हिंदू परंपराओं की जब बात की जाती है, तो लोग कई तरह के तर्क-वितर्क करते हैं, लेकिन इन सबों के बावजूद हिंदू परंपराओं का अपना एक अलग महत्व रहा है। आज हम इस बात पर चर्चा कर रहे हैं कि इन परंपराओं के पीछे जो हम सदियों से मानते रहे हैं, का कहीं-न-कहीं कोई वैज्ञानिक तर्क भी शामिल हो सकते हैं। जैसे पहले हम चर्चा करेंगे, हाथ जोड़कर नमस्ते करने का। तो इसमें हम पाते हैं कि जब हम हाथ जोड़कर किसी को नमस्ते करते हैं, तो हमारे हाथों की उंगलियां एक-दूसरे के संपर्क में आती हैं। जब सभी उंगलियां एक-दूसरे के संपर्क में आती हैं, तो इनके शीर्ष का दबाव एक-दूसरे पर पड़ता है। एक्यूप्रेशर के कारण उसका सीधा प्रभाव आंख, कान और दिमाग पर होता है, ताकि सामनेवाले व्यक्ति को हम लंबे समय तक याद रख सकें।
दूसरा तर्क यह है, आपको यह नहीं मालूम कि आपके सामनेवाला व्यक्ति किसी संक्रमित बीमारी से ग्रस्त है या नहीं। अगर वह ग्रसित होगा और आप हाथ मिलाने के बजाय अगर आप हाथ जोड़कर नमस्ते करते हैं, तो सामनेवाले के शरीर के कीटाणु आप तक नहीं पहुंच सकते हैं।
लोग पीपल की पूजा करते हैं, यह मानकर कि इससे शनि ग्रह शांत होगा। अथवा भूत-प्रेत की बाधा नहीं होगी। इसमें वैज्ञानिक तर्क यह है कि पीपल ही एक मात्र ऐसा पेड़ है, जो रात और दिन, दोनों समय ऑक्सीजन छोड़ता है। अतः इसे बचाए रखना और इसके पास जाने से शरीर में ऑक्सीजन की मात्रा प्रवाहित होती है।
कुछ लोग माथे पर कुमकुम, तिलक आदि लगाते हैं। महिलाएं एवं पुरुष माथे पर तिलक लगाते हैं। इसके पीछे वैज्ञानिक तर्क यह है कि आंखों के बीच माथे तक एक नस आ जाती है। कुमकुम या तिलक लगाने से उस जगह की ऊर्जा बनी रहती है। माथे पर तिलक लगाते वक्त जब अंगूठे या उंगली से प्रेशर पर पड़ता है, तब चेहरे की त्वचा को रक्त आपूर्ति करनेवाली मांसपेशी सक्रिय हो जाती है और इससे चेहरे की कोशिकाओं तक रक्त प्रचुर मात्रा में पहुंचता है, जो चेहरे को निखारता है।
जब भी कोई धार्मिक या पारिवारिक अनुष्ठान होता है, तो भोजन की शुरुआत तीखे से और अंत मीठे से होता है। इसके पीछे वैज्ञानिक तर्क यह है कि तीखा खाने से हमारे पेट के अंदर पाचन तत्व एवं अम्ल सक्रिय हो जाते हैं। इससे पाचन तंत्र ठीक तरह से संचालित होता है। अंत में मीठा खाने से अम्ल की तीव्रता कम हो जाती है। इससे पेट में जलन नहीं होती।
हमारे यहां कान छिदवाने की भी परंपरा है। लगभग सभी धर्मों के लोग कान छिदवाते हैं। वैज्ञानिक तर्क और दर्शनशास्त्री इस बात को मानते हैं कि इससे सोचने की शक्ति का विकास होता है, जबकि डॉक्टरों का मानना है कि इससे आवाज अच्छी होती है। कानों से होकर दिमाग तक जानेवाली नस का रक्त संचार नियंत्रित रहता है।
भारतीय संस्कृति के अनुसार जमीन पर बैठकर भोजन करना अच्छी बात होती है। वैज्ञानिक तर्क यह है कि पालथी मारकर बैठना एक प्रकार का योग है। इस पोजिशन में बैठने से मस्तिष्क शांत रहता है और भोजन करते वक्त दिमाग शांत हो, तो पाचन क्रिया अच्छी रहती है। इस पोजीशन मे बैठते ही खुद-ब-खुद दिमाग से एक सिग्नल पेट तक जाता है, वह भोजन के लिए तैयार हो जाए।
हिंदुओं में सुबह उठकर सूर्य को जल चढ़ाते हुए नमस्कार करने की परंपरा है। वैज्ञानिक तर्क पानी के बीच से आने वाली सूर्य की किरणें जब आंखों में पहुंचती हैं, तब हमारी आंखों की रोशनी अच्छी होती है।
सिर पर चोटी हिंदू धर्म में ऋषि-मुनि सिर पर चुटिया रखते थे। आज भी लोग रखते हैं। वैज्ञानिक तर्क यह है कि जिस जगह पर चुटिया रखी जाती है, उस जगह पर दिमाग की सारी नसें आकर मिलती हैं। इससे दिमाग स्थिर रहता है और इंसान को क्रोध नहीं आता, सोचने की क्षमता बढ़ती है।
अक्सर लोग पूजा-पाठ या अनुष्ठान के दौरान व्रत रखते हैं। इसके पीछे आयुर्वेद के अनुसार व्रत करने से पाचन क्रिया अच्छी होती है और फलाहार लेने से शरीर का डीटॉक्सीफिकेशन होता है। यानी, उसमें से खराब तत्व बाहर निकलते हैं। शोधकर्ताओं के अनुसार व्रत करने से कैंसर का खतरा कम होता है। हृदय संबंधी रोगों, मधुमेह आदि रोग भी जल्दी नहीं लगते।
हिंदू मान्यता के अनुसार जब भी आप किसी बड़े से मिलें, तो उनका चरण स्पर्श करें। यह हम बच्चों को भी सिखाते हैं, ताकि वे बड़ों का आदर करें। वैज्ञानिक तर्क यह है कि इससे मस्तिष्क से निकलने वाली ऊर्जा हाथों और सामने वाले पैरों से होते हुए एक चक्र पूरा करती है। इसे कॉसमिक एनर्जी का प्रवाह कहते हैं। इसमें दो प्रकार से ऊर्जा का प्रवाह होता है। या तो बड़े के पैरों से होते हुए छोटे के हाथों तक या फिर छोटे के हाथों से बड़ों के पैरों तक।
शादीशुदा हिंदू महिलाएं सिंदूर लगाती हैं। वैज्ञानिक तर्क यह है कि सिंदूर में हल्दी, चूना और मरकरी होता है। यह मिश्रण शरीर के रक्तचाप को नियंत्रित करता है। चूंकि इससे यौन उत्तेजनाएं भी बढ़ती हैं, इसीलिए विधवा औरतों के लिए सिंदूर लगाना वर्जित है। इससे स्ट्रेस कम होता है।
Humari parampara aur riti riwaj