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कितना जानते हैं पृथ्वी थियेटर के बारे में ?

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टीम हिन्दी

जिस दौर में पृथ्वीराज ने पृथ्वी थिएटर की स्थापना की थी, उस दौर में आजादी की लड़ाई चरम पर थी. तब एक टूरिंग कंपनी की तरह पृथ्वी थिएटर की यूनिट ने पठान, दीवार, पैसा जैसे नाटकों का घूम घूम कर मंचन किया. इन नाटकों से उस दौर में पृथ्वीराज ने सांप्रदायिक सद्भाव, हिन्दू मुस्लिम एकता और सामाजिक नैतिक मूल्यों का संदेश दिया जो बड़ी बात थी. पृथ्वी थिएटर का पहला नाटक शकुंतला था. पृथ्वीराज ने अपने नाटकों के जरिए उस दौर की समस्याएं उठाईं. तब रंगमंच बहुत ही शुरूआती अवस्था में था और अक्सर लोकनाट्य ही होते थे लेकिन पृथ्वीराज ने रंगमंच को आधुनिक रूप दिया. पृथ्वी थिएटर से पहले 1850 से 1940 के आसपास तक पारसी थिएटर का प्रभाव था. उन्होंने बताया उनका थिएटर दिल्ली भी आता था और रीगल थिएटर में नाटक पेश करता था. उस दौर की जानी मानी हस्तियां पृथ्वीराज कपूर के नाटक देखने जाती थीं.

रंगमंच पर पृथ्वीराज की बुलंद आवाज वह समां बांधती थी कि आज के लाइट साउंड इफैक्ट वाला दौर भी उसके सामने कुछ नहीं है. यह उस इंसान की जिजीविषा ही कहलाएगी कि उसने विभाजन का दंश बर्दाश्त कर लाहौर से मुंबई में आ कर रंगमंच को अपनाया. पृथ्वी थिएटर की यूनिट से जुड़े कई सहयोगियों रामानंद सागर, शंकर जयकिशान और राम गांगुली आदि को पृथ्वीराज कपूर ने बाद में फिल्मों में मौका दिया. आर्थिक समस्या, गिरता स्वास्थ्य, ढलती उम्र जैसे कारणों के चलते 1960 के दशक में उन्होंने थिएटर बंद कर दिया.

हालांकि, थिएटर से पृथ्वीराज को खास आमदनी नहीं होती थी और वह इसकी भरपाई के तौर पर फिल्मों से मिली राशि उसमें लगा देते थे. लेकिन उनकी मेहनत ने पृथ्वी थिएटर और खुद भारत में रंगमंच को बहुत मजबूत आधार दे दिया. पृथ्वी थिएटर के कलाकार अलग अलग शहरों में घूम घूम कर नाटक करते थे. थिएटर के शुरूआती दौर में पृथ्वीराज ने अपनी यूनिट के साथ ट्रेन के तीसरे दर्जे के डिब्बे से 100 से अधिक शहरों का दौरा किया था, सिर्फ नाटकों के लिए.

अभिनय की जीती जागती पाठशाला कहलाने वाली अभिनेत्री जोहरा सहगल ने अपनी आत्मकथा में जिक्र किया है कि उन्होंने जब पृथ्वीराज कपूर के साथ रंगमंच पर काम करना शुरू किया तो उनके सामने वह अक्सर अपने संवाद भूल जाती थीं. 3 नवंबर 1906 को जन्मे पृथ्वीराज कपूर ने 29 मई 1972 को इस दुनिया रूपी रंगमंच को अलविदा कह दिया.

पृथ्वीराज कपूर का ‘पृथ्वी थियेटर शहर शहर घूमा कारता था. उसी सिलसिले में उनके सबसे छोटे पुत्र शशि कपूर की मुलाक़ात, जेनिफर केंडल से कलकत्ता में हुई थी. पृथ्वीराज कपूर की इच्छा थी कि पृथ्वी थियेटर को एक स्थायी पता दिया जा सके. इस उद्देश्य से उन्होंने 1962 में ही ज़मीन का इंतज़ाम कर लिया था लेकिन बिल्डिंग बनवा नहीं पाए. 1972 में उनकी मृत्यु हो गयी. ज़मीन की लीज़ खत्म हो गयी. उनके बेटे शशि कपूर और जेनिफर केंडल लीज क नवीकरण करवाया और आज पृथ्वी थियेटर पृथ्वीराज कपूर के सम्मान के हिसाब से ही जाना जाता है.

श्री पृथ्वीराज कपूर मेमोरियल ट्रस्ट एंड रिसर्च फाउन्डेशन नाम की संस्था इसका संचालन करती है. इसके मुख्य ट्रस्ट्री शशि कपूर थे. पृथ्वी के पहले मुंबई में अंग्रेज़ी, मराठी और गुजराती नाटकों का बोलबाला हुआ करता था लेकिन पृथ्वी थियेटर की स्थापना के बाद के वर्षों में बहुत कुछ बदल गया है. अब हिंदी के नाटकों की अपनी एक पहचान है और मुंबई के हर इलाके में आयोजित होते है. इस सब में स्व शशि कपूर, उनकी पत्नी जेनिफर केंडल और उनकी बेटी संजना कपूर का बड़ा योगदान है. शशि कपूर अपनी पत्नी और प्रेमिका जेनिफर को बेपनाह मुहब्बत करते थे.

Kitna jante hai prithvi theatre ke baare me

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