आज की युवा पीढ़ी अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस को मनाती है. योग गुरु बाबा रामदेव और पतंजलि को पहचानी है. लेकिन, इसके साथ ही उसे महर्षि महेश योगी को भी जानना चाहिए, जिन्होंने भारत देश में ही नहीं, अपितु विश्व-भर में उन्होंने इस ध्यान योग के साथ-साथ शैक्षिक संस्थाओं की स्थापना भी की. इन शैक्षणिक संस्थाओं में भारतीय संस्कृति के धर्म, आध्यात्म के साथ-साथ जीवन के व्यावहारिक मूल्यों की शिक्षा भी दी जाती है.
असल में, महर्षि महेश योगी भारत की उन आध्यात्मिक विभूतियों में से एक थे, जिन्होंने भावातीत ज्ञान योग की स्थापना की तथा इसके द्वारा मानवीय सेवा का जो कार्य उन्होंने किया, वह बहुत ही अमूल्य है. उन्होंने पश्चिम के वैज्ञानिकों को भी यह प्रमाणित करके बताया कि भावातीत ध्यान से किस तरह मनुष्य को शांति प्राप्त होती है. एक पत्रकार ने उनसे एक इंटरव्यू में पूछा था कि वे और उनका ध्यान-योग पश्चिमी देशों में बहुत लोकप्रिय है, लेकिन भारत में ऐसा नहीं है, भारत में उन्हें ज्यादा लोग नहीं मानते हैं, ऐसा क्यों है ? इस सवाल पर उनका कहना था कि इसकी वजह यह है कि यदि पश्चिमी देशों में लोग किसी चीज के पीछ वैज्ञानिक कारण देखते हैं, तो उसे तुरंत अपना लेते हैं और मेरा ट्रांसेंडेंटल मेडिटेशन योग के सिद्धांतों पर कायम रहते हुए पूरी तरह वैज्ञानिक है.
महर्षि महेश योगी ने जिस ध्यान योग को पूरे विश्व में फैलाया, उसके द्वारा बुद्धि, ज्ञान तथा योग्यता की क्षमताओं में वृद्धि होती है. आत्मा को शक्ति और आनंद का सागर बताते हुए उन्होंने ध्यान को ही प्रमुख माना है. विश्वशांति, विश्वबंधुत्व, पूर्ण ज्ञान की प्राप्ति, वैदिक शिक्षा का प्रचार, भावातीत ध्यान के महत्त्व को संसार में फैलाना उनका प्रमुख उद्देश्य था
जबलपुर में जन्मे महर्षि योगी बचपन में महेश श्रीवास्तव के नाम से जाने जाते थे. उनके गुरु स्वामी ब्रह्मानन्द सरस्वती शंकराचार्य थे. उनके देहांत के बाद महेश श्रीवास्तव महर्षि महेश योगी कहलाये. गुरु की आज्ञानुसार उन्होंने समस्त विश्व में वैदिक संस्कृति का प्रचार-प्रसार करने का बीड़ा उठाया. हिमालय के बद्रीकाश्रम तथा ज्योर्तिमठों में रहकर ध्यान योग की साधना की. दक्षिण भारत में उन्होंने आध्यात्मिक विकास केंद्र की स्थापना की. दिसंबर, 1957 को आध्यात्मिक पुनरुत्थान कार्यक्रम शुरू किया. 1960 में पश्चिमी देशों की यात्रा पर निकल पड़े. वहां रहकर उन्होंने अमेरिका में भावातीत के रूप में मानवीय चेतना के विस्तार का कार्य किया.
विदेशों में तो उनके पास रातो-रात प्रसिद्धि के साथ-साथ काफी धनराशि का ढेर-सा लग गया. इस भावातीत ध्यान से आकर्षित होकर हाॅलीबुड की प्रसिद्ध फिल्म स्टार मिया फारो ने महर्षि को अपना गुरु बना लिया. अपने 30 से भी अधिक वर्षो की भ्रमण यात्रा के दौरान उन्होंने 1975 में स्विटजरलैण्ड में मेरू महर्षि यूरोपियन रिसर्च यूनिवर्सिटी स्थापित की. उन्होंने स्विटजरलैण्ड में सीलिसबर्ग, न्यूयार्क में साउथ फाल्सबर्ग और ऋषिकेश में शंकराचार्य नगर की स्थापना की. नई दिल्ली के पास नोएडा में महर्षि नगर तथा आयुर्वेद विश्वविद्यालय और वैदिक विज्ञान महाविद्यालय की भी संकल्पना की. वर्तमान में विश्व के 150 स्थानों में 4 हजार केंद्र उनके द्वारा संचालित हो रहे हैं.
वे फरवरी 2008 में पंचतत्त्व में विलीन हो गए. विश्व-भर में भारतीय वैदिक शिक्षा का प्रचार-प्रसार करने में महर्षि महेश योगी का नाम हमेशा अमर रहेगा.
महेश योगी ने जारी किया था राम नाम की मुद्रा
आपको जानकर हैरानी होगी कि महर्षि महेश योगी ने ‘राम’ नाम की एक मुद्रा भी जारी की थी. इस मुद्रा को नीदरलैंड्स ने साल 2003 में कानूनी मान्यता भी दी थी. राम नाम की इस मुद्रा में एक, पांच और दस के नोट थे. इस मुद्रा को महर्षि की संस्था ग्लोबल कंट्री ऑफ वर्ल्ड पीस ने साल 2002 के अक्टूबर में जारी किया गया था. नीदरलैंड्स के कुछ गांवों और शहरों की सौ से अधिक दुकानों में ये नोट चलने लगे थे. इन दुकानों में कुछ तो बड़े डिपार्टमेंट स्टोर श्रृंखला का हिस्सा थे. अमरीकी राज्य आइवा के महर्षि वैदिक सिटी में भी राम मुद्रा का प्रचलन था. वैसे 35 अमेरीकी राज्यों में राम पर आधारित बॉन्डस शुरू किए गए थे.
Mahshri mahesh yogi