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भारत का गौरव: यहां की ज्ञान-विज्ञान

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टीम हिन्दी

प्राचीन भारतीय वैज्ञानिकों ने ब्रह्मांड के निर्माण के संबंध में अवधारणा व्यक्त की थी| उनके अनुसार ब्रह्मांड “पंचमहाभूतों” भूमि, जल, आग, हवा और आकाश से मिलकर बना है| वे लोग यूनानियों से पहले अणुओं और परमाणुओं के अस्तित्व के बारे में जानते थे| वैशेषिक दर्शन में परमाणु सिद्धांत का सविस्तार वर्णन किया गया है|

ब्रह्मगुप्त ने न्यूटन के गुरुत्व के सिद्धांत की घोषणा के संबंध में पूर्वानुमान व्यक्त किया था| जिसमें कहा गया है कि “प्रकृति के नियम के कारण सभी वस्तुएं पृथ्वी पर गिरती है और पृथ्वी का यह स्वभाव है कि वह सभी वस्तुओं को आकर्षित करती है|

गणित के क्षेत्र में भारतीयों ने तीन महत्वपूर्ण योगदान दिया है- संकेतन प्रणाली, दशमलव प्रणाली और शून्य का उपयोग| भारतीय संकेतन प्रणाली अरबों द्वारा अपनाया गया था और अंकों को अंग्रेजी में “अरबी” कहा जाता है। ये अंक अशोक के शिलालेख में पाए गए हैं| भारतीय गणितज्ञ आर्यभट्ट ने सर्वप्रथम दशमलव प्रणाली की खोज की थी| 5 वीं शताब्दी ईसा पूर्व में रचित “सुल्वसूत्र” में रेखागणित के बारे में वर्णन किया गया है| आर्यभट्ट ने “सूर्य सिद्धांत” में त्रिभुज का क्षेत्रफल ज्ञात करने की विधि का वर्णन किया था जिसके आधार पर “त्रिकोणमिति” की उत्पत्ति हुई है|

ज्योतिष वेदांग (500 ई.पू.) खगोल विज्ञान का सबसे प्रारंभिक स्रोत है| इसमें 27 नक्षत्रों के बीच चन्द्रमा की स्थिति की गणना के लिए नियमों का उल्लेख किया गया है| आर्यभट्ट ने सूर्यग्रहण और चन्द्रग्रहण के सटीक कारणों का पता लगाया था और इस बात की व्याख्या की थी कि सूर्य स्थिर है और पृथ्वी सूर्य के चारों ओर घूमती है| उन्होंने अपनी पुस्तक “आर्यभट्टिय” (499 ईस्वी) में इस बात का वर्णन किया है कि “पृथ्वी गोल है”, साथ ही उन्होंने यह भी बताया था कि “पाई” का मान 3.1416 होता है| वराहमिहिर ने 6ठी शताब्दी ईस्वी में अपनी पुस्तक “वृहत्संहिता” में इस बात का वर्णन किया था कि चन्द्रमा पृथ्वी के चारों ओर घूमता है और पृथ्वी सूर्य के चारों ओर घूमती है|

प्राचीन भारत में सोना, चांदी, तांबा, लोहा, पीतल और अन्य धातुओं का बड़े पैमाने पर उत्पादन के साथ-साथ धातु विज्ञान के क्षेत्र में काफी विकास किया गया था| मर्यौत्तर काल में पश्चिमी देशों से “स्टील उत्पादों” का निर्यात किया जाता था| सुल्तानगंज से प्राप्त बुद्ध की तांबे की प्रतिमा और दिल्ली में महरौली का लौह स्तंभ धातु विज्ञान के बेहतरीन उदाहरण हैं|  अथर्ववेद के श्लोकों का संबंध आयुर्वेद से है| चरक द्वारा रचित “चरकसंहिता” (100 ईस्वी) में विभिन्न रोगों के उपचार का वर्णन किया गया है, साथ ही “आहार” के माध्यम से रोगों की रोकथाम और नियंत्रण के बारे में भी वर्णन किया गया है| सुश्रुत द्वारा रचित “सुश्रुत संहिता” में चेतनालोप (anaesthesia), शल्य चिकित्सा, और “नासिकासंधान” (rhinoplasty) के माध्यम से विभिन्न प्रकार के ऑपरेशन और मोतियाबिंद जैसी बीमारियों के इलाज के बारे में वर्णन किया गया है|

