आज दुनिया में हर कोई घड़ी की सुइयों की नोंक पर अपना जीवन जीता है माने की वह सब पूरी जिंदगी ही समय की मोहताज हो गयी है। सोना, जगना, ऑफिस जाना, लंच करने से लेकर हर इक पल हम पूरे हिसाब-किताब से ही खर्चते हैं। यह सब तब मुमकिन हो पाया जब हमने घड़ियां बना लीं या उससे भी पहले कोई ऐसा साधन था जिससे हम अपने जीवन और समय की गति को माप सकते थे। दुनिया में आज जो घड़ी मौजूद है वह तो एक बार में बन कर ही तैयार नहीं हुई थी। किसी ने पहले मिनट की सूई बनाई तो किसी ने घंटे की और समय के गति से गुजर कर ही हमारे इस साधन की प्राप्ति हुई।
भारत में जब इस आधुनिक घड़ी का इस्तेमाल नहीं हुआ था तब भी भारतवासी अपने जीवन और प्रकृति की गति को मापने के लिए अलग साधन का उपयोग करते थे। पृथ्वी पर जीवन का सार यानी कि सूर्य हमेशा से भारत के प्राचीन काल से ही काल गणना के लिए उपयोग होता रहा है । जी हां आज हम बात कर रहे हैं चोल राज्य के समय में निर्मित सूर्य घड़ी की । यह घड़ी 1400 साल पहले बनी थी जो ना तो बिजली से चलती थी और ना ही बैटरी से । भारत के दक्षिण में स्थित राज्य तमिलनाडु के तंजावुर जिले से करीब 12 किलोमीटर दूर तिरूविसानालुर के शिवोगिनाथर मंदिर की 35 फीट ऊंची दीवार पर बनी यह सूर्य घड़ी एक दीवार घड़ी है।
मंदिर में स्थित इस सूर्य घड़ी चोल राजाओं के असीम ज्ञान और वैज्ञानिक सोच का प्रमाण है। यह सूर्य घड़ी राजा परान्तक के शासन में बनाई गई थी। अर्ध मंडल के आकार में निर्मित यह सूर्य घड़ी ग्रेनाइट के पत्थरों पर खुदी हुई है। इसमें तीन इंच लम्बी पीतल की सूई है जो क्षैतिज रेखा के केंद्र में स्थायी रूप से लगी हुई है। जैसे ही सूर्य की किरणें सूई पर पड़ती है, इससे बनी परछाई की सहायता से सही समय ज्ञात हो जाता है। मंदिर प्रांगण में आज भी सारे काम इसके सूर्य घड़ी को देखकर ही किए जाते हैं। घड़ी तब तक चलती है जबतक कि सूर्य की किरणें उस पर पड़ती रहें। हालांकि पीतल की वजह से ग्रेनाइट की सतह समय के साथ धुंधली होती जा रही है।
भारत में पौराणिक तौर पर किलों,महलों की अपनी एक अलग पहचान रही है। कला हो या विज्ञान इसकी एक अलग झलक आपको इन किलों की दीवारों में अनायास ही देखने को मिल जाते है। हमारे देश में एक और ऐसा ही ऐतिहासिक धरोहर है जंतर-मंतर जिसका इतिहास और विज्ञान से गहरा संबंध है। जयपुर में स्थित जंतर-मंतर का निर्माण 1728 में सवाई जय सिंह ने करवाया था। प्राचीन होकर भी आधुनिकता का प्रमाण देता जंतर-मंतर में वृत सम्राट यंत्र,लघु सम्राट यंत्र, ध्रवदर्शक यंत्र मौजूद है। खगोल विज्ञान में जंतर मंतर को वेदशाला भी कहा जाता है।
जंतर-मंतर में मौजूद वृत सम्राट यंत्र इसके प्रवेश द्वार पर ही बना हुआ है। जिससे सूर्य की स्थिर स्थिति और स्थानीय समय का पता चलता है। पुराने समय में जब सूर्य की किरणें इस यंत्र के केंद्र बिंदू पर पड़ती है तो यह समय बताने का काम करती है। इस यंत्र से समय की गणना किसी साधारण लोगों के लिए चमत्कार से कम नहीं है। जंतर-मंतर को लघु सम्राट यंत्र को आम बोलचाल में धूप घड़ी भी कह देते हैं। यह यंत्र सम्राट यंत्र का ही छोटा रूप है। लाल पत्थर से बने इस यंत्र की खासियत है कि ये यहां के स्थानीय समय को पता लगाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है।
जी हां घड़ी, यंत्र, समय, ये सब हम मनुष्य अपनी जीवन पद्धति को एक आकार देने के लिए बनाते तो हैं लेकिन समय के इसी गति में भूल जाते हैं कि इन सब की धुरी है हमारी जिंदगी। इसे कभी-कभी समय की इकाई से बाहर आकर देखने की जरूरत है।