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भारत का गौरव: ज्योतिष

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टीम हिन्दी

ज्योतिष शास्त्र का उद्भव आज से कई हजारों वर्ष पहले हुआ था। यह अपनी प्रमाणिकता के कारण पूर्व काल में ही तीन स्कन्धों में विभक्त हुआ था। जिसमें सिद्धान्त, संहिता एवं होरा शास्त्र है। किन्तु धीरे-धीरे ज्योतिष और प्रखर व विकसित होता चला गया। जिससे सिद्धान्त में ज्योतिषीय गणना को शामिल किया गया जिससे ग्रह नक्षत्रों की गति, पंचाग निर्माण आदि सहित काल के सूक्ष्म इकाइयों का सृजन किया गया है। संहिता खण्ड में ब्रह्माण्ड में घटित होने वाले घटना क्रम का उल्लेख किया है। जिसमें मेदिनी खण्ड, वर्षाखण्ड तथा शकुन एवं लक्षण विज्ञान का वर्णन किया गया है। होरा शास्त्र व्यक्ति के जीवन से मृत्यु तक होने वाली शुभाशुभ घटनाओं का वर्णन करता है। जिसे फलित ज्योतिष के नाम से भी जाना जाता है।

इस प्रकार ज्योतिष शास्त्र का क्रमिक विकास होता चला गया है। और आज भी हम इसके उपयोग से लाभान्वित हो रहे हैं। ज्योतिष के पूर्व के प्रवर्तकों में पराशर, नारद, जैमिनी, वराहमिहिर आदि अनेकानेक नामचीन ऋषि है। जिन्होंने इस शास्त्र को अधिक सारगर्भित व उपयोगी बनाने में अपना योगदान दिया है।

ज्योतिष शास्त्र मानव कल्याण की एक अनुपम विद्या है। जिससे व्यक्ति अपने जीवन में घटित होने वाली सुखद व दुखद घटनाओं का पूर्व में पता लगा लेता है। अर्थात् आज हम भले ही विकास के उच्च स्तर पर हो पर बिना ज्योतिष के हमारा जीवन पंगु सा प्रतीत होता है। अर्थात हम अनेक भयावह घटनाओं से ज्योतिष के माध्यम से ही बच सकते हैं और आने वाले जीवन को सुखद व सुन्दर बना सकते हैं। अर्थात् ज्योतिष शास्त्र की उपयोगिता प्रत्येक व्यक्ति के लिए प्रत्येक युग में रहेगी। चाहे वह जिस देश की सीमा हो, जिस जाति या धर्म का हो, उसे ज्योतिषीय पहलुओं की अनदेखी निश्चित ही भारी पड़ सकती है।

ज्योतिष शास्त्र युगों से अपनी सटीक भविष्यवाणी के लिए मशहूर रहा है। आज भी भारतीय पंचागों में दिए गए प्रतिदिन के सूर्योंदय व सूर्यास्त के समय सहित सूर्य व चंद्र ग्रहण की घटनाएं उस देश व काल में निर्धारित समय पर होती है। जिससे आज का विज्ञान जगत भी आश्चर्य में हैं। अर्थात् काल गणना ही नहीं, अपितु फलित के क्षेत्र में ऐसी अनगिनत घटनाएं हैं, जो क्रमशः सत्य हुई हैं, जिससे ज्योतिष शास्त्र स्वतः ही प्रमाणित है। व्यक्ति जीवन में जन्म, रोग, प्रगति, शादी, विवाह, पद, प्रतिष्ठा, संतान, मित्र, शत्रु आदि अनेक विषयों की अनेकों भविष्यवाणियां अक्षरशः सत्य हुई है। जिससे आज भी यह शास्त्र प्रमाणित एवं प्रमाणिक है।

सूरज का रास्ता 27 नक्षत्र समूहों या तारक बिंदुओं से अंकित है, इनमें से सभी 13.1/3 डिग्री की दूरी पर हैं। राशियों और तारों का समूह दोनों एक ही बिंदु से गिने जाते हैं, जैसे कि- मेष राशि की शून्य डिग्री देशांतर रेखा यानी कि मेष राशि की शुरुआती बिंदू अश्विनी नक्षत्र समूहों का भी पहला बिंदु जाना जाता है। चंद्रमा धरती के चारों तरफ अपनी कक्षा में ज्यादा से ज्यादा सताईस दिन में एक चक्कर लगाता है, इन दिनों के नाम इस तरह से है जैसे- अश्विनी, भरणी, रोहिणी, आर्द्रा, कृत्तिका, मृगशिरा, पुष्य, मघा, आशलेषा, हुब्बा (पुर्वा फाल्गुनी), उत्तरा फाल्गुनी, चित्रा, हस्त, विशाखा, स्वाति, ज्येष्ठा, अनुराधा, उत्तराषाढ़ा, पूर्वाषाढ़ा, शतभिषा, धनिष्ठा, श्रवण, उत्तराभाद्रपद, पूर्वाभाद्रपद तथा रेवती। उत्तराषाढ़ा और श्रवण के मध्य अभिजित अठाईसवां नक्षत्र है, पर इसे ज्यादा महत्व नही दिया जाता है।

हजारों सालों पहले मनुष्य को इस बारे में किसी भी तरह का ज्ञान नहीं था कि यह धरती या पृथ्वी गोल है अथवा चौकोर। कई सौ सालों पहले ही मनुष्य ने इसके बारे में यह जाना कि यह पृथ्वी गोल है, लेकिन उनको यह नहीं मालूम था कि वह ब्राह्नाण्ड का केंद्र है या सूरज का चक्कर लगाने वाले ग्रहों की तरह एक ग्रह। परंतु अब वह मनुष्य यह जानता है कि सूरज एक नक्षत्र है और ग्रहों के चक्कर लगाने वाले पिंड चंद्रमा को जाना जाता है।

ज्योतिष शास्त्र के द्वारा मानव जीवन को उपयोगी व सुखद बनाने का क्रम अति प्राचीन है। धरा में मानवता के कल्याण हेतु ज्योतिष शास्त्र का प्रयोग होता चला आ रहा है। चाहे वह आंधी, तूफान, वर्षा, हिमपात, उत्पादन, जल की बात हो या फिर व्यक्ति के जीवन की व्यक्तिगत घटनाएं हो। ज्योतिषीय ज्ञान के द्वारा ही इन घटनाओं का पूर्वानुमान लगाने तथा संबंधित घटनाओं से बचने में सहयोग प्राप्त होता है। अर्थात् हमें अपने व अपने परिवार के हितार्थ जन्मांक के विविध शुभाशुभ पहलुओं का पता लगाना चाहिए और समय रहते उनका उपचार करना ही चाहिए।

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