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कैसे पड़ा हमारे देश का नाम “भारत”?

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विभिन्न संस्कृतियों एवं अनेक सभ्यताओं वाला हमारा देश भारत आज अपने समृद्ध साहित्य एवं इतिहास हेतु जाना जाता है। यहां ऐसी कई ऐसी महान विभूतियां हुई जिन्होंने इस धरा को अपने पवित्र कर्मों से सुशोभित किया। और कहीं न कहीं इस देश का नाम भारत होने का श्रेय भी इन महान आत्माओं को ही जाता है-
दरअसल भरत के नाम से चार प्रमुख व्यक्तित्व भारतीय परम्परा में जाने जाते हैं। इन्हें लेकर यह दावा किया जाता है कि भारत का नाम इन्हीं के नाम पर पड़ा।

  1. तीर्थंकर ऋषभदेव के प्रथम पुत्र चक्रवर्ती सम्राट भरत
  2. राजा रामचन्द्र के अनुज भरत
  3. राजा दुष्यन्त के पुत्र भरत
  4. नाट्यशास्त्र के रचयिता भरत

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एक विद्वान के मतानुसार इन चारों विकल्पों में केवल प्रथम विकल्प के ही शिलालेखीय तथा शास्त्रीय साक्ष्य प्राप्त हैं। अग्निपुराण में स्पष्ट लिखा है-

“ऋषभो मरूदेव्यां च ऋषभाद् भरतोऽभवत्।
ऋषभोऽदात् श्री पुत्रे शाल्यग्रामे हरिंगत:,
भरताद् भारतं वर्ष भरतात् सुमतिस्त्वभूत॥”

वहीं स्कन्द पुराण के अनुसार-

“नाभे: पुत्रश्च ऋषभ ऋषभाद भरतोऽभवत्।
तस्य नाम्ना त्विदं वर्षं भारतं चेति कीर्त्यते॥”

जैन ग्रंथों के अनुसार, इस देश का नाम भारत चक्रवर्ती सम्राट महाराज भरत के नाम पर रखा गया वे ऋषभदेव-जयन्ती के पुत्र थे। ये वही ऋषभदेव हैं जिन्होंने जैन धर्म की नींव रखी। ऋषभदेव महाराज नाभि व मेरूदेवी के पुत्र थे। महाराज नाभि और मेरूदेवी की कोई सन्तान नहीं थी। महाराज नाभि ने पुत्र की कामना से एक यज्ञ किया जिसके फ़लस्वरूप उन्हें ऋषभदेव पुत्र रूप में प्राप्त हुए।
ऋषभदेव का विवाह देवराज इन्द्र की कन्या जयन्ती से हुआ। ऋषभदेव व जयन्ती के सौ पुत्र हुए जिनमें सबसे बड़े पुत्र का नाम ‘भरत’ था। भरत चक्रवर्ती सम्राट हुए। इन्हीं चक्रवर्ती सम्राट महाराज भरत के नाम पर इस देश का नाम ‘भारत’ पड़ा। इससे पूर्व इस देश का नाम ‘अजनाभवर्ष’ या ‘अजनाभखण्ड’ था क्योंकि महाराज नाभि का एक नाम ‘अजनाभ’ भी था।
अजनाभ वर्ष जम्बूद्वीप में स्थित था, जिसके स्वामी महाराज आग्नीध्र थे। आग्नीध्र स्वायम्भुव मनु के पुत्र प्रियव्रत के ज्येष्ठ पुत्र थे। प्रियवत समस्त भू-लोक के स्वामी थे। उनका विवाह प्रजापति विश्वकर्मा की पुत्री बर्हिष्मती से हुआ था। महाराज प्रियव्रत के दस पुत्र व एक कन्या थी। महाराज प्रियव्रत ने अपने सात पुत्रों को सप्त द्वीपों का स्वामी बनाया था, शेष तीन पुत्र बाल-ब्रह्मचारी  थे। इनमें आग्नीध्र को जम्बूद्वीप का स्वामी बनाया गया था। श्रीमदभागवत में कहा गया है कि-

‘अजनाभं नामैतदवर्षभारतमिति यत आरभ्य व्यपदिशन्ति।’

पुराणों के अनुसार, दशरथपुत्र, राजा राम के अनुज भरत भी प्रसिद्ध हैं जिन्होंने खड़ाऊँ राज किया।
महाभारत के अनुसार, भारत को भारतवर्ष नाम, राजा भरत चक्रवर्ती के नाम पर दिया गया था। राजा भरत, भरत राजवंश के संस्थापक और कौरवों और पांडवों के पूर्वज थे। वह हस्तिनापुर के राजा दुष्यंत और रानी शकुंतला के बेटे थे। और क्षत्रिय वर्ण के वंशज थे। भरत ने पूरे भारत के साम्राज्य को जीत कर एक संगठित राज्य की स्थापना की जिसे ‘भारतवर्ष’ नाम दिया गया।

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इतिहास के अध्येताओं का आमतौर पर मानना है कि, भरतजन इस देश में दुष्यन्तपुत्र भरत से भी पहले से थे। इसलिए यह तार्किक है कि भारत का नाम किसी व्यक्ति विशेष के नाम पर न होकर जाति-समूह के नाम पर प्रचलित हुआ।  इतिहास में नाट्यशास्त्र वाले भरतमुनि भी काफी प्रसिद्ध हुए। एक राजर्षी भरत का भी उल्लेख है जिनके नाम पर जड़भरत मुहावरा ही प्रसिद्ध हो गया। मगधराज इन्द्रद्युम्न के दरबार में भी एक भरत ऋषि थे। एक योगी भरत हुए हैं। पद्मपुराण में एक दुराचारी ब्राह्मण भरत का उल्लेख बताया जाता है।
ऋग्वेद में दस राजाओं के युद्ध का वर्णन है जिसमें भारत नामक जनसमूह के राजा सुदास का नाम आया है। इस जनसमूह से भी भारतवर्ष का नाम आया हो सकता है। भारतवर्ष शब्द का एक भौगोलिक ईकाई के रूप में सबसे पुराना उपयोग हाथीगुम्फा शिलालेख में मिलता है।
प्राचीनकाल से भारतभूमि के अलग-अलग नाम रहे हैं। जैसे – जम्बूद्वीप, भारतखण्ड, हिमवर्ष, अजनाभवर्ष, भारतवर्ष, आर्यावर्त, हिन्द, हिन्दुस्तान और इंडिया मगर इनमें भारत सबसे ज़्यादा लोकमान्य और प्रचलित है।
विश्व में भारत सबसे पुरानी सभ्यता का एक जाना-माना देश है जहाँ वर्षों से कई प्रजातीय समूह एक साथ रहते हैं। यहां लोग अपने धर्म और इच्छा के अनुसार लगभग 1650 भाषाएँ और बोलियों का इस्तेमाल करते हैं। संस्कृति, परंपरा, धर्म, और भाषा से अलग होने के बावजूद भी लोग यहाँ पर एक-दूसरे का सम्मान करते आए हैं। और आज के समय में लोगों की यही एकता और एक दूसरे के प्रति समान की भावना इस देश को भारत बनाती है।

15 अगस्त’ को भारत के सिवा 4 और देश भी मनाते हैं ‘आजादी का उत्सव’।

ऐसा था 15 अगस्त 1947 का अखबार

 

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