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लाल बहादुर शास्त्री को जन्मदिवस पर शत-शत नमन।

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Lal Bahadur Shastri: भारत के दूसरे नम्बर के प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री के बारे में तो आपने सुना ही होगा। जी हां शास्त्री जी ने आजाद भारत को एक नई पहचान देने में अग्रणी भूमिका निभाई है। महात्मा गांधी के विचारों से प्रभावित और गांधी-वादी विचार के कट्टर समर्थकों में एक थे शास्त्री जी। लाल बहादुर ने अपनी आंखें 2 अक्तूबर को गांधी जी के बर्थडे के दिन ही खोली थी। मुगलसराय में इनके बचपन के कई किस्से-कहानियां आपको सुनने को मिल जाऐंगे। मनुष्य के जीवन में शिक्षा की कितनी अहमियत है यह हमें शास्त्री जी से सीखने की जरूरत है। पूरा का पूरा बचपन वित्तीय कठिनाइयों में गुजरने के बावजूद भी शास्त्री जी ने जो मुकाम अपनी जिंदगी में हासिल किया, वह थी शिक्षा। बचपन में हमने बड़े बुजुर्गों से कई बार यह कहानी सुनी होगी कि कैसे लाल बहादुर शास्त्री जी नदी को तैर कर पार करते थे और विधालय जाते थे। बहुत बार तो हमारे बड़े बुजुर्ग शिक्षा की जरूरत और किसी भी कीमत पर इसे पाने की अनिवार्यता के लिए हमें  इनकी कहानियों की पुस्तकों के सहारे समझाते थे।

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जवान युवा खून जब 16 वर्ष की ही था तब उसने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में खुद को झोक दिया। गांधी की सत्य और अहिंसा के विचार से प्रभावित लाल बहादुर शास्त्री ने सविनय अवज्ञा आंदोलनों में बढ़-चढ़ कर भाग लिया। शास्त्री जी से जुड़ा एक वाक्या है कि शास्त्री जी जब मुगलसराय में स्कूल में पढ़ते थे। शास्त्री जी का स्कूल में पूरा नाम लाल बहादुर वर्मा लिखा जाता था । शास्त्री जी अपने नाम से वर्मा हटाने के लिए स्कूल के साथ-साथ अपने घर को भी निवेदन किया और जब उनके प्रधानाध्यापक ने उनसे इसका कारण पूछा तो उन्होंने बताया कि इंसान को अपने नाम और काम से जाना चाहिए ना कि उसके सरनेम या जातिगत उपनाम से । इस उम्र में शास्त्री जी की यह परिपक्वता कोई आम बात नहीं। अगर यही परिपक्वता हमारे समाज के सभी इंसानों में आ जाए तो फिर देश और समाज अपनी पराकाष्ठा को पा लेगा।

लाल बहादुर ने काशी विधापीठ वाराणसी से शास्त्री की डिग्री प्राप्त की जिसके बाद इनका नाम लाल बहादुर शास्त्री हो गया।1947 में भारत को आज़ादी मिलने के बाद शास्त्री जी ने जवाहर लाल नेहरू की सरकार में रेलवे,परिवहन,वाणिज्य और उधोग के साथ-साथ गृह मंत्रालय जैसी महत्वपूर्ण जिम्मेदारी भी निभाई। 1964 में नेहरू के निधन के छह दिन बाद 2 जून को इस करिश्माई व्यक्तित्व ने बिना किसी अंदरूनी और बाहरी विरोध के दूसरे प्रधानमंत्री के रूप में भी देश को एक नई दिशा देने की जिम्मेदारी ली और प्रधानमंत्री बने। 1965 में सूखे के भयंकर प्रकोप से देश को बाहर निकालने के लिए और आत्मनिर्भर उत्पादन के लिए हरित क्रांति की शुरूआत की। 1965 का भारत पाकिस्तान युद्ध 17 दिनों तक चला और शास्त्री ने देश का नेतृत्व बखूबी निभाया। युद्ध के समय देश के लोगों से भिक्षा-टन कर इतना पैसा जुटाया कि इसकी घोषणा मात्र से लोग भौंचक्के रह गए। राष्ट्र के सुरक्षा निधि में कुल 5 टन सोना जमा हुआ। जिसका आज के मुताबिक मूल्य दो हजार करोड़ होता है। युद्ध के चलते देश में खाधान्न की कमी हो गई। अमेरिका की मौका परस्ती ने निर्यात को रोकने की धमकी तक दे डाली। लेकिन शास्त्री को पता था कि भारत इस वक्त खाधान्न के लिए पूरी तरह अमेरिका पर निर्भर है, लेकिन वे इस धमकी के आगे झुके नहीं और उन्होंने खुद के साथ-साथ पूरे देशवासियों को एक दिन का उपवास रखने के लिए कहा। उन्होंने आत्मसम्मान के आगे भूख को भी हरा के दिखाया।

शास्त्री जी को हिन्दी से बड़ा प्यार था वे हिन्दी को राष्ट्रीय भाषा बनाना चाहते थे ।शास्त्री जी को हिंदी विरोधी आंदोलन का भी सामना करना पड़ा था। जब शास्त्री जी की सरकार ने हिन्दी को राष्ट्रभाषा बनाना चाहा तो गैर हिंदी भाषी राज्यों ने जैसे मद्रास के छात्र और प्रोफेसर इसके विरोध पर चले गए। देश के दो वर्षीय छोटे से कार्यकाल में उन्होंने देश के किसान तथा मजदूर वर्ग के हालात को सुधारने के लिए कई फैसले लिए और देश को तरक्की की एक नई दिशा दी।

करूणा, समानता तथा विशिष्टता जैसे विचारों पर चलने वाले सही अर्थों में सेवाभावी नेता जब ताशकंद समझौते के लिए विदेश गए हुए थे तो 11 जनवरी 1966 को उनकी अप्रत्याशित मृत्यु हो गई। शिक्षा और सादा-जीवन उच्च-विचार के प्रनेता को उनके जन्मदिवस पर पूरे राष्ट्र की ओर से नमन है।

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