उम्र का तीसरा पड़ाव भी समाप्त होने को था। अपने जीवन की जिम्मेदारियाँ लगभग पूरी कर चुके थे तरूण। तीनों बच्चे खुश थे अपनी जिंदगी में। अवकाश प्राप्ति के बस कुछ ही दिन शेष बचे थे।
एक तरफ आपाधापी की जिंदगी से मुक्त होने का अहसास था तो दूसरी तरफ जीवन में आ रहे खालीपन का भय । नीता के साथ अब उम्र के इस मुकाम पर शाब्दिक और शारीरिक प्रेम को भावनात्मक अहसास से परिपूर्ण करने की सोचने लगे थे तरूण।
समयाभाव के कारण नीता के साथ सही से वक्त नहीं बिता पाये कभी।शुरू-शुरू में नीता मंदिर या बाजार साथ चलने की इच्छा जाहिर करती पर समयाभाव के कारण झल्लाते हुए बोलते थे – तुम खुद कर लिया करो मेरे पास इतना फालतू समय नहीं है। धीरे-धीरे नीता ने अपना कर्म क्षेत्र निश्चित कर लिया और अकेले ही घर की सारी जिम्मेदारी पूरी करने लगी। चाहे वो बच्चों की हो या रिश्तेदारों की।
अब अपनी जीवन के चौथे पड़ाव को कैसे गुजारना है, इस विषय पर विचार विमर्श करना चाहते थे नीता के साथ। लेकिन छोटी बहू आई थी, और नीता उसी में व्यस्त थीं। आखिर हो भी क्यों न बहू अपने मायके न जाकर नीता के ही पास रहना चाहती थी अपने प्रसव के वक्त तक। सास पर इतना प्रेम और विश्वास सिर्फ छोटी बहू का नहीं बल्कि बड़ी दोनों का भी था। नीता अपने घर में कुशल नेतृत्व कर रही थी। सभी बच्चे छोटी से छोटी बातों में भी नीता से सलाह लेते थे। और नीता की इस व्यस्तता में तरूण की इन फालतू बातो के लिए वक्त ही कहाँ था ।
तरूण को अभी भी याद है शादी के उपरांत वो नीता के साथ पहली बार गोवा गए थे। वहाँ भी कई बार नोक झोंक हो गया था नीता के साथ। और ज्यादा वक्त रूठने मनाने में ही चला गया। मन ही मन मुस्कुराते हुए तरूण ने निर्णय लिया — अब ये जीवन की अंतिम पारी भी गोवा से ही शुरू करूँगा नीता के संग। बस आह्लादित होकर दो टिकट और होटल का कमरा भी आरक्षित करवा लिए तरूण ने।
लघुकथा
अवकाश प्राप्त कर घर पहुँचने पर जोरदार स्वागत किया बच्चों ने फूल माला के साथ। सबको इकट्ठा अपने मकान पर देख आश्चर्य चकित रह गए तरूण। नीता ने पहले क्यों नहीं बताया उसे। फिर याद आया – पहले भी जब कभी किसी के आने की खबर सुनाती नीता तब तो झल्ला पड़ते थे तरूण -तो क्या उसके आने पर छुट्टी ले कर बैठूं घर में। तुम मुझे सोने दो नीता, सुबह कार्यालय जाना है मुझे। घर पर बैठी हो तुम ही संभालो इन सबको।फिर आज क्यों आहत हो रहा हूँ कि नीता ने नहीं बताया।
तरूण रात में नीता का हाथ सहलाते हुए बोले कल हमलोग गोवा चल रहे हैं । नीता चौंकने हुए बोलीं – सारे बच्चे आए हुए हैं । कल तो बच्चों ने तुम्हारे रिटायर्ड होने की पार्टी रखी है और हमदोनों अकेले गोवा चलें। सठिया गए हो तरूण आप भी। ये सब कार्यक्रम बनाने से पहले मुझसे पूछा तो होता। और फिर छोटी बहू की अवस्था भी तो देखते आप ऐसी अवस्था में उसे छोड़ कर मैं कहीं नहीं जा रही। आप अपने कार्य- भार से मुक्त हुए हैं मै तो गृहिणी हूँ मेरा कार्यभार तो मेरे शरीर चलने तक रहेगा।
तरूण सारी रात बस एक ही वाक्य कहने के लिए जगे रह गए -उसी कार्य भार से तो तुम्हें भी मैं मुक्त करना चाहता हूँ नीता । अब बस तुम्हारे साथ अपने जीवन का अंतिम अध्याय लिखना चाहता हूँ। पर दिन भर की थकी नीता बेसुध होकर निद्रा के आगोश में जा चुकी थीं । क्योंकि नीता को तो सुबह से ही लग जाना था अपने कर्म क्षेत्र में।
– अंजना झा
फरीदाबाद, हरियाणा
Chauthi paari