प्राचीन भारत में विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र से संबंधित विभिन्न विचारों के अलावा व्याकरण और भाषा विज्ञान के क्षेत्र में भी विकास हुआ था जिसने वैदिक प्रार्थना और मंत्रों के सस्वर पाठ एवं शुद्धतापूर्वक उच्चारण में मदद की थी| भाषा के विकास से संबंधित पुस्तकों में 400 ईसा पूर्व में पाणिनि द्वारा रचित “अष्टाध्यायी” और 2 शताब्दी ईसा पूर्व में पतंजलि द्वारा रचित “महाभाष्य” प्रमुख हैं| प्राचीन भारत के इन सभी पुस्तकों एवं खोजों का मुख्य उद्देश्य “धार्मिक प्रयोजन” था|

तकनीकी में उन्नति के कुछ उदाहरण, रेलवे प्रणाली की स्थापना, मैट्रो की स्थापना, रेलवे आरक्षण प्रणाली, इंटरनेट, सुपर कम्प्यूटर, मोबाइल, स्मार्ट फोन, लगभग सभी क्षेत्रों में लोगों की ऑनलाइन पहुँच, आदि है। भारत की सरकार बेहतर तकनीकी विकास के साथ ही देश में विकास के लिए अंतरिक्ष संगठन, और कई शैक्षणिक संस्थाओं (विज्ञान में उन्नति के लिए भारतीय संगठन) में अधिक अवसरों का निर्माण कर रही है। भारत के कुछ प्रसिद्ध वैज्ञानिक जिन्होंने भारत में (विभिन्न क्षेत्रों में अपने उल्लेखनीय वैज्ञानिक शोध के माध्यम से) तकनीकी उन्नति को संभव बना दिया, उनमें से कुछ सर जे.सी. बोस, एस.एन. बोस, सी.वी. रमन, डॉ. होमी जे. भाभा, श्रीनिवास रामानुजन, परमाणु ऊर्जा के जनक डॉ. हर गोबिंद सिंह खुराना, विक्रम साराभाई आदि है।

इंडियन साइंस एंड रिसर्च एंड डेवलपमेंट इंडस्ट्री रिपोर्ट 2019 के अनुसार भारत बुनियादी अनुसंधान के क्षेत्र में शीर्ष रैंकिंग वाले देशों में शामिल है। विश्व की तीसरी सबसे बड़ी वैज्ञानिक और तकनीकी जनशक्ति भी भारत में ही है। वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद (CSIR) द्वारा संचालित शोध प्रयोगशालाओं के ज़रिये नानाविध शोधकार्य किये जाते हैं। भारत विज्ञान और प्रौद्योगिकी अनुसंधान के क्षेत्र में अग्रणी देशों में सातवें स्थान पर है। मौसम पूर्वानुमान एवं निगरानी के लिये प्रत्युष नामक शक्तिशाली सुपरकंप्यूटर बनाकर भारत इस क्षेत्र में जापान, ब्रिटेन और अमेरिका के बाद चौथा प्रमुख देश बन गया है। नैनो तकनीक पर शोध के मामले में भारत दुनियाभर में तीसरे स्थान पर है।

वैश्विक नवाचार सूचकांक (Global Innovation Index) में हम 57वें स्थान पर हैं। भारत ब्रेन ड्रेन से ब्रेन गेन की स्थिति में पहुँच रहा है और विदेशों में काम करने वाले भारतीय वैज्ञानिक स्वदेश लौट रहे हैं। व्यावहारिक अनुसंधान गंतव्य के रूप में भारत उभर रहा है तथा पिछले कुछ वर्षों में हमने अनुसंधान और विकास में निवेश बढ़ाया है। वैश्विक अनुसंधान एवं विकास खर्च में भारत की हिस्सेदारी 2017 के 3.70% से बढ़कर 2018 में 3.80% हो गई। भारत एक वैश्विक अनुसंधान एवं विकास हब के रूप में तेजी से उभर रहा है। देश में मल्टी-नेशनल कॉर्पोरशन रिसर्च एंड डेवलपमेंट केंद्रों की संख्या 2010 में 721 थी और अब नवीनतम आँकड़ों के अनुसार यह 2018 में 1150 तक पहुँच गई है।

Bhaarat ka gaurav : yaha ki gyan vigyan

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