कर रह रहे हैं. साथ ही लंबे अरसे से हिन्दी के पतन पर भी बहस छिड़ी हुई है कि आखिर कौन जिम्मेदार है? शायद इसका उत्तर मिल पाना मुश्किल है. लेकिन हिन्दी की दशा पर प्रभाव डालने वाले कारकों की बात की जाए तो media-interview-conept-group-journalists-holdig-microphone-interviewingहिन्दी न्यूज चैनल्स का नाम लेने से परहेज नहीं कर सकते. क्योंकि न्यूज चैनल्स लगातार हिन्दी भाषा और उसके शब्‍दों की शक्ति के साथ छेड़छाड़ कर उसकी ताकत को तोड़ रहे हैं. ये चैनल्स हिन्दी के मर्यादित और समृद्ध शब्दों में मिलावट कर समाज के सामने हिन्दी का एक विकृत रूप प्रस्तुत कर रहे हैं. जिससे हिन्दी का पतन हो रहा है.

हिन्दी को लेकर कई तरह की बातें कही जाती हैं, यह भी माना जा रहा है कि आज की पीढ़ी हिन्दी पढ़ना नहीं चाहती है. कई तर्क हैं और उसके बहुत कारण भी हैं. लेकिन वर्तमान परिपेक्ष्य में समाज का आइना और लोकतंत्र का चौथा स्तंभ कहा जाने वाला मीडिया भी हिन्दी के पतन का कारण बन रहा है. क्योंकि एक बेहतर समाज को गढ़ने में मीडिया की अहम भूमिका होती है. लेकिन विडंबना यह है कि आज हिन्दी न्यूज चैनल्स अपने शो में हिन्दी भाषा के प्रयोग में अंग्रेजी मिलाकर कर रहे हैं. जिसे हिंग्लिश कहते हैं और इसी हिंग्लिश को हम और हमारी आने वाली पीढ़ी सुन और पढ़ रही है. जिससे उसी प्रकार का वातारण बन रहा है. वह चाहे घर, स्कूल या उसके बाहर हो. जिसका प्रभाव सीधे-सीधे हिन्दी पड़ रहा है.

न्यूज चैनल्स की स्थिति ये हो गई है कि उनके शो में समृद्ध हिन्दी का प्रयोग तो दूर की बात है, सामान्य हिन्दी का ही प्रयोग नहीं किया जा रहा है. अंग्रेजी की मिलावट से हिन्दी अपनी रंग-रूप- रस और मधुरता खो रही है. आजादी के बाद से लगातार न्यूज चैनल्स ने हिन्दी भाषा के प्रयोगों में नवाचार किया है. इसका कारण यह है कि कोई बात या खबर लोगों को आसानी से समझ में आ जाए लेकिन वास्तविकता देखी जाए तो यह नवाचार हिन्दी के लिए घातक साबित हो रहा है. इस नवाचार से हिन्दी न्यूज चैनल्स में अपने दर्शकों के सामने चटपटी और मनोरंजक खबरें परोसने की प्रवृत्ति बढ़ती जा रही है. न्यूज चैनल्स की फूहड़ता आज हिन्दी को पतन की ओर ले जा रही है. इस मनोरंजक सामग्री में हिन्दी के साथ अंग्रेजी की मिलावट के चलते आज अंग्रेजी जुबान का हिस्सा बनती जा रही है. जिसके चलते उसका प्रभाव हमारी सोच और लेखन में पड़ रहा है. हम बिना सोचे- समझे कुछ भी लिख रहे हैं. हमारे भीतर भाषा का संस्कार धीरे- धीरे मर रहा है. इतना ही नहीं भ्रष्ट हिन्दी प्रभाव देखिए कि टेलीविजन के बहसों में तू…तड़ाक जैसे अमर्यादित शब्दों का प्रचलन शुरू हो गया है, जिसे ये चैनल्स एक मनोरंजक सामग्री के तौर दर्शक को प्रस्तुत कर रहे हैं और हम उसका लुफ्त भी उठा रहे हैं.

आज के दौर में खबरिया और मनोरंजन चैनल्स अपनी टीआरपी बटोरने के चक्कर में हिन्दी भाषा के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं. हालांकि यह बता पाना मुश्किल होगा कि हिन्दी के नाम पर कमाई करने वाले हिन्दी न्यूज चैनल्स अपने विषय वस्तु और शो में हिन्दी के साथ मिलावट क्यों कर रहे हैं? लेकिन एक बात तो तय है कि युवा पीढ़ी इसका आदी जरूर होता जा रहा है. जिसका असर हम सभी को देखने को मिल रहा है. इसका एक उदाहरण ये हो सकता है कि वर्तमान परिदृश्य में कोई भी माता- पिता अपने बच्चों को हिन्दी माध्यम से नहीं बल्कि अंग्रेजी माध्यम से पढ़ाना चाहता है. लेकिन एक बात सभी को स्पष्ट रूप से समझ लेना चाहिए कि हिंदी के शब्दों में जो सार्मथ्य, ज्ञान-विज्ञान, कौशल और अनुशासन है, वह शायद किसी अन्य भाषा में नहीं है. हिन्दी, संसार की उन उन्नत भाषाओं में से एक है जो सबसे ज्यादा संस्कारी है और इसमें अपनी बात कहने की अकूत ताकत है. आज हिन्दी से ही न्यूज चैनल्स को उसकी ताकत मिली है. ऐसे में इन चैनल्स की हिन्दी के प्रति जिम्मेवारी भी होनी चाहिए कि हिन्दी की मिठास बची रहे. ताकि सही भाषा के इस्तेमाल से नई पीढ़ियों को भाषा के संस्कार मिले और उसका बोध हो. ऐसे में यह जरूरी है कि न्यूज चैनल्स को सतही हिन्दी- हिंग्लिस और अमर्यादित शब्दों को अपने शब्दकोश से निकाल देना चाहिए और प्रयोग पर लगाम लगाना चाहिए, ताकि आने वाली पीढ़ी को हिन्दी का बोध हो सके. जिससे हिन्दी का सम्मान और संस्कार दोनों ही बचा रहे हैं.

Hindi ke patan ke liye kitne zimmedar hai news channel

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